राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव में आम तौर पर प्रमुख प्रतिद्वंद्वी संगठन हैं अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई). लेकिन इस बार इन दोनों संगठनों को कुछ कालेजों में भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा (बीपीवीएम) से कड़ी चुनौती मिल रही है. यह छात्र संगठन राजस्थान के आदिवासी क्षेत्र में पिछले तीन-चार साल में उभरकर आया है. पिछले साल के छात्रसंघ चुनाव में डूंगरपुर स्थित राजकीय कालेज की सभी सीटें बीपीवीएम ने जीत ली थी.
इस बार बीपीवीएम ने उदयपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ के कालेजों में भी अपने उम्मीदवार खड़े करने का फैसला किया है. बीपीवीएम के प्रांतीय संयोजक पोपट खोखरिया ने बताया कि इस बार उदयपुर के तीन कालेजों, बांसवाड़ा जिले के तीन कालेजों और प्रतापगढ़ जिले के एक कालेज में बीपीवीएम के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. खोखरिया का कहना है कि एनएसयूआई कांग्रेस से जुड़ा छात्र संगठन है, जबकि एबीवीपी भाजपा से जुड़ा छात्र संगठन है. ये दोनों बड़े छात्र संगठन आदिवासी छात्रों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं देते हैं, इसलिए आदिवासी छात्रों का यह नया छात्र संगठन बना है.
खोखरिया ने कहा कि कालेजों में पढ़ रहे आदिवासी छात्रों की कई समस्याएं हैं, जिनकी तरफ न एनएसयूआई ध्यान देता है और न ही एबीवीपी. आदिवासी छात्रों को आरक्षण होने के बावजूद उन्हें सरकारी कालेजों में छात्रवृत्ति नहीं मिल पाती है. आम तौर पर एनएसयूआई, एबीवीपी और वामपंथी स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ही छात्रसंघ चुनाव लड़ते आए हैं या निर्दलीय उम्मीदवारों को समर्थन देकर जिताते रहे हैं. एसएफआई का वर्चस्व अब समाप्त हो चुका है, इसलिए राजस्थान के कालेजों में दो प्रमुख छात्र संगठनों के बीच ही सीधी टक्कर रहती है. इस बार सात कालेजों में बीपीवीएम ने जोरदार तैयारी के साथ त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति बना दी है.
बीपीवीएम आदिवासी छात्र-छात्राओं की बेहतरी के मुद्दे पर छात्रसंघ चुनाव लड़ रहा है. इनमें एक मुद्दा आदिवासी छात्राओं की उच्च शिक्षा का मुद्दा भी है. फिलहाल आदिवासी छात्राओं को उच्च शिक्षा के लिए 5000 रुपए प्रतिमाह सहायता मिलती है. बीपीवीएम इससे बढ़ाकर 10,000 रुपए प्रतिमाह करवाना चाहता है. अन्य मांगों में आदिवासी छात्रों की छात्रवृत्ति बढ़ाने, कालेजों में शिक्षकों के खाली पद भरने, कालेजों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने, छात्राओं के लिए अलग कामन रूम बनाने, अलग कक्षाएं लगाने जैसी मांगें शामिल हैं.
आदिवासी नेता कांतिभाई रावत ने कहा कि लड़ाई लंबी है. उन्होंने भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था. इससे पहले 2018 के विधानसभा चुनाव में बीटीपी के दो उम्मीदवार डूंगरपुर जिले की दो सीटों पर चुनाव जीत चुके हैं. रावत ने कहा कि बीपीवीएम को बीटीपी का पूरा समर्थन है. बीटीपी राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों को मिलाकर एक अलग भील प्रदेश बनाने की मांग भी कर रही है. उनका कहना है कि आदिवासी नायकों को जिक्र कहीं नहीं मिलता. जिन आदिवासियों ने उल्लेखनीय कीर्तिमान स्थापित किए हैं, उनके नाम पर क्षेत्रों, स्कूलों और कालेजों का नामकरण होना चाहिए. उन्हें पाठ्यपुस्तकों में जगह मिलनी चाहिए और आदिवासियों की भाषा और संस्कृति का भी संरक्षण होना चाहिए. भीली भाषा को स्कूलों के पाठ्यक्रमों में भी पढ़ाया जाना चाहिए.
रावत का दावा है कि आदिवासी क्षेत्र के कालेजों में आदिवासी छात्र-छात्राओं की संख्या सामान्य छात्र-छात्राओं से अधिक है, इसलिए बीपीवीएम के उम्मीदवारों के जीतने की पूरी उम्मीद है. हालांकि अन्य पार्टियां भी आदिवासी उम्मीदवार उतार रही हैं, लेकिन उनके जीतने की संभावना कम ही है. एनएसयूआई के मीडिया प्रभारी भानु प्रताप सिंह ने स्वीकार किया कि आदिवासी क्षेत्र में बीपीवीएम बड़े छात्र संगठन के रूप में उभर रहा है. आदिवासी क्षेत्रों में उसके उम्मीदवारों के जीतने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
एबीवीपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आनंद पालीवाल भी छात्रसंघ चुनाव में बीपीवीएम की मौजूदगी को बड़ी चुनौती मानते हैं. उन्होंने कहा कि बीपीवीएम आदिवासी क्षेत्र में हमारे लिए बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रहा है, लेकिन वह सिर्फ जातिवाद पर आधारित है. एबीवीपी जातिवाद पर आधारित छात्र संगठन नहीं है. हम सभी वर्गों को साथ लेकर चलने में भरोसा रखते हैं और हम इसी विचारधारा के साथ चुनाव लड़ रहे हैं.