Politalks.News/Bihar Election. बिहार चुनाव से ठीक पहले लोक जनशक्ति पार्टी ने जेडीयू से अलग होकर चुनाव लड़ने की घोषणा करके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए आगे की खतरे की घंटी बजा दी है. रविवार को ‘एलजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने बिहार में एनडीए से अलग होने की घोषणा की तब सभी की निगाहें भारतीय जनता पार्टी की प्रतिक्रिया की ओर आकर टिक गई, लेकिन दो दिन बीत जाने के बाद भी भाजपा का मौन साधे रहना बताता है कि वह चिराग के इस फैसले का जैसे इंतजार कर रही थी.’ इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा कई बार दोहरा चुकी है कि बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही एनडीए चुनाव लड़ेगी. लेकिन अब लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान जेडीयू और नीतीश कुमार को सीधी टक्कर देते हुए नजर आएंगे.
एलजेपी के अलग होने के बाद भाजपा अपना फायदा देखने में लगी हुई है. चिराग पासवान ने कहा कि लोजपा हर उस सीट पर चुनाव लड़ेगी, जहां जेडीयू के प्रत्याशी होंगे और भाजपा प्रत्याशियों को अपना समर्थन देगी. चिराग के इस बयान के बाद भाजपा खुश नजर आ रही है. लोक जनशक्ति पार्टी के अलग होने की घोषणा के बाद नीतीश कुमार भाजपा की ओर इस उम्मीद से देख रहे थे कि कोई प्रतिक्रिया आएगी लेकिन बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा वहीं बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने भी इस पर मौन साध रखा है.
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बल्कि सात दिन पहले ही बिहार में ‘मोदी से कोई बैर नहीं नीतीश कुमार तेरी खैर नहीं पोस्टर जारी कर लोजपा ने अपने इरादे जाहिर कर दिए थे, वह जेडीयू का साथ नहीं देगी. हम आपको बता दें कि चिराग पासवान ने जेडीयू से अलग होकर बिहार चुनाव के बाद की पटकथा को रोचक बना दिया है. एलजेपी के अलग चुनाव लड़ने से निश्चित तौर पर जेडीयू को नुकसान होगा जबकि बीजेपी को चुनाव में सीधे तौर पर कोई नुकसान नहीं होगा.
जेडीयू अगर कम सीट जीती तो नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री बनना होगा मुश्किल-
लोक जनशक्ति पार्टी जेडीयू और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सत्ता से बाहर करने की सोच रही है. वहीं भाजपा जेडीयू साथ चुनाव तो लड़ रही है लेकिन कहीं न कहीं अंदर खाने में मामला पूरा मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर फंसा हुआ है. भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा कर रखी हो कि यह चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही है लड़ा जा रहा है, लेकिन अगर जेडीयू की सीटें भाजपा से कम आती है तो नीतीश के लिए मुख्यमंत्री बनना आसान नहीं होगा. चिराग ने अलग होकर भाजपा को बड़ा फायदा दे दिया है. अगर भाजपा बड़ी पार्टी बनकर उभरी और जदयू को साथ रखना उनकी नैतिक मजबूरी हुई तो वह बड़ा भाई बनकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर दावा कर सकती है.
उधर अगर लोजपा किसी तरह 30-35 सीटें जीत जाती है तो भी नीतीश का खेल जितना खराब होगा, भाजपा उतनी ही मजबूत होगी. चिराग पासवान चाहते हैं कि नीतीश कुमार को हटाने के लिए बिहार में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरे. अगर लोजपा ज्यादा सीटें नहीं जीत सकी तो भी जदयू यानी नीतीश का काम इतना तो बिगाड़ ही देगी कि उनका उबरना आसान नहीं रह जाएगा. एक लाइन में बात को समझें तो बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा जीते या हारे, खेल नीतीश कुमार का खराब होना तय है जिसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को होगा.
अलग होने के बाद भी भाजपा एलजेपी को अपने साथ बनाए रखना चाहती है-
बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं, जिसमें जेडीयू 122 और भाजपा 121 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. वहीं दूसरी ओर लोक जनशक्ति पार्टी जहां जदयू उम्मीदवार होंगे वहां अपने प्रत्याशियों को उतारेगी और जहां भाजपा के प्रत्याशी होंगे वहां भाजपा को समर्थन करेगी. ऐसे ही जहां जेडीयू प्रत्याशियों के लिए भाजपा अपना समर्थन देगी लेकिन जिस सीट पर लोक जनशक्ति पार्टी के प्रत्याशी खड़े होंगे वहां भाजपा ने अभी अपना दृष्टिकोण स्पष्ट नहीं किया है, लेकिन माना जा रहा है कि ऐसी सीटों पर लोजपा लड़ रही होगी और पीछे से ही सही उसे भाजपा का ‘साथ’ हासिल होगा.
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एलजेपी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने 143 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है, वहीं बीजेपी के प्रत्याशियों को एलजेपी का समर्थन रहेगा. बता दें कि एलजेपी के साथ जेडीयू ने कभी कोई विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा है, ऐसे में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. लेकिन बीजेपी की सीटों पर एलजेपी और जेडीयू दोनों का सहयोग रहेगा, जिससे निजी तौर पर उसे फायदा मिलेगा. अब देखना है कि जेडीयू के खिलाफ एलजेपी मैदान में उतरकर नीतीश कुमार के लिए कितनी मुश्किल खड़ा करेगी.