Politalks.News/Rajasthan. प्रदेश में जारी सियासी घमासान के बीच स्पीकर सीपी जोशी द्वारा सचिन पायलट समेत 19 विधायकों को दल-बदल कानून के तहत दिए गए नोटिस पर सचिन पायलट की संशोधित याचिका पर राजस्थान हाईकोर्ट का निर्णय आज या कल यानी मंगलवार को सुनाया जाएगा. लेकिन सबसे बड़ी बात अदालत का फैसला कुछ भी हो, सचिन पायलट समेत सभी बागी विधायकों की विधायकी जाना लगभग सुनिश्चित है. पायलट की उम्र के बराबर राजनीतिक अनुभव रखने वाले राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत के चक्रव्यूह में फंस चुके सचिन पायलट शायद ही इससे बाहर निकल पाएं.
आपको बताते हैं कैसे? हाइकोर्ट का फैसला अगर सचिन पायलट के पक्ष में आता भी है तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दूसरी सियासी चाल पहले ही चल दी है और वो है विधानसभा का संक्षिप्त सत्र बुलाए जाने की मांग. माना जा रहा है कि शनिवार को मुख्यमंत्री गहलोत और राज्यपाल कलराज मिश्र के बीच हुई मुलाकात महज एक शिष्टाचार या प्रदेश का कोरोना अपडेट देने वाली मुलाकात नहीं थी बल्कि विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने के लिए एक छोटा विधानसभा सत्र बुलाए जाने की एक सियासी चाल थी. राजनीतिक पंडितों की मानें तो हाईकोर्ट से अगर सचिन पायलट खेमे को अगर राहत मिल भी जाती है तो मुख्यमंत्री गहलोत बागी विधायकों को घेरने के लिए विधानसभा में फ्लोर टेस्ट करने का दांव चलेंगे.
सूत्रों की माने तो बीटीपी के 2 विधायकों का समर्थन मिलने के बाद मुख्यमंत्री गहलोत ने विजयी मुस्कान के साथ 102 विधायकों का समर्थन पत्र शनिवार को राज्यपाल महोदय को सौंप दिया है. ऐसे में सरकार के फ्लोर टेस्ट के लिए मुख्य सचेतक महेश जोशी व्हिप जारी कर देंगे. व्हिप के जरिए विधायकों से कहा जाएगा कि वे विधानसभा में मौजूद रहें और सरकार के पक्ष में मतदान करें. इसके बाद यदि पार्टी के किसी भी विधायक ने व्हिप का उल्लंघन किया, यानी सदन में मौजूद नहीं हुआ या सरकार के पक्ष में वोट नहीं डाला तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. मुख्यमंत्री गहलोत की इस सियासी गोटी से पायलट और उनके समर्थक विधायकों को एक तरफ हरियाणा के मानेसर से जयपुर आने के लिए मजबूर कर देगी. ऐसे में अगर वो जयपुर नहीं आते या पार्टी के खिलाफ वोटिंग करते हैं तो संविधान की 10वीं अनुसूची की धारा 21 (1) (ए) के अनुसार उन सभी विधायकों की सदस्यता रद्द करने का रास्ता साफ हो जाएगा.
ऐसे में सचिन पायलट खेमे के पास एक ही रास्ता होगा कि वो पार्टी व्हिप का पालन करें और विधानसभा पहुंच कर सरकार का समर्थन करें. इसके बावजूद अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो पार्टी ऐसे विधायकों को अयोग्य घोषित करने की सिफारिश स्पीकर से करेगी और स्पीकर उसे मानने को बाध्य होंगे. इसका सीधा सा अर्थ है कि विधायकों ने व्हिप का उल्लंघन किया तो वे अयोग्य घोषित कर दिए जाएंगे और फिर अपनी सदस्यता खारिज करने को कोर्ट में चैलेंज भी नहीं कर पाएंगे.
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दरअसल, सचिन पायलट सहित सभी बागी विधायकों का कहना है कि उन्होंने पार्टी के खिलाफ कोई काम नहीं किया है, इसलिए उनके खिलाफ अनुशासन की कोई कार्रवाई वैध नहीं है. वे पार्टी में रहकर अपनी बात रख रहे हैं. यह उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है. स्पीकर के नोटिस को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए इन विधायकों ने कहा है कि मुख्यमंत्री निवास विधायक दल की बैठक में भाग नहीं लेने के आधार पर किसी को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है.
वहीं अगर अदालत का फैसला सचिन पायलट खेमे के विरुद्ध आता है तो भी उन्हें मंगलवार शाम तक विधानसभा स्पीकर के सामने उपस्थित होकर अपनी सफाई देनी होगी और उसके बाद यह स्पीकर सीपी जोशी पर निर्भर करेगा कि वो उन सब विधायकों की सदस्यता रद्द करते हैं या छोड़ देते हैं. मुख्यमंत्री गहलोत और सीपी जोशी के बीच जिस तरह के आत्मीय सम्बन्ध पिछले सालों में प्रगाड़ हुए हैं, उसको देखते हुए पायलट सहित सभी विधायकों की सदस्यता जाना सुनिश्चित माना जा रहा है.
इन सबके बीच SOG और SIT से बचना भी पायलट और उनके खेमे के विधायकों के लिए अहम चुनौती बना हुआ है. सभी परिस्थितियों को देखेते सियासी विशेषज्ञों का कहना है कि बीजेपी भी अब बैकफुट पर है क्योंकि बीजेपी अगर इस लड़ाई में खुलकर सामने आती है और किसी भी कारण से मात खा जाती है तो प्रदेश में ही नहीं पूरे देश में बीजेपी के राष्ट्रीय दिग्गजों की किरकिरी हो जाएगी. वहीं पूरे देश में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की एक नई राजनीतिक हीरो की छवि उभर कर सामने आएगी जो कि बीजेपी और उसके दिग्गज कभी नहीं चाहेंगे.
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बस अब एक सूरत है कि सचिन पायलट अपने विधायकों के साथ पार्टी आलाकमान के सामने जाकर अपनी बात रखें और अपनी गलती मान लें तो शायद विधायकी जाने से और SOG व SIT की कार्रवाई से वो बच जाएं. लेकिन ऐसा होने की संभावना शून्य मानी जा रही है क्योंकि जिस तरह की नेचर सचिन पायलट की है, उसके अनुसार वो पार्टी में आकर अब झुकेंगे नहीं. हां, इनके खेमे के कुछ विधायक शायद डूबते जहाज को छोड़कर इधर आ जाएं. खैर, यह सब राजनीतिक कयास हैं. सियासत के खेल में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता. पॉलिटॉक्स का सिर्फ इतना कहना है कि जो भी हो, वो जल्द हो जाए क्योंकि सियासत की इस जंग में अगर कोई पिस रही है तो वो जनता है जो कोरोना के खतरे के साथ अर्थव्यवस्था की मार भी झेल रही है और सरकार अपनी लड़ाई में बिजी है.