Politalks.News/Bihar. बिहार विधानसभा का अंतिम चरण शुरु हो गया है. शुक्रवार को तीसरे फेज का मतदान होना है. 243 सीटों वाली बिहार विधानसभा के नतीजे 10 नवंबर हो घोषित किए जाएंगे. यूं तो बिहार के अंतिम फेज के मतदान में कई दिग्गजों की साख दांव पर है और कई सीटें खास चर्चा में बनी हुई है. ऐसी ही एक सीट है पटना की बिहारीगंज विधानसभा सीट, जहां से शरद यादव की प्रतिष्ठा जुड़ी है. मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र का शरद यादव कई बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. यहां से जदयू के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव ने राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव को पराजित कर सबको चाैंका दिया था. इसी क्षेत्र की बिहारीगंज विधानसभा सीट से शरद यादव की बेटी सुभाषिनी यादव कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. यहां शरद यादव को राजनीतिक गुरु मान चुके राहुल गांधी ने भी सुभाषिनी की जीत के लिए जमकर पसीना बहाया है.
बिहारीगंज विधानसभा सीट पर शरद यादव की प्रतिष्ठा तो दांव पर है ही, सुभाषिनी यादव के कंधों पर अपने पिता की साख बचाने और राजनीतिक विरासत को बचाने की चुनौती का दबाव है. शरद यादव चार बार मधेपुरा से सांसद रहे ह़ैं. यह उनकी जन्मस्थली है. महागठबंधन की सुभाषिनी यादव के सामने जदयू ने निरंजन मेहता को अपना कैंडिडेट बनाया है. इस सीट पर बहुकोणीय मुकाबला है. यहां निरंजन मेहता और सुभाषिनी यादव के साथ लोजपा के विजय कुमार सिंह और पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के प्रभाष कुमार भी मैदान में है. इस सीट पर कुल 22 उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं.
अस्तित्व में आने के बाद बिहारीगंज विस सीट जदयू के कब्जे में रही है. यह सीट 2008 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया आई है. अभी तक इस विधानसभा सीट पर दो बार चुनाव हुए हैं और दोनों बार जेडीयू को ही सफलता मिली है. निरंजन कुमार मेहता 2015 के विधानसभा चुनावों में जदयू के टिकट पर जीत दर्ज कर चुके हैं और दूसरी बार चुनावी मैदान में है. पिछले चुनावों में निरंजन मेहता ने भाजपा के रविन्द्र चरण यादव को 29 हजार वोटों से हराया था. 2010 में जदयू की रेणु कुमारी यहां से जीती थी.
यह भी पढ़ें: बिहार के तीसरे चरण की 78 सीटों पर फाइनल जंग, NDA की साख दांव पर
जातीय समीकरण की अगर बात करें तो इस सीट पर यादव और मुस्लिम वोटरों की संख्या अधिक है. इसके साथ ही राजपूत, ब्राह्मण, कोइरी कुर्मी मतदाताओं की संख्या अधिक है लेकिन कुशवाहा और अति पिछड़ी जातियों जैसी अन्य पिछड़ी जातियों की भी महत्वपूर्ण उपस्थिति है. इस विस क्षेत्र में 2.97 लाख वोटर्स हैं जिसमें 1.54 लाख पुरुष और 1.43 लाख महिला मतदाता हैं.
सुभाषिनी के लिए भी जीत की राह बहुत आसान नहीं है क्योंकि जाप पार्टी के उम्मीदवार प्रभाष कुमार यादव जाति से आते हैं. यादव पूर्व में लालू प्रसाद की पार्टी राजद में राज्य महासचिव के पद पर आसीन रह चुके हैं. ऐसे में यादव वोटर्स का बंटना पक्का है. वहीं बिहारीगंज के निवर्तमान विधायक निरंजन मेहता कुशवाहा जाति से आते हैं लेकिन लोजपा उम्मीदवार विजय कुमार सिंह भी इसी वर्ग के है. ऐसे में इस समुदाय के वोटों के बंटवारे की भी प्रबल संभावना है. बिहार के विपक्षी महागठबंधन में सीट बंटवारे के तहत यह सीट कांग्रेस के खाते में चले जाने पर सुभाष राजद छोड़ पप्पू यादव के नेतृत्व वाली पार्टी में शामिल हो गए.
सुभाषिनी को विपक्षी महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे राजद का पूर्ण समर्थन मिलना पक्का है लेकिन राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि राजद के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता एक बाहरी व्यक्ति को ‘पैराशूट उम्मीदवार’ के रूप में मैदान में उतारे जाने पर खुश नहीं हैं. पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू महागठबंधन में शामिल होकर लड़ी थी जिसमें नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के साथ कांग्रेस और राजद भी शामिल थी. आपसी सीट बंटवारे में यह सीट जदयू के खाते में चले जाने के कारण राजद और कांग्रेस ने पिछले चुनाव में यहां से अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था. 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू की रेणु कुमारी ने जहां से जीत दर्ज की थी. पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर यहां तीसरे स्थान पर रही थीं. राजद के प्रभाष कुमार दूसरे नंबर पर रहे.
यह भी पढ़ें: बिहार विस चुनाव के दूसरे चरण की वे हाई प्रोफाइल सीटें, जिन पर गढ़ी हैं सबकी नजरें
यहां सुभाषिनी यादव अपने पिता शरद यादव और महागठबंधन के भरोसे चुनावी ताल ठोक रही है. वहीं सुभाषिनी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी जदयू उम्मीदवार निरंजन मेहता सीएम नीतीश कुमार के विकास मंत्र पर भरोसा कर रहे हैं. अन्य 20 चुनावी उम्मीदवार अपने अपने मुद्दों पर चुनावी मैदान में है. वैसे देखा जाए तो शरद यादव के नाम के भरोसे सुभाषिनी यादव का दावा मजबूत लग रहा है. सीएम नीतीश कुमार ने हाल में अपनी पार्टी के उम्मीदवार के लिए प्रचार करते हुए शरद यादव और सुभाषिनी के खिलाफ कुछ भी बोलने से परहेज किया.