लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद कांग्रेस अब तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में सफलता हासिल कर अपनी नींव गहरी करना चाह रही है. यही वजह है कि सत्ता की चाह में लगातार उक्त तीनों राज्यों में नेतृत्व में परिवर्तन हो रहे हैं. हरियाणा (Haryana) में भी आगामी महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं. हरियाणा की सियासत में कांग्रेस की वापसी के लिए प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा (Bhupinder Singh Hooda) को कमान सौंपी गयी है. उन्हें पार्टी चुनाव प्रबंधन समिति का अध्यक्ष बनाया है. वहीं कुमारी शैलजा (Kumari Selja) को प्रदेशाध्यक्ष का दायित्व सौंपा है. हरियाणा के राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज है कि ये हुड्डा के राजनीतिक करियर की अंतिम पारी होने वाली है, इसलिए वे अपनी इस पारी को शानदार तरीके से खेलना चाहते हैं. इसी के चलते हुड्डा हरियाणा कांग्रेस (Haryana Congress) में बदलाव और पार्टी से नाराज चल रहे नेताओं को मनाने में जुट गए हैं ताकि BJP का मुकाबला पूरे जोशो-खरोश के साथ किया जा सके.
बता दें कि हरियाणा कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुमारी शैलजा और नए सीएलपी लीडर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने शनिवार को कार्यभार संभाला है. इस दौरान पार्टी के दिग्गज नेता और पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर, किरण चौधरी और कुलदीप बिश्नोई नदारद रहे. तीनों नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा विरोधी गुट के माने जाते हैं और पार्टी में नए बदलाव से बेहद नाराज चल रहे हैं. अब इन सभी नेताओं की नाराजगी दूर करना हुड्डा के जिम्मे है.
हुड्डा ने कांग्रेस नेताओं की नाराजगी दूर करने का सिलसिला किरण चौधरी से शुरू किया. हुड्डा रविवार को दिल्ली स्थित किरण चौधरी (Kiran Choudhary) के घर पहुंचे. यहां उन्होंने किरण चौधरी और वहां मौजूद उनकी सुपुत्री एवं पूर्व सांसद श्रुति चौधरी (Shruti Chaudhary) से मुलाकात की. माना जा रहा है कि ये आपसी मुलाकात रंग लाई है और किरण चौधरी अब हुड्डा के समर्थन में आ खड़ी हुई है. अब कयास लगाए जा रहे हैं कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा का अगला टार्गेट कुलदीप बिश्नोई (Kuldeep Bishnoi) होंगे जिनसे जल्दी मुलाकात की जा सकती है.
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बता दें, बिश्नोई से हुड्डा की अदावत काफी पुरानी है. लोकसभा चुनाव के दौरान बिश्नोई ने हुड्डा के नेतृत्व को स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया था. आपसी गुटबाजी का नतीजा भी सबके सामने है. यहां कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल पाया था. इसके बावजूद हुड्डा बिश्नोई को अपनी तरफ लाने में कामयाब होंगे, ऐसी उम्मीद जताई जा रही है.
पूर्व मुख्यमंत्री की सबसे बड़ी मुश्किल हरियाणा पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर (Ashok Tanwar) को मनाने की रहेगी. तंवर कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के बेहद करीबी माने जाते हैं और पिछले 6 सालों से पद का दायित्व संभाले हुए थे. लोकसभा चुनाव (Loksabha Election-2019) में करारी हार के बाद उनका जाना तय लग रहा था लेकिन ऐसा हुआ नहीं. इसके बाद सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने जैसे ही पार्टी की बागड़ौर फिर से संभाली, सबसे पहले उनका नंबर आया और उनकी जगह सोनिया की खास कुमारी शैलजा (Kumari Selja) को भेजा गया.
अशोक तंवर (Ashok Tanwar) पिछले 6 सालों से प्रदेश की बागड़ौर संभाल चुके हैं. ऐसे में उनकी प्रदेश के कुछ क्षेत्रों पर अच्छी पकड़ है. इस बात को हुड्डा भी भली भांति समझते हैं. ऐसे में तंवर की नाराजगी से पार्टी को नुकसान ही होगा इसलिए उन्हें फिर से एक सम्मानजनक पद मिलने की उम्मीद है.
हरियाणा में लंबे समय से कांग्रेस में आंतरिक कलह जगजाहिर है. प्रदेश में कई नेता एक दूसरे की टांग खींचने में लगे रहते हैं. यही वजह है कि कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने प्रदेश के नेताओं में एकजुटता लाने का दायित्व किसी नए नेता को नहीं बल्कि अनुभवी भूपेन्द्र हुड्डा को सौंपी. कुमारी शैलजा उनका साथ देगी लेकिन कुल मिलाकर हुड्डा को फ्री हैंड काम करने का पूरा मौका दिया गया है.
प्रदेश नेतृत्व में बदलाव के बाद असंतुष्टों को साधने में जुटे हुड्डा अच्छी तरह से जानते हैं कि असंतुष्ट और बागी नेता आगामी चुनाव में उनकी रणनीति और समीकरण दोनों का खेल बिगाड़ सकते हैं. वहीं सोनिया गांधी भी इस बात को बखूबी समझ रही है कि कांग्रेसी नेताओं की बगावत व भितरघात पार्टी को चुनावी रण में और कमजोर करेगी. ऐसे में उन्होंने भूपेंद्र हुड्डा को कमान संभलाकर कोई गलती नहीं की.
अब हुड्डा केंद्र की ओर से मिले इस अवसर को कितना और कैसे भुना पाते हैं, आगामी चंद महीने में पता चल ही जाएगा. अगर हुड्डा अपनी इस कोशिश में सफल होते हैं और पार्टी को सत्ता में आने का मौका मिलता है तो हुड्डा के हाथों में फिर से प्रदेश की कमान आ सकती है. लेकिन अगर वे असफल साबित होते हैं तो भविष्य में उन्हें कोई बड़ा दायित्व मिलेगा, इसकी संभावना कम ही दिखती है.