Politalks.News/Bihar. सत्ता का सुख पाने के लिए हमारे नेता कितने प्रकार के हथकंडे अपनाते हैं कि अभी तक ‘आम वोटर‘ भ्रमित होता रहा है. नेताओं के लंबे-चौड़े वायदों का जनता आकलन नहीं कर पाती है. राजनीतिक पार्टियों और नेताओं में चुनाव के दौरान सत्ता पर काबिज होने के लिए ‘सियासी दांव‘ चलने की होड़ लगी रहती है. नवम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव के चलते इन दिनों बिहार में ‘राजनीति गर्म‘ है. पिछले दिनों जब चुनाव आयोग ने बिहार के विधान सभा चुनाव 29 नवंबर से पहले कराने की घोषणा की तभी से भाजपा, जेडीयू, राष्ट्रीय जनता दल और लोक जनशक्ति पार्टी में लोकलुभावन, प्रलोभन, आश्वासन और जातिगत समीकरण समेत तमाम मुद्दों पर सियासी चौसर बिछाई जा रही है.
मौजूदा समय में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं. वे पिछले 15 वर्षों से राज्य की सत्ता संभाले हुए हैं. लेकिन इस बार कोरोना के चलते हुए देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान नीतीश कुमार की लोकप्रियता का ग्राफ काफी नीचे गिर चुका है, कारण बिहार के बाहर राज्यों में अपनी रोजी-रोटी के लिए गया वो मजदूर वर्ग जो लॉकडाउन में लौट कर अपने घर आना चाहता था, लेकिन नीतीश ने शुरुआत में तो उनको राज्य में वापस लेने से ही मना कर दिया और बाद में लिया भी उन्हें जीवन यापन की सुविधाओं से काफी दिन महरूम रहना पड़ा. खैर, हम अपनी खबर पर आते हैं. चूंकि राज्य का अधिकांश मजदूर वर्ग दलित समुदाय से आता है, इसलिए अब नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव को देखते हुए नया दांव ‘दलित कार्ड‘ खेला है.
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वहीं सीएम नीतीश कुमार के इस सियासी हथकंडे की गूंज जब उत्तर प्रदेश तक पहुंची तब दलितों की ‘राजनीतिक ठेकेदार‘ बसपा प्रमुख मायावती आग बबूला हो गईं हैं. हम बात को आगे बढ़ाएं उससे पहले बता दें कि लगभग आठ वर्षों से बसपा प्रमुख खाली बैठी हुईं हैं. मायावती न तो उत्तर प्रदेश न केंद्र की राजनीति में सक्रिय हो पा रही हैं. अब उन्होंने सोचा बिहार विधानसभा चुनाव में क्यों न पार्टी की ‘किस्मत आजमाई जाए. यहां हम आपको बता दें कि मायावती ने बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार रही है. वहीं मायावती की अभी तक की राजनीति ‘दलितों के इर्द-गिर्द‘ ही घूमती रही है.
अब आगे चर्चा करते हैं, जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दलित वर्ग को रिझाने के लिए चुनावी हथकंडा अपनाया तब मायावती से रहा नहीं गया. बसपा प्रमुख ने उत्तर प्रदेश से ही मुख्यमंत्री नीतीश पर ताबड़तोड़ हमले कर डाले. मायावती ने बिहार के दलितों को नीतीश कुमार से बचने के लिए आगाह भी कर दिया. आइए आपको बताते हैं नीतीश कुमार ने बिहार के दलितों को लेकर ऐसा कौनसा चुनावी कार्ड खेल दिया कि मायावती को उत्तरप्रदेश तक अपनी जमीन सरकने की चिंता सता गई-
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का बिहार में चुनावी दलित कार्ड –
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक आदेश में कहा है अगर राज्य के किसी अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग से आने वाले लोगों की हत्या हो जाती है तो उसके परिवार के एक सदस्य को ‘सरकारी नौकरी‘ हम देंगे. सियासत के जानकारों का कहना है कि नीतीश कुमार यह नया आदेश चुनाव से पहले दलित आदिवासी समुदाय को लुभाने के लिए किया गया चुनावी हथकंडा है. दूसरी ओर रामविलास पासवान और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी भी दलितों के ऊपर सियासत करती आई है. अब देखना होगा नितीश कुमार का यह नया दांव बहुजन समाजवादी पार्टी पर कितना भारी पड़ता है.
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आपको बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद भी पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी समुदाय से आते हैं. अब मुख्यमंत्री को नया सियासी हथकंडा बनाए रखना आसान नहीं होगा क्योंकि राज्य में लोजपा भी दलितों के मुद्दे पर मुखर है. दूसरी ओर मायावती पूरा प्रयास करेंगी कि राज्य में दलित वोट उनसे बिखरने न पाए. इसके साथ ही नीतीश कुमार को पिछड़ा वर्ग को भी साधने की चुनौती कम नहीं होगी.
मायावती का चुनावी तंज, दलित वर्ग नीतीश कुमार के बहकावे में नहीं आएंगे–
दलितों को प्रलोभन दिए जाने के बाद मायावती ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधा है. बसपा प्रमुख ने कहा कि बिहार की सरकार प्रलोभन देकर दलित और आदिवासी वोट के जुगाड़ में लगी हुई है. मायावती ने कहा कि अगर बिहार की नीतीश सरकार को इन वर्गों के हितों की इतनी ही चिंता थी तो उनकी सरकार अब तक ‘क्यों सोई रही‘. उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार को इस मामले में यूपी की बसपा सरकार से बहुत कुछ ‘सीखना‘ चाहिए था.
बसपा प्रमुख मायावती ने दावा किया कि बिहार के दलित नीतीश कुमार के बहकावे में नहीं आएंगे उन्होंने कहा कि बिहार में हुए दलितों पर अत्याचार पर अभी तक नीतीश कुमार खामोश बैठे रहे और अब जब चुनाव का समय है तब वह इस पर राजनीति कर रहे हैं. मायावती ने कहा कि बिहार सरकार अपने मंसूबे में कभी कामयाब नहीं होगी.
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बता दें कि मायावती ने बिहार चुनाव में सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का एलान किया है. हालांकि उत्तर प्रदेश में चार बार सत्ता पाने वाली बसपा बिहार में अभी तक अपनी जड़ें जमाने में कामयाब नहीं रही हैं. बसपा बिहार में कभी भी दो अंकों में सीटें नहीं जीत सकी है जबकि यहां 16 फीसदी दलित मतदाता हैं. वहीं इस बार भी बहुजन समाज पार्टी के लिए बिहार में ‘राह इतनी आसान नहीं होगी‘ क्योंकि बसपा को नीतीश के चुनावी दलित कार्ड के साथ-साथ पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी, पप्पू यादव की जाप और मांझी की हम पार्टी जो कि दलित पहचान के रूप में जानी जाती हैं, उनसे भी टक्कर लेनी होगी.