Politalks.News/World. बीते दिन जब हमारे देश में स्वतंत्रता दिवस का राष्ट्रीय पर्व धूमधाम के साथ मनाया जा रहा था, लोग तिरंगे के साथ आजादी के जश्न में डूबे हुए थे. उसी दौरान इसके बिलकुल उलट हमारे पड़ौसी अफगानिस्तान में लोगों की आजादी पूरी तरह से छीनी जा रही थी. आखिरकार पूरा देश तालिबान की गिरफ्त में आ गया और अफगानी जनता अब तालिबान के शिकंजे में कैद हो गई है. अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बीच काबुल एयरपोर्ट पर हजारों लोगों की भीड़ देखने को मिल रही है.
खबर लिखे जाने तक मिली जानकारी के मुताबिक रिपोर्ट्स आ रही हैं कि तालिबान ने लोगों से 17 अगस्त को सुबह 8 बजे तक घरों में ही रहने को कहा है. काबुल एयरपोर्ट से कमर्शियल फ्लाइट्स भी बंद कर दी गई हैं, सिर्फ सैन्य विमानों को उड़ान की इजाजत है. तालिबान के कब्जे के बाद ही काबुल एयरपोर्ट पर फायरिंग की भी खबर मिली है. हालांकि, अभी तक गोलीबारी में किसी के जान जाने की जानकारी नहीं है लेकिन एयरपोर्ट पर हर तरफ भगदड़ के वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं. दूसरी ओर, अफगानिस्तान में बिगड़ते हालात को देखते हुए आज संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाई गई है, जिसकी अध्यक्षता भारत करेगा.
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आपको बता दें, रविवार को कट्टरपंथी लड़ाकों ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर भी कब्जा कर लिया. तालिबान ने अफगान सरकार के आखिरी किले काबुल पर भी जीत हासिल कर अपना झंडा लगा दिया है. यहां की आर्मी-पुलिस व्यवस्था पर कट्टरपंथियों का नियंत्रण हो गया है. काबुल की पुलिस आत्मसमर्पण करने लगी है. वह अपने हथियार तालिबान को सौंप रही है. रविवार को तालिबानियों के काबुल में दाखिल होते ही अफगान सरकार समझौता करने को तैयार हो गई. सत्ता का ट्रांसफर किया जा रहा है. भारत समेत तमाम देश अफगानिस्तान पर नजर लगाए हुए हैं.
वहीं अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी और उपराष्ट्रपति अमीरुल्लाह सालेह देश छोड़कर भाग गए हैं. एक बयान में गनी ने कहा, ‘अगर अभी भी अनगिनत देशवासी शहीद होते और वे काबुल शहर का विनाश देखते, तो परिणाम इस 60 लाख आबादी वाले शहर में बड़ी मानव आपदा आ जाती.’ उपराष्ट्रपति सालेह ने कहा कि वह तालिबान के साथ नहीं रह सकते हैं. उन्होंने कहा कि वे तालिबान के आगे कभी नहीं झुकेंगे. मैं लाखों लोगों को निराश नहीं करूंगा, लोगों ने मुझ पर भरोसा किया है. वहीं अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई ने लोगों से अपील की है कि वह अपने घरों में ही रहें. दूसरी तरफ ‘अफगानिस्तान के रक्षा मंत्री ने कहा कि अशरफ गनी ने हमारे हाथ बांधकर हमें बेच दिया‘.
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आपको बता दें, अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा होने के बाद लोगों में राष्ट्रपति अशरफ गनी के खिलाफ गुस्सा है. इस गुस्से की एक झलक उस वक्त देखने को मिली जब भारत में अफगानी एंबेसी के ट्विटर अकाउंट को कथित तौर पर हैक करके गनी की निंदा की गई. हालांकि बाद में यह ट्वीट हटा दिया गया. भारत में अफगानी दूतावास के ट्विटर अकाउंट से लिखा गया था, ‘हमारा सिर शर्म से झुक गया है. अशरफ गनी अपने चमचों के साथ फरार हो गए. उन्होंने सब बर्बाद कर दिया है. हम एक भगोड़े के प्रति समर्पित होकर काम करने के लिए माफी मांगते हैं. उनकी सरकार हमारे इतिहास पर एक दाग होगी.’ इस ट्वीट में भारतीय विदेश मंत्रालय को भी टैग किया गया था.
बता दें कि अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के साथ ही नए राष्ट्रपति के नाम को लेकर स्थिति साफ होती नजर आ रही है. तालिबान के मुल्ला अब्दुल गनी बरादर नए राष्ट्रपति के रूप में देश की कमान संभाले जा रहे हैं. इसी के साथ तालिबान ने 20 साल बाद काबुल में फिर से अपनी ‘हुकूमत‘ कायम कर ली है. 2001 में अमेरिकी हमले के कारण तालिबान को काबुल छोड़कर भागना पड़ा था. राजधानी काबुल में इस समय चारों ओर अफरा-तफरी का माहौल है, लोग डर की वजह से जान बचाकर दूसरे देशों में भाग रहे हैं. भारत से लेकर अमेरिका तक तमाम देश अपने अपने अपने लोगों को वहां से बुलाने में लगा हुआ है. ‘पूरे देश में गृह युद्ध जैसे हालात बन गए हैं. कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं रह गई. भले ही तालिबान की ओर से शांति और सुरक्षा का आश्वासन दिया जा रहा है लेकिन लोगों को इनके ऊपर भरोसा नहीं है’.
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यहां हम आपको बता दें कि अफगानिस्तान में तालिबान की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि अमेरिका के नेतृत्व में कई देशों की सेना के उतरने के बाद भी इसका खात्मा नहीं किया जा सका. तालिबान का प्रमुख उद्देश्य अफगानिस्तान में इस्लामिक अमीरात की स्थापना करना है. 1996 से लेकर 2001 तक तालिबान ने अफगानिस्तान में शरिया के तहत शासन भी चलाया. जिसमें महिलाओं के स्कूली शिक्षा पर पाबंदी, हिजाब पहनने, पुरुषों को दाढ़ी रखने, नमाज पढ़ने जैसे अनिवार्य कानून भी लागू किए गए थे. 2001 से ही तालिबान अमेरिका समर्थित अफगान सरकार से जंग लड़ रहा है.
गौरतलब है कि अफगानिस्तान में तालिबान का उदय भी अमेरिका के प्रभाव से ही हुआ था. अब वही तालिबान अमेरिका के लिए सबसे बड़ा ‘सिरदर्द’ बना हुआ है. 1980 के दशक में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में फौज उतारी थी, तब अमेरिका ने ही स्थानीय मुजाहिदीनों को हथियार और ट्रेनिंग देकर जंग के लिए उकसाया था. नतीजन, सोवियत संघ तो हार मानकर चला गया लेकिन अफगानिस्तान में एक कट्टरपंथी आतंकी संगठन तालिबान का जन्म हो गया. फिलहाल इस देश में बद से बदतर हालात हैं. लाखों-करोड़ों अफगानी लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि इन कट्टरपंथियों से इस बार कब छुटकारा मिलेगा.