Politalks.News/Uttrakhand. उत्तराखंड में भाजपा ने जिस तरह से तीन मुख्यमंत्री बदले हैं उससे कांग्रेस की उम्मीद बंधी है. कोरोना की महामारी और कुंभ मेले के आयोजन में आई दिक्कतों की वजह से आम हिंदू और साधु-संत भी नाराज हैं. लेकिन ऐसा लग रहा है कि भाजपा ने कांग्रेस को ही उलझा दिया है. सबको समझ में आ रहा है कि भाजपा ने किस गणित से कुमाऊँ क्षेत्र पर इतना ध्यान दिया है. नए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कुमाऊँ के हैं और केंद्र में मंत्री बनाए गए अजय भट्ट भी कुमाऊँ के ही हैं. गढ़वाल छोड़ कर कुमाऊँ पर इतना फोकस करके भाजपा ने कांग्रेस को उलझाया है. अब कांग्रेस की मजबूरी है कि वह कुमाऊँ से ही नेता चुने. गौरतलब है कि उत्तराखंड में गढ़वाल का इलाका भाजपा का मजबूत गढ़ है. पिछले मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत गढ़वाल से ही सांसद हैं और पार्टी के दो दिग्गज नेता और राज्य सरकार के मंत्री सतपाल महाराज और धन सिंह रावत भी इसी इलाके से आते हैं.
उत्तराखंड में गढ़वाल का इलाका राजपूत बहुल है और वहां के ठाकुर नेताओं को भाजपा ने पर्याप्त तरजीह दी है. भाजपा यह भी मान रही है कि राजपूत उसे छोड़ कर नहीं जाएंगे. उसने भले तीन बार मुख्यमंत्री बदला पर तीनों बार राजपूत ही मुख्यमंत्री बनाया. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और बड़े ठाकुर नेता भगत सिंह कोश्यारी को महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य का राज्यपाल बनाया गया है और पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी उत्तराखंड के ही रहने वाले ठाकुर नेता अजय सिंह बिष्ट उर्फ योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं. इसलिए ठाकुर वोटों को लेकर भाजपा पूरी तरह से आश्वस्त है.
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भाजपा के इस कॉन्फिडेंस ने ही उसने राज्य के बड़े ब्राह्मण नेता और पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को केंद्र सरकार से हटा दिया. तभी कांग्रेस के नेता मान रहे हैं कि पार्टी को ब्राह्मण प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहिए और राजपूत नेता को मुख्यमंत्री का दावेदार पेश करना चाहिए. साथ ही गढ़वाल की बजाय कुमाऊँ पर फोकस करना चाहिए. इसलिए अब कांग्रेस आलाकमान कुमाऊँ से ब्राह्मण नेता की तलाश में लगा हुआ है. कांग्रेस के जानकार सूत्रों का कहना है कि हरीश रावत को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बना कर सीएम दावेदार के तौर पर पेश कर दिया जाएगा. उससे पहले मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह को विधायक दल का नेता बनाया जाएगा और फिर कुमाऊँ से किसी ब्राह्मण को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाएगा. प्रदेश अध्यक्ष चुनने में मुख्य भूमिका हरीश रावत की रहेगी.
वहीं बीजेपी का दूसरा बड़ा दांव युवा चेहरे को कांग्रेस के सामने पेश करना है. बीजेपी ने उत्तराखंड में पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को हटाकर युवा पुष्कर सिंह धामी को ‘कमान’ सौंप कर कांग्रेस की रणनीति ‘फेल’ कर दी. उत्तराखंड में कांग्रेस के बुजुर्ग नेताओं के सामने भाजपा आलाकमान ने युवा धामी को मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस की परेशानी और बढ़ा दी है. भाजपा ने ‘मिशन 22’ के एजेंडे में राज्य के युवाओं को ‘आकर्षित’ करने के लिए सियासी दांव चला है. बीजेपी के इस दांव के बाद कांग्रेस के नेता नेतृत्व परिवर्तन को लेकर दिल्ली की ‘दौड़’ लगाए हुए हैं. यही नहीं कई बड़े नेताओं ने तो 15 दिनों से आलाकमान के दरबार में ‘डेरा’ भी डाल रखा है. लेकिन अभी तक कांग्रेस हाईकमान ने उत्तराखंड को लेकर कोई फैसला नहीं किया है. जिससे पार्टी और कार्यकर्ताओं में ‘मायूसी’ छाई हुई है. बीजेपी के युवा चेहरे के सामने कांग्रेस अपने 73 साल के हरीश रावत को चेहरा बनाती है तो समीकरण बिगडने की पूरी संभावना है. हालांकि हरीश रावत उत्तराखंड के एक मात्र नेता है जो हर जिले और हर इलाके में अपनी पैठ रखते हैं. वहीं धामी को अभी मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही युवाओं के लिए ‘लोकलुभावन’ फैसले लागू करना शुरू कर दिया है.
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उत्तराखंड में तकरीबन 80 लाख वोटर हैं, इसमें से 44 लाख के करीब युवा वोटर हैं, जिन पर भाजपा की नजर है. विधानसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस भी अब राज्य में ‘बदलाव’ का मूड बना रही है. हालांकि कांग्रेसी नेता कई दिनों से तैयारी में जुटे थे लेकिन ऐन मौके पर भाजपा ने उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी को सीएम बनाकर बड़ा ‘दांव’ खेला. भाजपा आलाकमान के इस दांव से कांग्रेस समेत विपक्षियों को बड़ा झटका लगा है. कांग्रेस दिल्ली में बैठकर बीजेपी के खिलाफ रणनीति बना रही थी, इसी बीच भारतीय जनता पार्टी ने कुमाऊं और युवाओं को अपने पाले में मिलाकर कांग्रेस की रणनीति पर पानी ‘फेर’ दिया. अब माना जा रहा है कि कांग्रेस भी भाजपा को टक्कर देने के लिए राज्य में नए नेतृत्व को लेकर बदलाव कर सकती है. ‘भाजपा की तर्ज पर ही राज्य में कांग्रेस भी युवा चेहरों की टीम मैदान में उतार सकती है’. लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ‘तालमेल’ न बैठ पाने के कारण दिल्ली केंद्रीय नेतृत्व के लिए एक बड़ा ‘सिरदर्द’ बना हुआ है. इसके लिए 15 दिनों से देहरादून से लेकर दिल्ली तक पार्टी के बीच लगातार मंथन चल रहा है लेकिन अभी तक बात नहीं बन पाई है.