राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) का गढ़ माने जाने वाली खींवसर विधानसभा में इस बार ‘बोतल’ डूब गयी और लंबे समय के बाद ‘कमल’ का उदय हुआ. इसके कोई शक नहीं कि खींवसर विधानसभा की जनता के लिए आरएलपी का मतलब केवल और केवल हनुमान बेनीवाल है. इस बार वो सक्रिय तौर पर मैदान में नहीं थे, इसका हर्जाना उन्हें भुगतना पड़ा और आरएलपी के टिकट पर चुनाव लड़ रही कनिका बेनीवाल को बीजेपी के हाथों मुंह की खानी पड़ी. कनिका की हार के साथ न केवल बेनीवाल का खींवसर किला गढ़ गया है, अब विधानसभा में आरएलपी का प्रतिनिधित्व पूरी तरह से समाप्त हो गया है.
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आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल के नागौर से सांसद बनने के बाद खींवसर विस सीट खाली हुई थी. इस पर पार्टी ने हनुमान की पत्नी कनिका बेनीवाल को मैदान में उतारा. बीजेपी ने यहां एक बार फिर रेवतराम डांगा पर दांव खेला. पिछले विस चुनाव में डांगा केवल 2,059 वोट से बेनीवाल से हार गए थे. इस बार बीजेपी ने अपने स्टार प्रचारकों की पूरी फौज यहां खड़ी की थी. हनुमान बेनीवाल द्वारा डांगा को अनपढ़ कहने का जवाब देते हुए रेवतराम डांगा ने 13,901 वोटों के बड़े अंतर से कनिका बेनीवाल को हार का स्वाद चखा दिया.
बेनीवाल का सियासी नेरेटिव बिगड़ा
खींवसर में हनुमान बेनीवाल की पत्नी की हार ने सांसद हनुमान बेनीवाल का सियासी नरेटिव बिगाड़ दिया है. विधानसभा में अब पार्टी की एक भी सीट नहीं है. साल 2023 में आरएलपी की एक ही सीट थी, जिस पर हनुमान बेनीवाल जीते थे. बेनीवाल के सांसद बनने के बाद खाली हुई सीट पर उनकी पत्नी ने चुनाव लड़ा था. बेनीवाल की पत्नी की हार के पीछे भी परिवारवाद बड़ा फैक्टर माना जा रहा है, जिसे बीजेपी ने इस बार उप चुनाव में बड़ा मुद्दा बनाया. बेनीवाल पहली बार भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर खींवसर से विधायक बने थे. पार्टी छोड़ने के बाद बेनीवाल 2003 में आरएलपी से जीते. 2019 में पहली बार सांसद बने तो भाई नारायण बेनीवाल को टिकट दिया. हालांकि वे बमुश्किल जीत सके थे. इस बार बेनीवाल सांसद बने तो पत्नी को टिकट दिया था.
कोर वोट बैंक में लग गयी सेंध
पिछले विस चुनाव के समय से ही आरएलपी के कोर वोट बैंक में सेंध लगनी शुरु हो गई थी. पार्टी के कई नेता और कार्यकर्ता पार्टी छोड़ गए. हर किसी का विरोध और एक जैसी आक्रामक राजनीति जनता को रास नहीं आई. बेनीवाल की हार का एक बड़ा कारण यह रहा कि बीजेपी के वोटों का बंटवारा नहीं हुआ. अब तक दुर्ग सिंह खींवसर से चुनाव लड़ते थे और बीजेपी के वोट बंट जाते थे. इस बार दुर्ग सिंह बीजेपी में शामिल हो गए और उनके चुनाव न लड़ने की वजह से वोटों का धुर्वीकरण नहीं हुआ. इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिला.
नागौर की सियासत होगी प्रभावित
हनुमान बेनीवाल की पत्नी के उपचुनाव हारने के बाद अब नागौर जिले की सियासत भी प्रभावित होगी. बेनीवाल सियासी रूप से कमजोर हुए हैं. उनके ही कार्यकर्ताओं ने बीजेपी की शरण लेकर खींवसर में बीजेपी का ‘कमल’ खिलवा दिया. देखा जाए तो बेनीवाल अब तक सांसद का चुनाव केवल गठबंधन के तले ही जीत पाए हैं. 2019 में बेनीवाल ने बीजेपी के गठबंधन में नागौर का आम चुनाव जीत था, जबकि 2024 में ‘इंडिया गठबंधन’ की ओट में जीतकर लोकसभा पहुंचे. 2019 के उपचुनाव में जब उनके भाई नारायण बेनीवाल जीते थे, तब बीजेपी उनके साथ थी. इस बार उपचुनाव में बिना गठबंधन का क्या परिणाम आया, वो सभी देख रहे हैं. कनिका बेनीवाल की हार के बाद यह साफ हो गया कि आक्रामक राजनीति से बेनीवाल ने जो वोट बैंक बनाया, अब वह दरकने लगा है. यूथ वोटर्स उनके साथ जुड़ा, पार्टी उसे भी बरकरार नहीं रख पायी. अब शायद आगामी चार सालों तक पार्टी शून्य विधायक और एक सांसद के साथ ही राजनीतिक के मंच पर दिखाई देने वाली है.