Politalks.News/WestBengal. भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या ममता बनर्जी की महत्वाकांक्षा से चिंतित हैं, और मान रहे हैं कि ममता वह कर सकती हैं, जो आज तक विपक्ष का कोई नहीं कर सका है? माना जाता है कि विपक्ष का कोई नेता लोकप्रियता और विश्वसनीयता के मामले में नरेंद्र मोदी को चुनौती नहीं दे सका है. अखिल भारतीय स्तर पर किसी नेता की वैसी पहचान और साख भी नहीं बनी है, जैसी मोदी की है. लेकिन अब बंगाल में लगातार तीसरी बार चुनाव जीतने और सीधे मुकाबले में मोदी और अमित शाह को हराने के बाद ममता चुनौती बन सकती हैं.
असल में ममता बनर्जी ने बंगाल विधानसभा चुनाव में कई मिथक तोड़े हैं. मोदी की लोकप्रियता, शाह की रणनीति और भाजपा की ध्रुवीकरण कराने की क्षमता के मिथक अब टूट गए हैं. इसका असर दूरगामी होगा. साथ ही ममता बनर्जी को दूसरे कई नेताओं के मुकाबले बहुत एडवांटेज हैं. उनके भतीजे को भ्रष्टाचार के आरोपों में घेरने की केंद्रीय एजेंसियों के तमाम प्रयासों के बावजूद ममता के भ्रष्ट होने का नैरेटिव नहीं बन पाया है. उनकी ईमानदारी और सादगी सहज रूप से लोगों को स्वीकार्य है. दूसरे, वे महिला हैं और जुझारू हैं. तीसरे, कांग्रेस छोड़ कर निकली हैं तो कांग्रेस के अखिल भारतीय नेटवर्क की जानकारी है, और चौथा, कांग्रेस छोड़ कर निकले नेताओं शरद पवार, जगन मोहन रेड्डी आदि से सीधे जुड़ाव है.
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इन सभी समीकरणों के बीच अगले साल पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और खासतौर पर उत्तरप्रदेश चुनाव को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि भाजपा हाईकमान और मोदी सरकार का प्रयास ये है कि किसी तरह ममता को बंगाल में रोके रखना है और उनकी अखिल भारतीय राजनीति की महत्वाकांक्षा पर लगाम लगानी है. इसके लिए सारे उपाय आजमाए जा रहे हैं. किसी न किसी तरह से उनको बंगाल के स्थानीय मामलों में उलझाया जा रहा है. चुनाव के बाद बंगाल के कुछ हिस्सों में हिंसा हुई थी, जो आमतौर पर होती है लेकिन इस बार भाजपा ने उसे बड़ा मुद्दा बना दिया. पिछले दो महीने से ममता बनर्जी का प्रशासन इसमें उलझा है. राज्यपाल और केंद्रीय मंत्रियों ने हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया और अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से लेकर राष्ट्रीय महिला आयोग तक इसकी जांच कराने में जुटे हैं.
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इस बीच केंद्रीय एजेंसियों ने नारदा स्टिंग ऑपरेशन के मामले में ममता बनर्जी को भी कानूनी पचड़े में उलझा दिया है. भाजपा नेताओं ने राज्य के बंटवारे का शिगूफा अलग छोड़ा हुआ है. पार्टी के सांसद जॉन बारला ने उत्तरी बंगाल के कुछ इलाकों को अलग करके केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग की है. अभी हाल में राज्यपाल जगदीप धनकड़ ने गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन यानी जीटीए के कामकाज में करोड़ों रुपए के फंड के दुरुपयोग की जांच सीएजी से कराने की बात कही है. इन सब मामलों की वजह से ममता बनर्जी प्रदेश से बाहर की राजनीति पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पा रही हैं. हालांकि उनकी तरफ से प्रशांत किशोर ममता बनर्जी के लिए कुछ काम कर रहे हैं, लेकिन जब तक ममता बंगाल से मुक्त होकर नहीं निकलेंगी तब तक बात नहीं बनेगी.