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देश में लंबे समय से खामोश ‘मीटू’ का जिन्न अब न्यायपालिका जा पहुंचा है और इसकी जद में आए हैं देश के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई. उनके घर पर काम कर रही जूनियर असिस्टेंट ने गोगोई पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं. हालांकि गोगोई ने अपने उपर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों का खंडन करते हुए कहा है कि न्यायपालिका की आजादी खतरे में पड़ गई है. उन्होंने बताया कि जिस महिला ने उन पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए, उसका आपराधिक इतिहास रहा है. उसके खिलाफ पहले से दो एफआईआर तक दर्ज हैं. वहीं सुप्रीम कोर्ट के कई वकीलों ने इस मामले की जांच के प्रोसीज़र पर सवाल उठाए हैं.

आरोप लगाने वाली महिला सीजेआई के घर में बतौर जूनियर असिस्टेंट काम करती थी. पिछले साल जब रजिस्ट्री कार्यालय में उसके खिलाफ अनुचित व्यवहार करने की शिकायत हुई, तब उसे नौकरी से निकाल दिया गया था. उसके बाद महिला ने जस्टिस गोगोई पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए. सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई के खिलाफ आरोपों पर सुनवाई पूरी कर ली है. मामला सामने आने के बाद केस की तुरंत सुनवाई के लिए न्यायाधीश अरुण मिश्रा और न्यायाधीश संजीव खन्ना की तीन सदस्यीय पीठ गठित की गई थी.

पीटीआई से मिली जानकारी के अनुसार, सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा, ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता बेहद गंभीर खतरे में है. यह अविश्वसनीय है. मुझे नहीं लगता कि इन आरोपों का खंडन करने के लिए मुझे इतना नीचे उतरना चाहिए. कोई मुझे पैसे के मामले में नहीं पकड़ सकता है. लोग कुछ ढूंढना चाहते हैं और उन्हें यह मिला. इसके पीछे कोई बड़ी ताकत होगी. वे सीजेआई के कार्यालय को निष्क्रिय करना चाहते हैं.

गोगोई के अनुसार, ‘न्यायिक प्रणाली में लोगों के विश्वास को देखते हुए हम सभी न्यायपालिका की स्वंतत्रता को लेकर चिंतित हैं. इस तरह के अनैतिक आरोपों से न्यायपालिका पर से लोगों का विश्वास डगमगाएगा.’ उन्होंने कहा कि मेरी सेवा के अभी सात महीने बचे हैं. मैं अगले हफ्ते एक संवेदनशील मामले की सुनवाई करने जा रहा हूं. इस दौरान मुझे अन्य मामलों की सुनवाई कर फैसले देने हैं.

बता दें, सीजेआई रंजन गोगोई पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाने वाली महिला ने सुप्रीम कोर्ट के सभी 22 जजों को एक चिट्ठी भेजी थी. पत्र में गोगोई पर आरोप लगाया गया था कि इस तरह की चीजों के लिए तैयार न होने पर जस्टिस गोगोई ने न सिर्फ उन्हें नौकरी से निकाला, बल्कि उन्हें एवं उनके परिवार को तरह-तरह से प्रताड़ित भी किया. सर्वोच्च न्यायालय के जजों को भेजे महिला के इस हलफनामे के सार्वजनिक होने के बाद प्रधान न्यायाधीश गोगोई की अगुवाई में तीन जजों की पीठ का गठन किया गया.

मामले पर सुनवाई की प्रक्रिया पर सवाल
किसी भी प्रशासनिक जांच के निष्पक्ष होने के लिए ये ज़रूरी है कि जांच करने वाला व्यक्ति आरोपी से पद के मामले में नीचे न हो इसीलिए शिकायत करने वाली महिला ने रिटायर्ड जजों की विशेष जांच कमेटी के गठन की मांग की है. क्योंकि, मौजूदा मामले में काम की जगह सुप्रीम कोर्ट है जहां ‘इंटर्नल कम्प्लेंट्स कमेटी’ मौजूद है जिसके सभी सदस्य मुख्य न्यायाधीश से जूनियर हैं. लेकिन ऐसी किसी कमेटी के गठन से पहले ही मुख्य न्यायधीश ने अपनी अध्यक्षता में इस मामले की सुनवाई की. दिल्ली हाई कोर्ट में वरिष्ठ वकील रेबेका मेमन जॉन इसे ‘एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी क़दम’ बताते हुए कहती हैं कि मुख्य न्यायाधीश पर भी वही क़ायदे लागू होने चाहिए जो आम नागरिकों पर होते हैं.

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