Politalks.News/Congress/CWC. एक साथ पांच राज्यों में करारी हार का स्वाद चख चुकी देश की सबसे पुरानी कांग्रेस (Congress) पार्टी अब दुबारा से अपने आप को खड़ा करने के लिए कमर कस रही है. चुनावी हार के बाद हुई CWC की बैठक में कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद हार की समीक्षा कर सुधार के लिए रणनीति तैयार करने के लिए पार्टी का एक ‘चिंतन शिविर’ बुलाने का निर्णय किया था. जानकारों की मानें तो इससे पहले पार्टी आलाकमान की ओर से कांग्रेस कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) की एक और बैठक बुलाई जाएगी. पार्टी से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि हम तारीखों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में हैं.साथ ही पार्टी के ‘चिंतन शिविर’ में जिन मामलों को ध्यान में रखा जाना है, उन पर भी चर्चा चल रही है.
आपको बता दें, कभी पूरे भारत मे राज करने वाली देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अब केवल दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता में बची है, वहीं महाराष्ट्र व झारखंड में सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है. यही कारण है कि इन पांच राज्यों में मिली करारी हार के बाद आलाकमान बेहद चिंतित और सतर्क है. हार की समीक्षा के लिए होने वाले कांग्रेस के चिंतन शिविर की तैयारी को लेकर पहले भी कई बैठकें हो चुकी हैं. कांग्रेस वार रूम में बीते मंगलवार को हुई बैठक में अंबिका सोनी, जयराम रमेश, मुकुल वासनिक और पार्टी महासचिव संगठन केसी वेणुगोपाल ने चिंतन शिविर की तैयारियों को लेकर चर्चा की है. पार्टी के सूत्र के अनुसार, दो-तीन दिनों के भीतर ‘चिंतन शिविर’ के अंतिम प्रस्ताव जैसे एजेंडा, तारीख और स्थल पर काम समाप्त हो जाएगा.
गुजरात या हिमाचल में होगा चिंतन शिविर!
पार्टी सूत्रों की मानें तो अपना अस्तित्व बचाने में जुटी सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी इस बात पर गंभीरता से विचार कर रही है कि यह स्थल गुजरात या हिमाचल प्रदेश जैसे चुनावी राज्यों में होना चाहिए, जहां साल के अंत में चुनाव होने हैं. हालांकि बीती 13 मार्च को हुई CWC बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी पार्टी नेताओं के साथ इस बारे में विचार-विमर्श किया था और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने चिंतन शिविर के लिए राजस्थान आने का न्यौता भी आलाकमान को दिया था, लेकिन सूत्रों की मानें तो पार्टी गुजरात या हिमाचल प्रदेश जैसे चुनावी राज्य में ही करेगी चिंतन शिविर. यहां आपको बता दें, पिछली CWC की बैठक में पार्टी से नाराज चल रहे G23 के नेता भी शामिल थे, जो मौजूदा नेतृत्व की आलोचना करते हैं और संगठनात्मक बदलाव की मांग कर रहे हैं.