पाॅलिटाॅक्स न्यूज़/भारत v/s चीन. आखिरकार भारत और चीन के बीच वो खराब दौर आ ही गया जब चीन से देश को बचाने के लिए नई आर्थिक नीतियों का मोर्चा खोलना जरूरी हो गया है. गलवान घाटी में हिसंक झड़प के बाद शहीद हुए सैनिकों को लेकर भारतीयों के मन में जबरदस्त गुस्सा है. मोदी सरकार पर चीन को मुंह तोड़ जवाब देने के साथ उससे आर्थिक रिश्तों को पूरी तरह समाप्त करने का भी दबाव है. यानि सैन्य और आर्थिक मोर्चे पर युद्ध छेड़ने का दबाव अब मोदी सरकार पर आ गया है. देश की संप्रभुता, अखंडता और स्वाभिमान के लिए यह जरूरी भी है लेकिन इस विपरीत परिस्थितयों में जोश के साथ-साथ होश की भी जरूरत है. भारतीय समाज को अब योजनाबद्ध तरीके से अपना कदम बढ़ाना होगा. भारतीय बाजार में कब्जा जमाएं उन सामानों को सूचीबद्ध करना होगा, जो स्वदेशी के तौर पर हमारे सामने उपलब्ध है.
चीन को आर्थिक मौर्चे पर बड़ी शिकस्त देने में हमें कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा
चीन के बड़े और सस्ते बाजार का मुकाबला कैसे होगा
चीन को हम जितना निर्यात करते हैं, उससे चार गुना ज्यादा आयात करते हैं. आर्थिक दृष्टि से इसे घाटे का सौदा कहते हैं. निर्यात के मुकाबले आयात अधिक करने का मतलब है कि भारत में उतना उत्पादन नहीं हो पा रहा है, जितने की उसे जरूरत है. अचानक चीन के व्यापार पर हमला करने का अर्थ है कि हम हमारा ही नुकसान कर बैठेंगे. एक दम से बाजार में सामान की किल्लत हो जाएगी. भारतीय कम्पनियां चाहकर पर इतनी तेजी से उतना उत्पादन नहीं कर पाएंगी. साथ ही चीन के मुकाबले सामान भी कई गुना महंगा मिलेगा.
हर सेक्टर का उद्योग चीन से आयतित समान पर निर्भर
पिछले कुछ सालों में चीनी सामान का भारत में बड़ा कारोबार खड़ा हो गया है. भारत के उद्योगों को चलाने के लिए जरूरी कई सामान चीन से ही आयात हो रहा है. यानि अधिकांश उद्योग चीनी माल पर ही टिके हुए हैं. ड्रग्स ऐंड इंटरमीडियरीज सेक्टर में 68 फीसदी तक निर्भरता है तो भारतीय इंटरनेट कंपनियों में चीन की कंपनियों का भारी निवेश है.
निर्यात के मुकाबले चीन से 4 गुना आयात करते हैं हम
भारत और चीन के बीच ट्रेड बैलेंस बहुत ज्यादा बिगड़ा हुआ है. अप्रैल 2019 से जनवरी 2020 के बीच भारत ने चीन को 14.42 अरब डॉलर का निर्यात किया है, जबकि इस दौरान चीन से कुल आयात लगभग चार गुणा ज्यादा (57.93 अरब डॉलर ) है.
भारत के निर्यात में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी मिनरल्स की है. उसके बाद केमिकल्स और कृषि का स्थान आता है. टेक्सटाइल्स और मेटल उसके बाद आता है. वहीं भारत चीन से सबसे ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक्स आयात करता है. उसके बाद मशिनरी, केमिकल्स, मेटल और टेक्सटाइल का आयात करता है.
हर सेक्टर में हम में चीन पर निर्भर हैं
भारत में लगभग हर सेक्टर की कंपनियां चीन से होने वाले आयात पर निर्भर हो गई हैं. बल्क ड्रग्स और इंटरमीडियरीज सेक्टर की 68 फीसदी निर्भरता चीन से होने वाले आयात पर है. उसी तरह इलेक्ट्रॉनिक्स में 43 फीसदी, गारमेंट्स में 27 फीसदी और ऑटो सेक्टर में करीब 9 फीसदी निर्भरता चीन से होने वाले आयात पर है.
भारत की 220 कंपनियों का चीन के साथ लीगल कनेक्शन है. इसके अलावा हर साल चीन से आने वाले पर्यटक भारत की अर्थव्यवस्था में 550 मिलियन डॉलर (करीब 4000 करोड़ रुपये) का योगदान करते हैं.
भारतीयं कंपनियों में चीन का अरबों का निवेश
चीन की कंपनियों ने भारत में दर्जनों कंपनियों में अरबों का निवेश किया हुआ है. टेंशेट ने भारत की 19 कंपनियों में, शुनवाई कैपिटल ने 16, स्वास्तिका ने 10, शाओमी 8, फोसुन कैपिटल ने 6, हिलहाउस कैपिटल ग्रुप ने 5, एनजीपी कैपिटल ने 4, अलीबाबा ग्रुप 3, ऐक्सिस कैपिटल पार्टनर्स ने 3 और बेम ने 3 कंपनियों में निवेश किया है.
इसके साथ ही भारत की अधिकांश इंटरनेट कंपनियों में बड़े पैमाने पर चीनी निवेश है.
चीनी मोबइल और इंटरनेट कंपनियों का भारी कब्जा
इस क्षेत्र में 5 चीनी कंपनियां हैं, जिनका भारत के बाजार पर है कब्जा बना हुआ है. इनमें चीन की मोबाइल निर्माता कंपनी श्याओमी भारत में नंबर-1 पर है. यह तो भारत में इतनी लोकप्रिय है कि इसने एक चौथाई से भी अधिक बाजार पर कब्जा किया हुआ है. इसके साथ ही बाइटडांस का टिकटॉक और हेलो का भी भारी दबदबा बन चुका है. चीनी कंपनी बाइटडांस का ये प्रोडक्ट भारत में करीब 11.9 करोड़ लोग इस्तेमाल करते हैं. वहीं हेलो ऐप भी खूब पॉपुलर हो रहा है. भारत में हेलो ऐप के करीब 5 करोड़ मंथली एक्टिव यूजर्स हैं.
मोबाइल कंपनी वीवो के पास 20 फीसदी मार्केट है. अगर चीन की श्याओमी, वीवो, ओपो और रीयलमी को एक साथ जोड़कर देखें तो इन सबने मिलकर भारत के करीब 65-67 फीसदी बाजार पर कब्जा किया हुआ है. दुनिया में यूसी ब्राउजर को करीब 1.1 अरब लोगों ने डाउनलोड किया हुआ है. आपको बता दें इसमें करीब आधा हिस्सा सिर्फ भारत का है, यानी भारत में करीब 50 करोड़ यूजर्स चीन के यूसी ब्राउजर को इस्तेमाल करते हैं. पबजी जैसे वीडियो गैम का भारतीय मार्केट पर बड़ा कब्जा है, इसके 11.6 करोड़ यूजर अकेले भारत में हैं.
कारोबार में चीन का कितना फायदा
भारत और चीन के बीच कारोबार में किस तरह बढ़ोतरी हुई है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि साल 2000 में दोनों देशों के बीच का कारोबार केवल तीन अरब डॉलर का था जो 2008 में बढ़कर 51.8 अरब डॉलर का हो गया. यह 2018 में 95.54 अरब डॉलर का हो गया. कारोबार बढ़ रहा है, इसका यह मतलब नहीं है कि फायदा दोनों को बराबर हो रहा है.
2018 में भारत चीन के बीच 95.54 अरब डॉलर का कारोबार हुआ लेकिन इसमें भारत ने जो सामान निर्यात किया उसकी कीमत 18.84 अरब डॉलर थी. इसका मतलब है कि चीन ने भारत से कम सामान खरीदा और उसे चार गुना से ज्यादा सामान बेचा। ऐसे में चीन ही फायदा में रहा.
तो फिर कैसे होगा आर्थिक मोर्चे पर चीन से मुकाबला
विशेषज्ञों के अनुसार चीन के खिलाफ आर्थिक मोर्चे पर युद्ध की शुरूआत समझदारी से करनी होगी. भारत को पहले अपनी आत्म निर्भरता बढ़ानी होगी. चीनी सामान के विकल्पों को तलाशना होगा. अपने उद्योग धंधे और रोजगार को स्किल रोजगार में बदलना होगा. इसके साथ ही भारतीयों को ऐसे सामानों का योजनाबद्ध तरीके से बहिष्कार करना होगा, जो भारत में उपलब्ध है.
भारत की अग्रणी व्यापारिक संस्था कैट ने बढ़ाया है एक कदम
कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने चीन को आर्थिक चोट पहुंचाने की तैयारी कर ली है. कैट ने चीनी प्रोडक्ट्स के बहिष्कार और भारतीय सामान के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए भारतीय सामान- हमारा अभिमान अभियान शुरू किया है. कैट ने 500 से अधिक चीजों की एक लिस्ट तैयार की है. जिसके अंतर्गत 3000 से अधिक वो उत्पाद हैं जो चीन में निर्मित होकर भारत में आयात होते हैं, जिनके बहिष्कार का आह्वान कैट ने अपने अभियान के प्रथम चरण में किया है. इन चीनी उत्पादों के बहिष्कार कर कैट ने दिसम्बर 2021 तक चीनी आयात में करीब एक लाख करोड़ रुपये की कमी लाने का लक्ष्य रखा है.
कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने भारतीय सैनिकों पर गलवान घाटी में हुए हमले की निंदा करते हुए कहा कि देश के व्यापारी लद्दाख में एलएसी के ताजा घटनाक्रम से काफी आक्रोशित हैं. कैट ने चीनी उत्पादों का बहिष्कार और भारतीय वस्तुओं को बढ़ावा देने वाले राष्ट्रीय अभियान को और अधिक तेज करने का फैसला किया है. इस प्रकार कैट ने सरकार से चीनी कम्पनियों को दिए गए ठेकों को तुरंत रद्द करने और भारतीय स्टार्टअप में चीनी कंपनियों द्वारा निवेश को वापस करने के नियमों को बनाने जैसे कुछ तत्काल कदम उठाने का भी आग्रह किया है, ताकि भारतीय सैनिकों के खिलाफ चीन के अनैतिक और बर्बरतापूर्ण व्यवहार का सख्ती से जवाब दिया जा सके
कैट की सूची में रोज काम आने वाले सामान हैं शामिल
कैट की इस सूची में रोजमर्रा में काम आने वाली वस्तुएं, खिलौने, फर्निशिंग फैब्रिक, टेक्सटाइल, बिल्डर हार्डवेयर, फुटवियर, गारमेंट, किचन का सामान, लगेज, हैंड बैग, कॉस्मेटिक्स, गिफ्ट आइटम, इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स, फैशन अपैरल, खाद्यान्न, घड़ियां, जेम्स एंड जूलरी, वस्त्र, स्टेशनरी, कागज, घरेलू वस्तुएं, फर्नीचर, लाइटिंग, हेल्थ प्रोडक्ट्स, पैकेजिंग प्रोडक्ट, ऑटो पार्ट्स, यार्न, फेंगशुई आइटम्स, दिवाली और होली का सामान, चश्मे, टेपेस्ट्री मैटेरियल वगैरह शामिल हैं.
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी सी भरतिया और राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने कैट के अभियान को स्पष्ट करते हुए कहा कि वर्तमान में चीन से भारत का आयात सालाना लगभग 5.25 लाख करोड़ यानी 70 बिलियन डॉलर का है. कैट ने प्रथम चरण में उन 3000 से अधिक वस्तुओं का चयन किया है, जो भारत में भी बनती हैं, लेकिन सस्ती होने के कारण चीन से खरीदी जा रही थी. इन वस्तुओं के निर्माण में किसी प्रकार की कोई टेक्नोलॉजी की आवश्यकता नहीं है, इसलिए भारत में निर्मित वस्तुओं का प्रयोग चीनी वस्तुओं के स्थान पर बहुत आसानी से हो सकता है.
चीनी एप्लीकेशन का भी बहिष्कार
खंडेलवाल ने यह भी कहा कि बहिष्कार में हर प्रकार की चीनी एप्लिकेशन भी शामिल हैं, जिन वस्तुओं में टेक्नॉलजी महत्व है फिलहाल उनको बहिष्कार में शामिल तब तक नहीं किया गया है, जब तक इस प्रकार की टेक्नोलॉजी का विकल्प भारत में विकसित नहीं हो जाता.
क्या कर सकते हैं हम भारतीय
चीन को आर्थिक मोर्चे पर झटका देने के लिए भारतीय चीनी उत्पादों का बहिष्कार शुरू कर सकते हैं. इनमें मोबाइल फोन सहित घरेलू उपयोग के कई ऐसे सामान है जो भारतीय कंपनियों द्वारा भी बनाए जा रहे हैं. लोग एक दूसरे को चीनी वस्तुओं के प्रति जागरूक कर सकते हैं.