Politalks.News/AssemblyElection. मोदी सरकार (Modi government) द्वारा तीनों कृषि कानून वापस लिए जाने के बाद आखिरकार किसान आंदोलन (Farmers Protest) की समाप्ति हो चुकी है. दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए किसान पूरे 1 साल 14 दिन बाद अपने अपने घर को लौट चुके हैं. अब किसान आंदोलन समाप्त हो चुका है, किसान अपने घर को लौट चुके हैं लेकिन इसका असर आगामी चुनाव पर क्या होगा ये सबसे बड़ा सवाल है. जब पॉलिटॉक्स (Politalks) ने इस सवाल को लेकर राजनीतिक विशेषज्ञ से बात कि तो उनका साफ़ कहना था कि अब विपक्ष और सत्ताधारी पार्टी के लिए आगामी चुनाव की राह आसान नहीं रहेगी. एक तरफ बीते एक साल में किसानों ने जो कुछ देखा उसके बाद उनका बीजेपी (BJP) के साथ जाना संभव नजर नहीं आता. तो वहीं विपक्षी पार्टियों से एक बहुत बड़ा मुद्दा ही छिन चुका है. शायद इसी कारण विपक्ष अब हिन्दू और हिंदुत्व की राजनीति करने को उतारू है.
अगले साल की शुरुआत में 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही समय शेष है. ऐसे में उत्तरप्रदेश और पंजाब में बीजेपी की हार और जीत का फैसला किसान ही करेंगे. बीते एक साल में तीनों कृषि कानून के विरोध में सैकड़ों की तादाद में किसान दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलनरत रहे. इस एक साल में किसानों ने दिल्ली की सीमा पर बेहद बुरे दिन देखे हैं. किसानों के तन और मन पर सरकारी उत्पीड़न झेला है. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी द्वारा उसका असर किसान वोट बैंक के दिलों-दिमाग से निकाल पाना इतना आसान नहीं होगा.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरीके से अचानक तीनों कृषि कानून वापस लेने का एलान किया उससे ये साफ़ है कि बीजेपी को आगामी विधानसभा चुनाव में हार का डर सताने लगा था. इसी कारण बीजेपी ने बड़ी ही तीव्रता के साथ लोकसभा फिर राज्यसभा में कृषि कानून वापसी का बिल पास करवा लिया. पंजाब और यूपी में अगले महीने नए साल में विधानसभा चुनाव का ऐलान होने वाला है और भाजपा कृषि कानूनों को रद्द करने और किसानों की सभी मांगें मानकर उसका लाभ चुनाव में लेना चाहती है.
बीजेपी ये भलीभांति जानती है कि यूपी में तो फिर भी किसानों की काट के लिए मथुरा और काशी है!. लेकिन पंजाब में पार्टी का फिलहाल जनाधार नहीं है. कांग्रेस से अलग हुए और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पहले ही बीजेपी के साथ जाने का दावा कर चुके हैं. ऐसे में भारतीय जनता पार्टी की एकमात्र आस अब कैप्टन ही है. कैप्टन ही ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने मुख्यमंत्री रहते किसानों का पूरा समर्थन ही नहीं किया बल्कि पंजाब से दिल्ली की सीमाओं तक किसानों को पहुंचाने में भी मदद की. पंजाब में केंद्र सरकार के अधीन आते टोल प्लाजा हों या रेलवे ट्रैक जहां भी किसानों ने कृषि कानूनों के विरोध में पक्का धरना लगाया. लेकिन अब वहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह बीजेपी के साथ चुनावी मैदान में उतरेंगे तो क्या वो ही किसान उनका साथ देंगे, सवाल बड़ा है.
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भाजपा भले ही आगामी चुनाव में कैप्टन की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस के साथ आने का मन बना चुकी हो लेकिन उसकी ये राह इतनी भी आसान नहीं होगी. कैप्टन के साथ समझौता कर चुनाव में कूदने के लिए कई दौर की बातचीत हो चुकी है. अब पंजाब में भाजपा और कैप्टन पंजाब अन्य असंतुष्टों के साथ मिलकर सीटों के बंटवारे पर सहमति बनाने पर जुट गए हैं. लेकिन तीनों कृषि कानून के कारण किसानों के मन में बीजेपी की तस्वीर बहुत अधिक साफ़ नहीं है. किसानों के मन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि एक अहंकारी राजा की बन चुकी है! अब उसे किसानों के मन से साफ़ करना कैप्टन के लिए आसान नहीं होगा.
वहीं बात करें उत्तरप्रदेश की तो भले ही किसान आंदोलन के चलते पार्टी को यहां भी नुकसान हो रहा हो लेकिन यहां बीजेपी के पास एक बेहतर हथियार है. बीजेपी इस हथियार के जरिये कई बार देश की सत्ता में काबिज हुई है, और वो हथियार है हिंदुत्व. भारतीय जनता पार्टी की राजनीति हिन्दू और हिंदुत्व के इर्द गिर्द घूमती हुई नजर आती है. आगामी चुनाव के लिए भी भाजपा ने ‘अयोध्या-काशी हमारी अब मथुरा की बारी’ का मुद्दा गर्म कर दिया है. अब देखना ये होगा की किसानों की आगामी चुनाव में बीजेपी के प्रति क्या रणनीति होगी.