Politalks.News/UttrapradeshChunav. उत्तरप्रदेश चुनाव (UttarPradesh Assembly Election 2022) का दंगल रोमाचंक होता जा रहा है. सियासी गलियारों में बड़ा शोर मचा है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) की सरकार से मंत्री इस्तीफा दे रहे हैं और विधायक पार्टी छोड़ रहे हैं. पिछले चार दिनों 3 मंत्रियों समेत 14 विधायक भाजपा (BJP) को अलविदा कह चुके हैं. ये भी कहा जा रहा है कि अभी और भी मंत्री या विधायक पार्टी छोड़ सकते हैं. समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के एक नेता ने टिप्पणी की है कि अगर अखिलेश यादव पार्टी का दरवाजा खोल दें तो भाजपा के दो सौ विधायक सपा में शामिल हो जाएंगे. भाजपा की इस भारी भगदड़ के बीच सियासी गलियारों में सवाल उठ रहा है कि, भाजपा के विधायकों, मंत्रियों के पार्टी छोड़ने का क्या अनिवार्य नतीजा यह निकाला जाना चाहिए कि भाजपा हारेगी और सपा जीतेगी? जानकारों का कहना है कि ध्रुवीकरण होता है तो भाजपा और सोशल इंजीनियरिंग पर मतदान होते हैं तो सपा को फायदा होना तय है. इसमें कोई दो राय नहीं कि स्वामी प्रसाद मौर्या (Swami Prasad Maurya) और दारा सिंह चौहान (Dara Singh Chouhan) के जाने से भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग को बड़ा धक्का लगा है.
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शुभेंदु अधिकारी जैसा करिश्मा दिखा पाएंगे मौर्या!
आपको याद दिला दें कि, पिछले साल मार्च-अप्रैल में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हुआ था. पश्चिम बंगाल में भी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले यूपी भाजपा जैसी ही भगदड़ तृणमूल कांग्रेस में मची थी, उसके मुकाबले में उत्तर प्रदेश में मची भगदड़ तो कुछ नहीं है. यूपी में स्वामी प्रसाद मौर्य बहुत मजबूत नेता हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में वे उस हैसियत के नेता नहीं हैं, जिस हैसियत के नेता पश्चिम बंगाल शुभेंदु अधिकारी हैं, शुभेंदु अधिकारी का जलवा दुनिया ने देखा कि उन्होंने नंदीग्राम सीट पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हरा दिया. भले ही ममता बनर्जी की टीएमसी ने इस चुनाव में पहले से ज्यादा सीट जीतीं हैं लेकिन बनर्जी शुभेंदु अधिकारी को नहीं हरा सकीं. दूसरी ओर स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी और बेटे की सीट की चिंता करते दिख रहे हैं.
पश्चिम बंगाल में तो मची थी यूपी से ज्यादा भगदड़!
पश्चिम बंगाल में शुभेंदु अधिकारी अकेले नेता नहीं थे तृणमूल कांग्रेस के करीब एक दर्जन विधायकों ने पाला बदला था. सांसदों ने भी खुल कर पार्टी का विरोध किया और भाजपा का साथ दिया. इसके बावजूद नतीजा सबको पता है, हालांकि इसका यह मतलब नहीं है कि उत्तर प्रदेश में भी पश्चिम बंगाल जैसा नतीजा आएगा. लेकिन इस फैक्टर को ध्यान में रख कर विचार जरुर करना होगा. यह भी ध्यान रखना होगा कि पश्चिम बंगाल में भाजपा ने बहुत शानदार प्रदर्शन किया. वह तीन विधायकों की पार्टी थी लेकिन पिछले साल के चुनाव में उसके 77 विधायक जीते और उसको 38 फीसदी वोट भी मिले हैं. हालांकि ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं हुआ कि तृणमूल के बहुत सारे नेता भाजपा में चले गए थे, बल्कि इसलिए हुआ क्योंकि वहां की जनसंख्या संरचना के कारण ध्रुवीकरण का भाजपा को फायदा हुआ था.
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सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ तो भाजपा, सोशल इंजीनियरिंग में सपा को होगा फायदा!
सियासी जानकारों का मानना है कि पश्चिम बंगाल जैसा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण अगर उत्तर प्रदेश में होता है तो निश्चित तौर पर फायदा भाजपा को होगा. लेकिन अगर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण नहीं होता है और सोशल इंजीनियरिंग काम करती है, जिसमें अन्य पिछड़ी जातियों की एकजुटता मुस्लिम और यादव समीकरण के साथ बनती है तब फायदा सपा को होना निश्चित है.
मौर्या और दारा सिंह के जाने से फैल होगी भाजपा की रणनीति!
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और सोशल इंजीनियरिंग की इस सियासी रणनीति के लिहाज से स्वामी प्रसाद मौर्य या दारा सिंह चौहान और इनके साथ भाजपा छोड़ने वाले नेताओं की सामाजिक और जातीय पृष्ठभूमि अहम है. इन नेताओं की वजह से भाजपा की सोशल इंजीनयरिंग फेल हो सकती है. ध्यान रहे भाजपा अपने सवर्ण वोट बैंक के साथ गैर यादव पिछड़ों और गैर जाटव दलितों को जोड़ कर सफल राजनीति कर रही है, पर इस बार मची इस भगदड़ से यह समीकरण टूट सकता है. हालांकि अभी चुनाव से पहले कई सियासी तीर भाजपा के तरकश से निकलने बाकि हैं…