राजस्थान की जोधपुर लोकसभा सीट से बीजेपी ने एक बार फिर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत पर भरोसा जताया है. पहले यह कहा जा रहा था कि शेखावत अपनी सीट बदलना चाहते हैं, लेकिन यह चर्चा कोरा कयास ही साबित हुई. टिकट मिलने के बाद शेखावत ने तूफानी प्रचार शुरू कर दिया है. वे ज्यादातर जगह मोदी के नाम पर वोट मांगते हुए नजर आ रहे हैं. इसके अलावा उनके पास कोई चारा भी नहीं है, क्योंकि बीते पांच साल में वे जोधपुर को ऐसी कोई बड़ी सौगात नहीं दे पाए, जिसे गिनाकर वोट मांगे जा सकें.
2014 के लोकसभा चुनाव में जब गजेंद्र सिंह शेखावत को जोधपुर से उम्मीदवार घोषित किया गया तो यह नाम सभी को चौंकाने वाला था. अन्य दावेदारों के मुकाबले शेखावत की दावेदारी इतनी ज्यादा मजबूत नहीं थी, लेकिन संघनिष्ठ होने का उन्हें फायदा मिला. टिकट मिलने के बाद उनकी जीत-हार पर तरह-तरह के कयास लगाए गए मगर मोदी लहर ने उनकी नैया पार लगा दी. शेखावत ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की. वे बड़े अंतर से चुनाव जीते.
सांसद बनने के बाद शेखावत की लोकप्रियता का ग्राफ लगातार बढ़ता गया. पहली बार जीतने के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया. शेखावत को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का भी करीबी माना जाता है. इतना सब होने के बावजूद वे पांच साल में जोधपुर को कोई बड़ी सौगात नहीं दे पाए. इसका मलाल जोधपुर के उन मतदाताओं को भी है जो शेखावत कों पसंद करते हैं. यदि लोकसभा चुनाव में विकास के मुद्दे पर जोधपुर मुखर हुआ तो शेखावत को परेशानी हो सकती है.
कांग्रेस इस बात को कुरेदने में कोई कसर नहीं छोड़ रही. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जब भी जोधपुर आते हैं वे सांसद रहते हुए करवाए गए विकास कार्यों को गिनाते हैं. गहलोत तत्कालीन यूपीए सरकार की ओर से जोधपुर को एनएलयू, आईआईटी, निफ्ट और एफडीडीआई की सौगात देने का दावा करते हैं. गहलोत यह पूछने से भी नहीं चूकते कि पिछले पांच साल में यहां के सांसद से जोधपुर को क्या मिला. मुख्यमंत्री के इस सवाल का बीजेपी नेताओं के पास कोई जवाब नहीं होता.
जिस समय गजेंद्र सिंह शेखावत को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया तब जोधपुर की सबसे बड़ी मांग एयरपोर्ट विस्तार की थी. हालांकि शेखावत ने एयरपोर्ट विस्तार के लिए भरसक प्रयास किए, लेकिन इसके बावजूद यह प्रोजेक्ट आकार नहीं ले पाया. शेखावत के पास अपने कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाने के नाम पर भगत की कोठी रेलवे स्टेशन का विस्तार और एम्स अस्पताल के विस्तार के अलावा कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है.
जोधपुर को बड़ी सौगात के मुद्दे को किनारे कर चुनावी समीकरणों पर गौर करें तब भी गजेंद्र सिंह शेखावत की राह आसान नहीं दिखती. हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में राजपूत बाहुल्य माने जानी वाली शेरगढ़ ओर लोहावट सीटों के साथ-साथ जोधपुर शहर सीट पर भी बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा. यानी परंपरागत तौर पर बीजेपी के साथ रहने वाला तबकों ने भी पार्टी के उम्मीदवारों को वोट नहीं दिया. यदि यही ट्रेंड लोकसभा चुनाव में भी जारी रहा तो शेखावत की चुनावी गाड़ी अटकना तय समझिए.
कांग्रेस ने जिस तरह की सोशल इंजीनियरिंग विधानसभा चुनाव में दिखाई थी, उसी तरह की बिसात इस बार भी बिछा दी तो गजेंद्र शेखावत की राह काफी मुश्किल हो सकती है. शेखावत भी शायद इस सियासी सच्चाई को समझते हैं. यही वजह है कि चुनाव प्रचार के दौरान वे अपने नाम से कम बल्कि नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगते नजर आ रहे हैं. शेखावत हर सभा में इस बात को जरूर कहते हैं कि देश की सभी लोकसभा सीटों पर केवल नरेंद्र मोदी उम्मीदवार हैं. जोधपुर से मैं नहीं, मोदी चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि शेखावत एक बार फिर मोदी के नाम का सहारा लेकर चुनावी वेतरणी को पार कर पाते हैं या नहीं.