यूपी के चुनावी रण में कांग्रेस की अकेले उतरने की मजबूरी, पार्टी को अब प्रियंका की सक्रियता से चमत्कार की आस

यूपी का चुनावी रण, काफी जद्दोजहद के बाद भी कांग्रेस के हाथ खाली, जब गठबंधन की नहीं बात तो अकेले चुनाव में उतरने का किया ऐलान, हालांकि कांग्रेस को अब भी सपा के अच्छे ऑफर का इंतजार, पार्टी को प्रियंका की सक्रियता, किसान आंदोलन और कमरतोड़ महंगाई से है उम्मीद

यूपी के चुनावी रण में कांग्रेस की अकेले उतरने की मजबूरी
यूपी के चुनावी रण में कांग्रेस की अकेले उतरने की मजबूरी

Politalks.News/Uttarpradesh. उत्तरप्रदेश चुनाव में जारी घमासान के बीच गठबंधन और जोड़तोड़ की राजनीति अपने चरम पर है. आज भी एक विधायक तोड़ने के जवाब में भाजपा ने सपा के 4 MLC तोड़ अखिलेश को बड़ा झटका दिया है. इधर बात की जाए गठबंधन की तो करीब सभी छोटी पार्टियों ने साझेदार ढूंढ लिए हैं. गठबंधन के मामले में हाथ खाली है तो वो पार्टीयां हैं कांग्रेस और बसपा. काफी जद्दोजहद के बाद भी दोनों ही पार्टियों को कोई पार्टनर नहीं मिला है. बसपा तो अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है. कांग्रेस ने काफी प्रयास किया की गठबंधन की बात बन जाए, अखिलेश और जयंत चौधरी से मुलाकात भी हुई लेकिन बात नहीं बनी. अब थक हार कर पार्टी ने अकेले ही चुनाव में उतरने का फैसला कर लिया है. बिना साथी सिर्फ प्रियंका की सक्रियता और किसान आंदोलन से बनी आस के बूते प्रदेशाध्यक्ष अजय सिंह लल्लू ने अकेले मैदान में उतरने और बहुमत हासिल करनेबका दावा ठोक दिया. हालांकि सियासी गलियारों में चर्चा इस बात की है कि अब भी कांग्रेस को सपा के अच्छे ऑफर का इंतजार है

अजय सिंह ने किया कांग्रेस के अकेले उतरने और बहुमत का दावा
जैसा हमने बताया अब कांग्रेस कह रही है कि यूपी में विधानसभा का चुनाव अकेले ही लड़ा जाएगा. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय सिंह लल्लू ने कहा है कि, ‘कांग्रेस अकेले राज्य की सभी 403 सीटों पर लड़ेगी और पूर्ण बहुमत हासिल करेगी. सवाल है कि फिर पार्टी की महासचिव और प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने क्यों कहा था कि कांग्रेस छोटी और समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ तालमेल कर सकती है? जब उन्होंने एक महीने पहले तालमेल के लिए कहा था तो अब क्या होगा कि पार्टी अकेले लड़ने की बात कर रही है?

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जयंत चौधरी को सपा का मैसैज!
बात दरअसल यह है कि कांग्रेस ने पिछले एक महीने में बहुत प्रयास किया है कि उसे कोई सहयोगी पार्टी मिले और उसका गठबंधन हो जाए. यहां तक कि समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव से भी बात की गई और राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी से भी बात की गई. प्रियंका गांधी से जयंत चौधरी के मिलने और एक साथ जहाज से दिल्ली की यात्रा की खूब चर्चा हुई. थोडे दिन के बाद जयंत चौधरी ने साफ कर दिया कि उनकी पार्टी कांग्रेस से तालमेल नहीं करेगी. कांग्रेस से जुड़े जानकार सूत्रों के मुताबिक जयंत ने कांग्रेस से तालमेल का विकल्प इसलिए बंद किया है क्योंकि उनको सपा की ओर से कहा गया है कि अगर वे गठबंधन में रहना चाहते हैं तो स्वतंत्र रूप से किसी से तालमेल की बात न करें. अगर कांग्रेस से बात होगी तो सपा करेगी और उसी समय रालोद की सीटें भी एडजस्ट होंगी.

सपा से गठबंधन में है सीटों का पचड़ा
जहां तक समाजवादी पार्टी के कांग्रेस से तालमेल करने की बात है तो उसमें सीटों का पचड़ा है. कांग्रेस को जितनी सीटें चाहिए सपा किसी हाल में उतनी सीटें नहीं देगी. इसका कारण यह है कि सपा को लग रहा है कि इस बार भाजपा के खिलाफ माहौल है और वे इकलौता विपक्ष हैं. दूसरी ओर कांग्रेस को लग रहा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा की सक्रियता और किसान आंदोलन को कांग्रेस के समर्थन से कांग्रेस के प्रति बेहतर माहौल है, जिसका अधिकतम लाभ पार्टी को मिलना चाहिए.

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छोटी पार्टियां हो चुकी है बड़े जहाजों में सवार!
कांग्रेस के सामने एक मजबूरी यह भी हो गई कि राज्य की तमाम छोटी पार्टियों ने किसी न किसी के साथ गठबंधन कर लिया है. निषाद पार्टी भाजपा के साथ गई तो सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का सपा से तालमेल हो गया है. अपना दल पहले से भाजपा के साथ है. चंद्रशेखर आजाद और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का तालमेल भी हो गया है. तो अब कोई पार्टी बची नहीं है, जिसके साथ कांग्रेस का तालमेल हो तभी कांग्रेस के पास अकेले लड़ने या सपा की ओर से किसी अच्छे प्रस्ताव का इंतजार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है.

कांग्रेस को प्रियंका और उनके प्रयोगों से आस
उत्तर प्रदेश के चुनावी रण में अकेले उतरने की तैयारी में कांग्रेस नित नए प्रयोग करने में लगी हुई है. 3 दशकों से ज्यादा के सियासी वनवास को मिटाने के लिए प्रियंका गांधी ने यूपी की कमान संभाल ली है. कांग्रेस को भी प्रियंका की सक्रियता और किसान आंदोलन से आस है. दरअसल, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा हुआ है. चुनौती केवल ये नहीं है कि सत्ता मिले, चुनौती ये भी नहीं है कि सत्ता न सही तो सत्ता में भागीदारी ही मिले…चुनौती तो सबसे बड़ी ये है कि पार्टी कम से कम यूपी में पुनर्जीवित हो उठे, संगठन खड़ा हो ताकि 2022 न सही 2024 में तो लड़ाई कुछ हद तक तो सधे.

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इसी जद्दोजहद में कांग्रेस पार्टी यूपी में सियासत को एकदम नए अंदाज में करने की कोशिश कर रही है. यूपी की चुनावी लड़ाई में लीड लेने के लिए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कई प्रतिज्ञाएं लीं और उनमें से एक प्रमुख ये है कि 40 फीसदी टिकट महिलाओं को दिए जाएंगें. जैसा की सभी को पता है कि महिला आरक्षण देश में बड़ा मुद्दा है लिहाजा आधी आबादी को साधकर कांग्रेस अपने सियासी सपने को पूरा करने का पहला प्लान पेश कर चुकी है. लेकिन राज की बात ये है कि प्रयोगों के सिलसिले को चला रहीं प्रियंका यहीं नहीं रुकने वाली हैं. एक और बड़ा प्रयोग आने वाले वक्त में और देखने को मिल सकता है.

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