लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद राहुल गांधी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा कांग्रेस कार्य समिति को सौंप दिया है. हालांकि समिति ने उनका इस्तीफा मजूंर नहीं किया और उनसे अध्यक्ष पद पर बने रहने का आग्रह किया था. लेकिन राहुल ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का मन बना लिया है और वो इसपर कतई पुनर्विचार करने के मूड में नहीं हैं.
संसद सत्र में पत्रकारों से बातचीत के दौरान भी राहुल यह साफ कर चुके हैं कि वो अब अध्यक्ष पद पर नहीं रहेंगे और न ही अध्यक्ष चुनने की प्रकिया में शामिल होंगे. वो पार्टी के लिए एक साधारण कार्यकर्ता की तरह कार्य करते रहेंगे. अब कांग्रेस के लिए कितनी बड़ी विडंबना यह है कि राहुल को इस्तीफा दिए हुए करीब एक महीना होने जा रहा है. लेकिन पार्टी एक महीने में भी नए अध्यक्ष की तलाश नहीं कर पायी है.
हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की बैठक में पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी और केसी वेणुगोपाल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया गया था जिसको दोनों नेताओं ने निजी कारण बताते हुए ठुकरा दिया. अब सवाल यह है कि जब राहुल ने इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया है तो पार्टी अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद के लिए नेता के चुनाव में देरी क्यों कर रही है. जबकि बीजेपी ने अमित शाह के गृहमंत्री बनने के बाद बिना देरी किए जगत प्रकाश नड्डा को पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष की बागड़ौर संभाला दी.
वहीं कांग्रेस लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद भी संगठन में बदलाव के लिए अभी इंतजार ही कर रही है. वरिष्ठ नेता तो अब भी राहुल को अध्यक्ष पद पर रहने के लिए मना रहे हैं. बता दें कि हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं और कांग्रेस इन सभी राज्यों में सत्ता से बाहर है.
हरियाणा में पार्टी के विधायक लगातार प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर को हटाने की मांग कर रहे हैं. वहीं झारखंड और महाराष्ट्र के कांग्रेस अध्यक्ष लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद अपना इस्तीफा आलाकमान को भेज चुके है. इसके बाद भी कांग्रेसी नेतृत्व बिल्कुल सजग नजर नहीं आ रहा है.
अब पार्टी इन राज्यों को लेकर कुछ फैसला तो तब ले जब कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की ऊहापोह से बाहर निकले. हाल में राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर खबर आई कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पार्टी का अध्यक्ष बनाया जा सकता है लेकिन बाद में यह खबर भी केवल कयास ही साबित हुई.
एक ओर बीजेपी के पास मोर्चा संभालने के लिए दो अध्यक्ष हो गए हैं, वहीं कांग्रेस के पास एक भी नहीं है. ऐसे में सवाल ये हैं कि इतनी लचर तैयारी के साथ कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी का मुकाबला कैसे करेगी?