हरियाणा में विधानसभा चुनाव का ऐलान जल्द होने वाला है. संभावना जताई जा रही है कि चुनाव सितम्बर या अक्टूबर में हो सकते हैं. जिन नेताओं को लोकसभा चुनाव में कामयाबी नहीं मिली है, उनकी अगली आस विधानसभा चुनाव में टिकी है. ऐसे ही नेता हैं रोहतक के पूर्व सांसद दीपेंद्र हुड्डा.
दीपेंद्र को लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. उनको करीबी मुकाबले में बीजेपी के अरविंद शर्मा ने मात दी है. दीपेंद्र पहली बार 2005 के उपचुनाव में सांसद चुने गए थे जिसके बाद उनकी जीत का क्रम लगातार जारी रहा. 2014 की मोदी लहर में भी वो रोहतक से चुनाव जीतने में कामयाब रहे. लेकिन इस बार दीपेंद्र मोदी की आंधी का मुकाबला नहीं कर पाये और चुनाव हार बैठे.
लोकसभा चुनाव में हार के बाद दीपेंद्र हुड्डा अब प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होना चाह रहे हैं. दीपेंद्र ने इसके लिए विधानसभा चुनाव लड़ने का मन बना लिया है. यह तो सुनिश्चित है कि दीपेंद्र विधानसभा चुनाव में भाग लेंगे, लेकिन अभी तक यह तय नहीं हो पाया है कि वो किस सीट से चुनावी मैदान में उतरेंगे. दीपेंद्र के पिता भूपेन्द्र हुड्डा भी उनको चुनाव लड़ाने के पक्ष में है. भूपेन्द्र हुड्डा, दीपेंद्र को चुनाव लड़ाने के लिए रोहतक लोकसभा की दो सीटों पर विचार कर रहे है.
रोहतक जिले में करीब दो दशक से कांग्रेस का एक-क्षत्र राज है. लेकिन करीब से देखा जाये तो यह राज कांग्रेस का नहीं अपितु भूपेन्द्र हुड्डा का है. भूपेन्द्र हुड्डा रोहतक लोकसभा सीट से चार बार सांसद चुने गए. तीन बार उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री और दिग्गज़ नेता देवीलाल को मात दी.
2014 के विधानसभा चुनाव में पूरे हरियाणा में कांग्रेस का सफाया हुआ, लेकिन हुड्डा फिर भी अपने गढ़ में कमजोर नहीं हुए. रोहतक जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन शानदार रहा. हालांकि लोकसभा चुनाव में उनके पुत्र रोहतक से चुनाव हार गए. लेकिन नतीजों का अगर बारीकी से अवलोकन किया जाये तो दीपेंद्र सिंह हारकर भी जीते हैं. इस तथ्य का कारण है कि जब विपक्षी पार्टियों के उम्मीदवार बीजेपी प्रत्याशियों के सामने लाखों के अंतर से चुनाव हार रहे थे, वहां दीपेंद्र हुड्डा की हार का अंतर केवल सात हजार रहा.
अपने पिता की सीट से चुनाव लड़ेंगे हुड्डा
भूपेन्द्र हुड्डा अपने पुत्र दीपेंद्र हुड्डा को स्वयं की परम्परागत सीट गढ़ी सांपला किलोई चुनाव लड़ा सकते हैं. किलोई से चुनाव लड़ाने का उद्धेश्य यह है कि भूपेन्द्र हुड्डा का मानना है कि दीपेंद्र यहां आसानी से चुनाव जीतने में कामयाब हो जाएंगे. भूपेन्द्र हुड्डा किलोई विधानसभा से 1999 से लगातार विधायक चुनते आ रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने इनेलो के सतीश नांदल को करीब 47 हजार वोटों से धूल चटाई थी. हरियाणा के हिसाब से जीत का यह अंतर काफी बड़ा है क्योंकि यहां विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या कम होती है.
अब सवाल यह है कि अगर दीपेंद्र किलोई से चुनाव लड़ेंगे तो भूपेन्द्र हुड्डा किस सीट से चुनाव लड़ेगे. भूपेन्द्र हुड्डा का भी विधानसभा चुनाव लड़ना जरुरी है क्योंकि हरियाणा की राजनीति में जीवित रहने के लिए भूपेन्द्र हुड्डा का चुनाव लड़ना आवश्यक है. दीपेंद्र के किलोई सीट से चुनाव लड़ने पर संभव है कि भूपेन्द्र हुड्डा बेरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते दिखें.
बेरी भी किलोई की तरह कांग्रेस का मजबूत क्षेत्र है. पिछले चार चुनाव से बेरी में कांग्रेस जीतती आ रही है. बेरी के विधायक रघुवीर सिंह कादियान भी भूपेन्द्र हुड्डा के विश्वस्त माने जाते हैं. ऐसे में अगर भूपेन्द्र हुड्डा उनसे आग्रह करेंगे तो रघुवीर सिंह खुशी-खुशी मैदान खाली कर देंगे.