sachin pilot
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Rajasthan Politics: देश की राजनीति में इस समय दो राज्यों की सियासत हलचल चरम पर है और नेशनल लेवल मीडिया की सुर्खियों में लगातार बनी हुई है. कर्नाटक और राजस्थान. वो इसलिए भी है क्योंकि शपथ ग्रहण से पहले तक कर्नाटक की परिस्थितियां भी राजस्थान और मध्यप्रदेश जैसी बन गई थीं. जिस तरह मध्यप्रदेश में विस चुनाव के बाद कमलनाथ एवं ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजस्थान में अशेाक गहलोत एवं सचिन पायलट के बीच सीएम पद को लेकर दोवदारी पर पेंच फंस गया था, उसी तरह कर्नाटक में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच भी ऐसी ही परिस्थितियां पैदा हुई थी. इस स्थिति को कांग्रेस आलाकमान ने ठीक उसी तरह से हैंडल किया, जैसा राजस्थान व एमपी में किया. परिणाम क्या निकला, ये सभी को पता है. कर्नाटक में भी वरिष्ठता को तरजीह देते हुए यहां भी सिद्धारमैया को सीएम बनाया गया और डीके को डिप्टी सीएम. सारा मामला खत्म हो चुका है लेकिन पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त.

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद सीएम की दावेदारी में पेंच फंसते देख राहुल गांधी ने कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच दावेदारी को लेकर सुलह करा दी थी लेकिन बाद में क्या हुआ. सिंधिया अपने 28 समर्थित विधायकों को लेकर चलते बने और तख्ता पलट कराते हुए शिवराज सिंह चैहान को कुर्सी पर आसीन कराते हुए बीजेपी सरकार की ओट में जा दुबके. कुछ ऐसी ही कहानी राजस्थान में भी घटित होते होते रह गई. सिंधिया कांड के कुछ ही महीनों बाद सचिन पायलट भी अपनी मांगों को लेकर 19 समर्थित विधायकों (जिनमें मंत्री भी शामिल थे) को लेकर मानेसर के एक रिसोर्ट में जा बैठे. सरकार अस्थिर होने की नौबत आ गई थी लेकिन पायलट के पास संख्या कम होने के चलते सरकार गिरने से बच गई.

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वहां कांग्रेस आलाकमान ने वक्त की नाजुकता को देखते हुए पायलट एंड गेंग पर कोई एक्शन नहीं लिया. यहां शायद उनसे गलती हो गई या फिर ऐसा भी हो सकता है कि राजस्थान कांग्रेस में अशोक गहलोत के बाद सचिन पायलट ही पार्टी फेस है. इस कांड के दो साल तक पायलट और उनके गुट के नेता छुटपुट बयानबाजी के अलावा शांत रहे लेकिन जैसे ही चुनाव करीब आए, फिर से उनमें जोश जाग उठा. जोश भी ऐसा जागा कि अपनी ही सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगा दिया. मंत्री गुढ़ा ने तो गहलोत सरकार को वसुंधरा सरकार से भी भ्रष्ट सरकार बता दिया. पायलट गुट ने आलाकमान तक को 15 दिन का अल्टिमेटम दिया है. अब पायलट दिल्ली के जंतर मंतर पर चल रहे पहलवान खेमे में पहुंच गए और वहां रेस्लर्स के हित में बोलते हुए नेशनल मीडिया पर छा गए.

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अब देखा जाए तो राजस्थान कांग्रेस की सियासत में चुनावी साल में ‘हम साथ साथ हैं’ की कहावत सिद्ध होनी चाहिए थी लेकिन यहां तो मै, मैने, वो, उन्होंने आदि का बोलबाला चल रहा है. पहले वार और उसके बाद पलटवार चल रहा है. राहुल गांधी, सोनिया गांधी और रंधावा इन सब बातों को पिछले एक महीने से देख रहे हैं लेकिन चुप्पी साधे बैठे हैं. दरअसल, आलाकमान कर्नाटक में सीएम शपथ घोषणा का इंतजार कर रहा है. अगर अभी कुछ भी किया जाता तो कर्नाटक में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के साथ-साथ अन्य नेताओं में भी गलत मैसेज जा सकता है. इससे उलट आलाकमान कर्नाटक से फ्री होकर सचिन पायलट पर कोई कार्रवाई भी कर सकता है. चूंकि अगर ऐसा ही चलता रहा तो निश्चित तौर पर इस तरह के आंदोलन जारी रहेंगे और ये कांग्रेस को नुकसान ही पहुंचाएंगे.

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इधर, सचिन पायलट का कांग्रेस में भविष्य भी विधानसभा चुनावों पर ही निर्भर करेगा. सचिन पायलट अब लोकसभा चुनाव से मुंह मोड़ चुके हैं. अगर विधायक बन भी गए और सरकार बदल गई तो वे केवल एक विधायक बनकर रह जाएंगे. सरकार रिपीट होने के आसार इन हालातों में तो बिलकुल भी बन नहीं रहे हैं. लोकसभा चुनावों में मोदी सरकार का फिर से सत्ता में आना निश्चित दिख रहा है. ऐसे में पायलट को भी सिंधिया की तरह राज्यसभा से मंत्री पद का आॅफर आसानी से मिल जाएगा. उसके बाद सचिन पायलट 5 साल एक विधायक की तरह रहने की बजाए दिल्ली जाकर मंत्री पद की अवसरवादिता का लाभ उठाना ज्यादा पसंद करेंगे, जैसा कि उनके पुराने दोस्त एवं साथी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किया था.

कुछ इसी तरह की परिस्थितियां कर्नाटक में न बने, इसके लिए आलाकमान को सिद्धारमैया और डीके पर नजर गढ़ाए रखनी होगी. डीके की मेहनत सभी को पता है और राहुल गांधी की पहली पसंद डीके ही हैं लेकिन भ्रष्टाचार को लेकर चुनाव लड़ रही कांग्रेस के नेता डीके जिनके खुद पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. यही वजह है कि वो सीएम रेस में पिछड़ गए. अब डीके आगे चलकर कहीं सिंधिया और पायलट की तरह कर्नाटक के पायलट न बन जाएं. इसके लिए जरूरी है कि कर्नाटक का रायता सिमटते ही कांग्रेस आलाकमान को राजस्थान की तरफ ध्यान देना चाहिए. अगर यहां आलाकमान सुस्ती बरतता है तो पायलट राजस्थान के ‘सिंधिया’ साबित होंगे. वहीं अगर ये सब घटित होता है तो कर्नाटक की राजनीति में भी एक पायलट या एक सिंधिया पैदा होते वक्त नहीं लगेगा.

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