कैप्टन की अजीब राजनीति! कांग्रेस को हराने के लिए भाजपा को कर रहे मजबूत तो फिर कैसे बनेंगे सीएम?

पंजाब चुनाव का घमासान, पूरे देश की नजरें कैप्टन पर, अमरिंदर के सिपहसालार ने भाजपा की जॉइन तो उठने लगे सवाल, भाजपा के साथ सीट शेयरिंग को लेकर भी चर्चाओं का दौर है जारी, क्या भाजपा की शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं केप्टन?

कैप्टन की ये कैसी अजीब राजनीति!
कैप्टन की ये कैसी अजीब राजनीति!

Politalks.News/PunjabElection. पंजाब (Punjab) के सियासी गलियारों में आजकल एक ही चर्चा है कि आखिर कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt. Amrinder Singh) का मिशन क्या है? हाल ही में 21 दिसंबर को पंजाब कांग्रेस (Congress) के बड़े नेता और कैप्टन के खास सिपहसालार पूर्व मंत्री राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी (Rana Gurmeet Singh Sodhi) ने भाजपा (BJP) का दामन थामा है. प्रदेश के सियासी गलियारों में चर्चा है कि केप्टन अमरिंदर सिंह कैसी राजनीति कर रहे हैं? वे कांग्रेस को कमजोर करने या पंजाब की सत्ता से उसको हटाने की अपनी बदले की राजनीति में इतने बेचैन हो गए हैं कि वे खुद की बजाय भाजपा को मजबूत कर रहे हैं. कांग्रेस में उनके करीबी रहे नेता पार्टी छोड़ रहे हैं तो कैप्टेन की पंजाब लोक कांग्रेस (Punjab Lok Congress) की बजाय भाजपा में शामिल हो रहे हैं. कैप्टन से जुड़े सूत्रों का कहना है कि वो लोगों को यह कह रहे हैं कि आने वाले चुनावों में जीत के बाद वो ही मुख्यमंत्री बनेंगे. जबकि उनका भाजपा से सीटों का जो बंटवारा हुआ है उसके बाद सीएम बनने का दावा मजाकिया जान पड़ता है. 20 सीटों पर लड़कर आखिर कैप्टन अमरिंदर सिंह कितनी सीटें जीतेंगे और फिर कैसे मुख्यमंत्री बनेंगे?

कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार में मंत्री रहे राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी को चरणजीत सिंह चन्नी की सरकार में मंत्री नहीं बनाया गया है. माना जा रहा है कि कैप्टन के करीबी होने के कारण राणा को मंत्री पद से हटाया गया. मंत्री पद से हटाए जाने के बाद से राणा कैप्टन के संपर्क में थे. लेकिन राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी ने कांग्रेस छोड़ी तो भाजपा में चले गए. अब यहां सबसे बड़ा स्वाभाविक सवाल यह उठता है कि राणा कैप्टन की पार्टी में क्यों नहीं शामिल हुए? क्या कैप्टेन को अपनी पार्टी मजबूत नहीं करनी है या देर-सबेर पूरे सिपहसालारों सहित कैप्टन परिवार के साथ उनको भी भाजपा में चले जाना है?

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सियासी जानकारों का कहना है कि असल में कैप्टन अमरिंदर सिंह का एकमात्र लक्ष्य किसी तरह से कांग्रेस को सत्ता से हटाना है, चाहे उस क्रम में वे खुद क्यों न खत्म हो जाएं और भाजपा क्यों न मजबूती से प्रदेश की राजनीति में जम जाए. इसी राजनीति के तहत कैप्टन ने अपनी नई पार्टी बनाई और भाजपा से तालमेल किया, यहीं नहीं भाजपा के ज्यादा सीटों पर लड़ने के लिए भी सहमत हो गए. आपको बता दें भाजपा और कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी लोक पंजाब पार्टी में सीटों को लेकर बंटवारा लगभग फाइनल है, कैप्टन खुद की पार्टी को 20 तो भाजपा को 70-80 सीटें देने को तैयार हो गए हैं.

जैसा की सभी को पता है भाजपा का पंजाब में कोई खास जनआधार नहीं है और वह हमेशा अकाली दल की पिछल्लगू पार्टी रही है. रही सही कसर अब किसान आंदोलन ने पूरी कर दी है. लेकिन भाजपा प्रदेश की 117 में से 70 से 80 सीटों पर लड़ सकती है. इसके अलावा कुछ सीटें अकाली दल से अलग हुए सुखदेव सिंह ढींढसा को मिलेंगी और बची हुई सीटों पर पंजाब लोक कांग्रेस लड़ेगी. इसके बाद भी कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब के लोगों को झांसा दे रहे हैं कि वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे. अब कैप्टन कितनी सीटें लड़ेंगे और कितनी जीतेंगे कि भाजपा उनको मुख्यमंत्री बनाएगी, यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा.

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