केरल (Kerala) के कांग्रेस सांसद शशि थरूर (Shashi Tharoor) ने कहा है कि चुनाव के जरिए नए कांग्रेस अध्यक्ष (Congress President) की नियुक्ति होनी चाहिए. लोकतंत्र में पार्टी को मजबूत बनाए रखने के लिए जरूरी है लोकतांत्रिक तरीकों का पालन किया जाए. पिछले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) सर्वसम्मति से चुने गए थे. उन्होंने लोकसभा चुनाव में पार्टी की पराजय के बाद इस्तीफा दे दिया है. फिलहाल सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष बनी हुई हैं.
शशि थरूर (Shashi Tharoor) अपनी नई किताब ‘द हिंदू’ के विमोचन समारोह के दौरान पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत कर रहे थे. कांग्रेस की मौजूदा स्थिति के बारे में उन्होंने कहा कि कांग्रेस के सामने चुनाव ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है. कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए कई नेता कतार में हैं, लेकिन जब तक संगठन चुनाव की प्रक्रिया शुरू नहीं होगी, कोई आगे नहीं आएगा. उनके सामने कुछ नेताओं ने अध्यक्ष पद संभालने की मंशा जाहिर की है. लेकिन वे फिलहाल इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से कुछ कहने से बच रहे हैं, क्योंकि अगर उन्होंने अध्यक्ष बनने की इच्छा जाहिर की तो पार्टी के कई लोग उनका विरोध करने लगेंगे.
थरूर ने कहा, फिलहाल पार्टी के भविष्य को लेकर कई तरह की अटकलें चल रही हैं, जिससे कई तरह की गलतफहमियां पैदा हो रही हैं. इसके मद्देनजर वह सार्वजनिक रूप से इस मुद्दे पर बोल रहे हैं. अगर कांग्रेस ने लोकतांत्रिक तरीके से संगठन में चुनाव नहीं करवाए तो यह पार्टी के लिए आत्मघाती होगा. अभी हालत यह है कि कौन किसका समर्थन कर रहा है, किसका विरोध कर रहा है, समझ में नहीं आता. धारा 370 को लेकर पार्टी में मतभेद हैं. कई लोग मानते हैं कि यह धारा अस्थायी तौर पर लागू थी. जवाहरलाल नेहरू ने भी इस व्यवस्था को अस्थायी बताया था.
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थरूर ने कहा कि धारा 370 (Article 370) हटाने में कोई हर्ज नहीं, लेकिन इस फैसले को लागू करने का तरीका गलत और गैर लोकतांत्रिक था. इससे पहले राज्य के लोगों विश्वास में लिया जाना था. वहां के स्थानीय नेताओं को गिरफ्तार करके सरकार ने लोकतंत्र को ही ताले में बंद कर दिया है. पाबंदियां हटने के बाद जब लोगों का विरोध सामने आएगा, तब सरकार पर परिस्थितियों को काबू में करने की चुनौती रहेगी.
थरूर ने कहा कि 1972 के बाद से अब तक जम्मू-कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में नहीं पहुंचा था. धारा 370 हटने के बाद पहली बार ऐसा हुआ, जब इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक हुई. हालांकि यह बैठक बंद कमरे में हुई थी, लेकिन फिर भी इस तरह की बैठक रोकने के प्रयास किए जा सकते थे. पहले भी इस तरह की बैठक बुलाने के प्रयास होते रहे हैं, लेकिन भारत की कूटनीति के कारण इस तरह की बैठक कभी नहीं हुई. इस तरह की बैठक एक हद तक भारत की कूटनीतिक विफलता ही मानी जाएगी.
थरूर ने इस बात के लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर की प्रशंसा की कि उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष मजबूती से रखा और विवाद को आगे बढ़ने से रोक दिया. लेकिन इसका ज्यादा मतलब नहीं है, क्योंकि जो नुकसान होना था, वह हो चुका है. उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर का विवाद खत्म नहीं होने वाला है. जैसे ही कर्फ्यू और अन्य पाबंदियां हटेंगी, लोग फिर सड़कों पर उतरेंगे. हिंसा भी हो सकती है. इस परिस्थिति से निबटना सरकार के लिए मुश्किल होगा.