ट्रेंड के विपरीत गुजरात चुनाव में मत प्रतिशत का कम होना BJP के लिए चिंताजनक, सीटें गिरने का है संकेत

गुजरात में इस बार 5 फीसदी कम वोटिंग, पिछले 5 विधानसभा चुनावों में 3 बार वोट प्रतिशत गिरा तो BJP की सीटें भी घटीं, जब वोटिंग परसेंट बढ़ा तो बीजेपी की सीटें बढ़ीं, जबकि ट्रेंड यह कि मत प्रतिशत का बढ़ना सत्ताधारी पार्टी के विपरित परिणाम, गुजरात का इतिहास ट्रेंड के विपरीत

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GujaratAssemblyElections. गुजरात विधानसभा चुनाव का दूसरा और अंतिम चरण का मतदान बीते रोज सोमवार को समाप्त हो गया. चुनाव के इस दूसरे फेज में 14 जिलों की 93 सीटों के लिए मतदान हुआ. चुनाव आयोग द्वारा जारी अंतिम आंकड़ों के अनुसार, गुजरात मे सैकेंड फेज में 59.71% मतदान हुआ. यह आंकड़ा शाम 5 बजे तक का है. हालांकि यह फाइनल डेटा नहीं है. फाइनल आंकड़ों में मामूली बढ़त हो सकती है और दूसरे फेज का यह आंकड़ा 64 से 65 फीसदी तक जा सकता है. बता दें कि सबसे ज्यादा 65.84% साबरकांठा में और सबसे कम 54.26% मतदान महिसागर में दर्ज किया गया. दूसरे फेज में 833 कैंडिडेट्स मैदान में हैं. फर्स्ट फेज की तरह सेकेंड फेज में भी शहरों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में वोटिंग का प्रतिशत ज्यादा रहा है.

यहां सबसे पहले आपको यह बता दें कि ऐसी धारणा यानी टेंड माना जाता है कि किसी भी राज्य के चुनावों में मत प्रतिशत का कम होना अमूमन सत्ताधारी पार्टी के पक्ष में होना माना जाता है, जबकि मत प्रतिशत का पिछले चुनावों से ज्यादा होना सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ जनाक्रोश यानी एंटीइनकंबेंसी का प्रतीक होता है. लेकिन इस धारणा के विपरीत गुजरात में इसका उल्टा होता आया है. मत प्रतिशत का कम होना यहां सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के विपरीत माना जाता रहा है. आइए आपको विस्तार से इसकी गणित समझाते हैं.

आपको बता दें कि इस बार के गुजरात विधानसभा चुनावों के प्रथम चरण में 63.31% मतदान पड़े, वहीं दूसरे चरण के अनुमानित मत प्रतिशत को जोड़ दें तो गुजरात में औसतन कुल 64% के करीब मतदान हुआ है. अब पिछली बार 2017 में गुजरात में हुए विधानसभा चुनाव से तुलना करें तो इस बार वोटिंग प्रतिशत में 5 फीसदी की गिरावट देखने को मिली. पिछली बार गुजरात में 69.2% वोट पड़े थे. अगर गुजरात के पिछले 5 विधानसभा चुनावों पर एक नजर डालें तो जब जब वोटिंग प्रतिशत घटा, तब तक बीजेपी की सीटें भी घटी हैं. पिछले गुजरात विस चुनावों में बीजेपी को 99 सीटें हासिल हुई थी. अगर इतिहास दोहराया जाता है तो इस बार बीजेपी बहुमत के केवल आसपास ही नजर आएगी.

बात करें वोटिंग प्रतिशत गिरने की तो साल 2012 के विस चुनाव में सिर्फ एक बार ऐसा कि वोटिंग प्रतिशत बढ़ने के बाद भी बीजेपी की सीटें गिरी. इसके अलावा, जब जब वोटिंग प्रतिशत गिरी, बीजेपी ने अपनी कुछ सीटें गंवाई हैं. साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में 3 फीसदी कम वोटिंग हुई. इस साल बीजेपी ने अपनी 16 सीटें गंवाई. ये सभी सीटें कांग्रेस के हिस्से में आई थी. बीजेपी को 99 और कांग्रेस को 77 सीटें मिली.

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इससे पहले साल 2012 में 72.5 फीसदी वोटिंग हुई. यह साल 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में हुए वोटिंग प्रतिशत से 13 फीसदी अधिक मतदान हुआ. हालांकि इस साल बीजेपी ने अपनी दो प्रतिशत सीटें गंवाई थी. कांग्रेस ने इतनी ही अधिक सीटों पर कब्जा जमाया. बीजेपी के हिस्से में 115 और कांग्रेस के हिस्से में 61 सीटें आयीं.

इससे पहले साल 2007 में दो फीसदी वोटिंग प्रतिशत घटा और साल 2002 में इतने ही प्रतिशत मतदान बढ़ा. इसका नतीजा ये हुआ कि बीजेपी के खाते में क्रमश: दो सीटों की गिरावट और अगले चुनावों में दो सीटों का फायदा बीजेपी को हुआ. इस दौरान कांग्रेस के खाते में क्रमश: 8 सीटों का फायदा और दो सीटों का नुकसान हुआ. साल 2007 में बीजेपी को 117 और कांग्रेस को 59 सीटें प्राप्त हुईं. इस साल कुल वोटिंग प्रतिशत 59.8 फीसदी मतदान हुआ. साल 2002 में बीजेपी के खाते में 127 और कांग्रेस के हिस्से में 51 सीटें प्राप्त हुई. इस साल 61.5 फीसदी वोटिंग हुई.

साल 1998 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भी 5 फीसदी वोट कम पड़े और इस साल बीजेपी ने पिछली बार के मुकाबले 4 सीटें कम हासिल की. इस दौरान कांग्रेस को 8 सीटों की बढ़त मिली. इस साल पिछले साल के मुकाबले 5 प्रतिशत वोटिंग कम हुई. इस दौरान बीजेपी को 117 और कांग्रेस को 53 सीटें प्राप्त हुई. इससे पहले साल 1995 में वोटिंग प्रतिशत में 5 फीसदी का इजाफा हुआ था. बीजेपी को इस साल 121 और कांग्रेस को 45 सीटें हासिल हुई थी.

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इस बार भी गुजरात में वोटिंग प्रतिशत 5 प्रतिशत से अधिक कम रहा है. हालांकि देखा जाए तो यह वोटिंग परसेंटेज पिछले 10 सालों के मुकाबले कम है. गुजरात की 182 विधानसभा सीटों पर दो चरणों में मतदान हुआ है. वैसे तो हर बार प्रमुख मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस में ही होता है लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी की एंट्री ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है. इस बार आम आदमी पार्टी की रणनीति मुख्य विरोधी दल बनकर विपक्ष में बैठना है. चुनाव विशेषज्ञों का भी यही मानना है कि बीजेपी की जीत पक्की है लेकिन इस बार बहुमत के लिए बीजेपी को पसीना बहाना पड़ सकता है. हालांकि मुकाबला जीत हार का नहीं बल्कि लड़ाई नंबर दो और नंबर तीन के लिए भी है. संभावना जताई जा रही है कि आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन कांग्रेस को नंबर दो से तीन पर खिसकाने में सफल हो सकती है.

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