उत्तरप्रदेश में मंत्रियों के इस्तीफे की हैट्रिक, सुभासपा अध्यक्ष राजभर बोले- ‘यह तो सिर्फ टीज़र है…’

भाजपा में मची 'भगदड़' से सभी सन्न, एक के बाद एक 14 विधायकों के हुए इस्तीफे, मंत्रियों के इस्तीफे की लग चुकी हैट्रिक, दलबदल पर राजभर का तंज-बीजेपी का ओबीसी आधार को बरकरार रखना चुनौती, भाजपा पर दलितों, पिछड़ो और युवाओं की अनदेखी का आरोप तो वहीं मुकेश वर्मा का बड़ा दावा- संपर्क में हैं 100 विधायक

उत्तरप्रदेश में मंत्रियों के इस्तीफे की हैट्रिक
उत्तरप्रदेश में मंत्रियों के इस्तीफे की हैट्रिक

Politalks.News/UttarPradeshAssemblyElection. उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव (Assembly Election) की तारीखों के एलान के बाद प्रदेश की सियासत पूरी तरह बदल चुकी है. सियासी गलियारों की अगर बात की जाए तो चुनावी तारीखों के एलान के बाद भाजपा (BJP) नेताओं का एक एक कर इस्तीफा देना यह दर्शाता है कि, ‘पिक्चर अभी बाकी है.’ तीन मंत्रियों सहित 9 विधायकों के इस्तीफों ने भाजपा को नई रणनीति बनाने पर मजबूर कर दिया है. भाजपा नेताओं के दल बदल कार्यक्रम को विपक्ष भी निशाना साध रहा है. इसी कड़ी में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) के नेता ओमप्रकाश राजभर (Omprakash Rajbhar) ने दावा किया कि ये तो सिर्फ टीजर है. आगामी चुनाव में बीजेपी को अपने ओबीसी आधार को बरकरार रखना एक चुनौती होने वाला है.’

मंगलवार को योगी सरकार में मंत्री रहे नेताओं के इस्तीफा देने की हैट्रिक लग चुकी है. मंगलवार को स्वामी प्रसाद मौर्या, बुधवार को दारा सिंह चौहान और आज गुरूवार को धर्म सिंह सैनी ने अपना इस्तीफा दे दिया है. इन तीनों मंत्रियों सहित अब तक कुल 14 विधायक भाजपा से इस्तीफा दे चुके हैं. एक के बाद एक बीजेपी नेताओं के इस्तीफे ने बीजेपी आलाकमान को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आगे की रणनीति किस तरह से मनाई जाए. जिन विधायकों और मंत्रियों ने भाजपा से इस्तीफा दिया है उन सभी ने भाजपा पर दलितों, पिछड़ों और युवाओं की अनदेखी का आरोप लगाया है. बीजेपी में मची भगदड़ को लेकर विपक्षी दल कहां पीछे रहने वाले हैं.

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आगामी चुनाव में सपा की सहयोगी पार्टी सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी पर जमकर निशाना साधा है. राजभर ने मीडिया से कहा कि, पिछले 24 घंटे में कई नेताओं का बीजेपी छोड़कर जाना आने वाले समय का केवल एक टीजर है. जब तीन साल पहले मैंने मंत्री पद से इस्तीफा दिया और बीजेपी छोड़ी थी, तब मुझे भी यही अनुभव हुआ था. मुझे उस वक़्त यह एहसास हो गया था कि भाजपा पिछड़े वर्गों और दलितों की दुश्मन हैं. मंत्रियों विधायकों के इस्तीफे के बाद बीजेपी के पास अपने ओबीसी आधार को बरकरार रखना बहुत बड़ी चुनौती होने वाला है.’

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राजभर ने आगे कहा कि,दारा सिंह चौहान, स्वामी प्रसाद मौर्य और अब धर्म सिंह सैनी के इस्तीफे के ने मेरे दावों की पुष्टि कर दी है. अगर आप बीजेपी नेताओं से स्पाई कैम पर बात करते हैं, तो वे वही जताते हैं कि कोई उनकी नहीं सुनता, वे असहाय हैं.’ राजभर ने बड़ा दावा करते हुए कहा कि, मेरी बात आप मानों और देखना की 10 मार्च को कोई भी बीजेपी नेता अपने घर से बाहर नहीं निकलेगा और वे अपने टीवी बंद कर देंगे.’ इसके साथ राजभर ने दावा किया कि, अभी भी भाजपा के करीब डेढ़ दर्जन मंत्री समाजवादी पार्टी के संपर्क में हैं. और वो कभी भी अपना इस्तीफा देकर सपा में शामिल हो सकते हैं.’

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वहीं जब राजभर से बीजेपी की ओबीसी विरोधी नीति क्या है? इसे लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि, ‘प्रदेश में 69,000 शिक्षकों को भर्ती करना है जो ओबीसी के लिए एक सशक्तिकरण कदम माना जा रहा था. पिछड़ा वर्ग के राष्ट्रीय आयोग ने जब सरकार की इस घोषणा पर  गौर किया तो पाया कि इन नियुक्तियों में केवल 27 फीसदी ओबीसी कोटा है जो भी अभी तक पूरा नहीं हुआ. सीएम ने कहा कि वह इस विसंगति को ठीक कर देंगे लेकिन अगर आप केवल 6,000 पिछड़े उम्मीदवारों की भर्ती करते हैं तो इससे ओबीसी मानदंड कैसे पूरा होगा?

वहीं भाजपा के अन्य विधायक मुकेश वर्मा ने इस्तीफा देते हुए बड़ा दावा किया और कहा कि, स्वामी प्रसाद मौर्य हमारे नेता हैं और वह जो भी फैसला करेंगे, हम उसका समर्थन करेंगे. अगर बात की जाए विधायकों की तो आज भी हमारे साथ 100 विधायक हैं और देखते जाओ भाजपा को हर एक दिन इंजेक्शन लगने वाला है. बीजेपी अगड़ों की पार्टी है और वहां दलितों और पिछड़ों का सम्मान नहीं होता. भाजपा तो दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़ा विरोधी पार्टी है.’

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आपको बता दें कि अब तक भाजपा से 3 कैबिनेट मंत्रियों सहित 14 विधायकों ने अपना इस्तीफा दे दिया है. ऐसे में बीजेपी के आगामी चुनाव की रह आसान नहीं होगी. बीजेपी अच्छी तरह जानती है कि अल्पसंख्यकों और दलितों के बिना यूपी में कमल खिलाना मुनासिब नहीं है. शायद इसी कारण पुरे ढाई दिन तक केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक चली जिसमें विधायकों और मंत्रियों द्वारा इस्तीफा दिए जाने और दलितों को साधने की रणनीति पर काम किया है. ये सभी विधायक फ़िलहाल किसी भी पार्टी में शामिल नहीं हुए हैं लेकिन इस्तीफे के तुरंत बाद इन नेताओं का सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात करना यह साफ़ करता है कि ये सभी नेता सपा की साइकिल पर सवार होने वाले हैं.

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