पाॅलिटाॅक्स ब्यूरो. न तीखी तकरार, न व्यंग्यों की बौछार, ना ही कमियां निकालने का दौर, और ना ही अभी एक दूसरे को नीचा दिखाने का है समय. थोड़े समय के लिए ही सही लेकिन बदल गया है वक्त और बदले वक़्त में राजस्थान की राजनीति की फिंजा भी बदली-बदली सी नजर आ रही है. चंद दिनों पहले तक हर तरफ एक ही गूंज थी, राजस्थान सरकार के दो दिग्गजों के बीच वर्चस्व की लडाई चल रही है. दोनों की ओर से समय-समय पर अलग-अलग मुददों पर लगातार शब्दबाण छोड़े जा रहे थे.
राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनने से पहले और उसके बाद से लगातार जिस तरह से विभिन्न मुददों पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच की अदावत सामने आती रही है उसको देखकर कभी लगा नहीं कि यह कभी बिना किसी बड़े निर्णय के रुक पाएगी. जानकारों के अनुसार दोनों के बीच की खींचतान अव्वल दर्जें तक पहुंच चुकी है. अधिकांश मामलों में दोनों की राय एक-दूसरे से बिलकुल जुदा ही रहती है.
लेकिन अभी पिछले दस दिनों से दोनों के बीच अचानक हमलावर या व्यंग्य की भाषा शांत हो गई और साथ ही भाषा का तीखापन भी समाप्त सा हो गया है. ऐसा लग रहा है जैसे कि दोनों राजनीतिक भाईयों के बीच के गिले शिकवे अचानक बिना समझाइस के खुद दोनों ने ही समाप्त कर लिए. यहीं नहीं दोनों दिग्गजों ने पिछले दिनों में राहुल गांधी की रैली को लेकर साथ-साथ जाकर स्थान का चयन करने से लेकर कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों को निर्देश देने के साथ ही रैली की तैयारियों को लेकर की गई किसी भी गतिविथि में एक साथ अपनी भूमिका निभाई वो भी बीना किसी खिंचतान के. यहां तक कि यूथ कांग्रेस के कार्यक्रम में हल्की फुल्की मजाक पर भी दोनों के बीच की संयमता देखने वाली थी.
हाल ही में युथ कांग्रेस और एनएसयूआई के कार्यक्रम में दोनों दिग्गज पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठे तो माजरा कुछ समझ में आया. दोनों ने एक साथ बैठकर, एक सी मुस्कान लिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं को बताया कि सीएए, महंगाई और बेरोजगारी के विरोध में राजस्थान के जयपुर में एक विशाल रैली होने जा रही है. रैली को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी संबोधित करेंगे. चूंकि कांग्रेस में राहुल गांधी युवा हैं, शायद इसलिए जयपुर में राहुल गांधी की 28 जनवरी को होने वाली रैली का नाम युवा आक्रोश रैली रखा गया है.
यह तो बात है राहुल गांधी की रैली की, लेकिन बात चल रही है, उनके आने से पहले सरकार के दो बडे चेहरों के बदले हुए अंदाज की. लगभग एक साल पहले हुए विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री गहलोत और प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट में किस स्तर की खींचतान हुई, किसी से छिपा नहीं है. फिर बहुमत आया तो सरकार बननी तय हो गई. लेकिन कई दिनों तक तो सरकार का मुखिया ही तय नहीं हो सका. अशोक गहलोत और सचिन पायलट के जयपुर से दिल्ली के लगातार हर दिन चक्कर लगते रहे. ऐसे में आलाकमान भी कब तक टालते, सूबे में शोर मचने लग गया. सो निर्णय कर लिया गया और हालातों को देखते हुए आलाकमान ने दो फूल मंगवाए और दोनों को एक-एक फूल दे दिया. अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री तो सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया गया.
इस फॉर्मूले के बाद आलाकमान को भी लगने लगा कि अब सब कुछ सही हो जाएगा. दोनों मिलकर प्रदेश के विकास को चांद सितारों तक पहुंचा देंगे. लेकिन आलाकमान की भावना के विपरीत दोनों के बीच राजनीतिक वर्चस्व को लेकर खींचतान जबरदस्त हो गई. कभी विभागों और शक्तियों के बंटवारे को लेकर तो कभी राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर, निकाय चुनाव के लिए बनाया गया हाईब्रीड फॉर्मूला हो या पंचायत चुनाव से जुड़ा मामला, एक दूसरे से शिकायती लहजे की भाषा में ही समय बीतता रहा.
कुछ दिनों पहले ही कोटा अस्पताल में हुई बच्चों की मौत के मामले में तो कई दिनों तक रुक-रुककर एक दूसरे को गलत साबित करते हुए शब्दबाण चलाने का सिलसिला चलता रहा. और उसके बाद का पूर्व मुख्यमंत्री राजे से बंगला खाली कराने के लिए सरकार के विरुद्घ आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला, दोनों दिग्गजों के बीच जोर अजमाईश अभी तक जारी रही.
अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच चल रहा राजनीतिक बाणों का शोरगुल अचानक थमा तो हैरान से कांग्रेस के निष्ठावान कार्यकर्ताओं ने दबी जुबान में कहना शुरू कर दिया, “शुभमंगल सावधान, आ रहे हैं आलाकमान“.
आलाकमान राहुल गांधी तो कुछ घंटे के लिए ही आ रहे हैं, सो उन्हें दिखाया जाएगा कि राजस्थान में सब कुछ सही चल रहा है. मुख्यमंत्री और पीसीसी चीफ मिलनसारिता के साथ कांग्रेस को आगे बढा रहे हैं. लेकिन सवाल और भी खडे हैं, क्या आलाकमान के जाने के बाद भी दोनों अभी वाली मुस्कान और मिलनसारिता के साथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और जनता के बीच होंगे या फिर आलाकमान के जाते ही फिर वही गीत शुरू हो जाएगा…. “आ..देखें जरा, किसमें कितना है दम…”