संसद और विधानसभा में हंगामे के सीन आम हैं. किसी मुद्दे पर सरकार को घेरने का यह सबसे प्रचलित जरिया है, लेकिन जब सदन में विपक्ष की बुलंद आवाज नक्कारखाने में तूती साबित होती है तो ऐसे रास्ते अपनाने से भी गुरेज नहीं होता जो ऐतिहासिक बन जाते हैं. कुछ ऐसा ही वाकया राजस्थान की विधानसभा में साल 2017 में हुआ. उस समय राजस्थान में 163 सीटों के प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली वसुंधरा सरकार थी और महज 21 सीटों पर सिमटी कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में थी.
अक्टूबर के महीने में विधानसभा का सत्र चल रहा था और कांग्रेस विधायक किसानों की समस्याओं और कर्जमाफी पर हंगामा कर रहे थे, लेकिन इससे सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी तो विपक्ष ने अपनी मांगों को मनवाने का मजेदार तरीका चुना. हंगामे के चलते विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल ने सदन की कार्यकाही अगले दिन तक के लिए स्थगित कर दी. मेघवाल आसन से उठकर चले गए और मंत्री व सत्ता पक्ष के विधायक भी बाहर निकल गए, लेकिन कांग्रेस विधायक वहीं धरने पर बैठ गए.
सबको लगा था कि विपक्ष के विधायक कुछ देर में उठकर चले जाएंगे, लेकिन वे टस से मस नहीं हुए. नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी ने एलान कर दिया कि जब तक हमारी मांगें नहीं मानी जाती तब तक विधानसभा के भीतर धरना जारी रहेगा. टेंट हाउस से बिस्तर मंगवाए गए और होटल से खाना. विधायकों ने खाना खाया और विधानसभा की लॉबी में बिस्तर बिछाकर सो गए. यानी विधानसभा बेडरूम बन गया. नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी, धीरज गुर्जर, रमेश मीणा, गोविंद सिंह डोटासरा, घनश्याम मेहर, रामनारायण गुर्जर, दर्शन सिंह, मेवाराम जैन, सुखराम विश्नोई, शकुंतला रावत, श्रवण कुमार, भंवर सिंह भाटी, भंवर लाल शर्मा, विजेंद्र ओला, महेंद्रजीत सिंह मालवीय व भजन लाल जाटव इनमें शामिल थे.
इनके अलावा निर्दलीय नंदकिशोर महरिया व राजकुमार शर्मा और बसपा विधायक मनोज न्यांगली ने यहीं करवट बदली. विपक्ष के विधायकों को मनाने के लिए विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष आए, विधायकों ने उनकी भी नहीं सुनी और अपना धरना जारी रखा. हालांकि सुबह होने पर सब अपने—अपने घर तैयार होने के लिए चले गए.