अयोध्या फैसला: विवादित जमीन पर ही बनेगा राम मंदिर, मुस्लिम पक्ष को मिलेगी अलग जमीन

500 साल पुराना और 200 साल पुराना न्यायिक मामला समाप्त, शिया और निर्मोही अखाड़ा का दावा खारिज, दोनों पक्षों के धर्मावलंबियों ने की शांति बनाए रखने की अपील

Ayodhya Judgment
Ayodhya Judgment

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. अयोध्या राम जन्मभूमि और ​बाबरी मस्जिद मामले का फैसला (Ayodhya Judgment) आ गया. इस के साथ देश में 500 साल पुराना और 200 साल पुराना न्यायिक मामला आज समाप्त हो गया. सुप्रीम कोर्ट ने सुबह साढ़े 10 बजे फैसला रामजन्मभूमि न्यास के पक्ष में सुनाते हुए विवादित जमीन पर ही राम मंदिर बनाने का ​फैसला सुनाया. साथ ही सुन्नी मुस्लिम पक्ष के लिए अयोध्या में ही किसी अन्य जगह पर 5 एकत्र भूमि देने की बात कही. सीजेआई सहित 5 जजों की विशेष बैंच ने कहा कि जमीन कहां दी जाएगा, इस बारे में राज्य सरकार और केंद्र सरकार मिलकर फैसला करे. साथ ही जमीन को ट्रस्ट को सौंपने के आदेश भी जारी हुए हैं जिसका निर्माण केंद्र सरकार को अगले तीन महीने में करना होगा. बता दें, रामलला पक्ष की ओर से सीएस वैद्यनाथन और सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से वकील राजीव धवन ने अपना पक्ष रखा.

सीजेआई रंजन गोगोई के नेतृत्व में न्यायमूर्ति एस.ए.बोबडे, न्यायमूर्ति डी.वाई.चंद्रचूड, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस.अब्दुल नजीर सहित 5 सदस्यीय बैंच ने कहा कि विवादित जमीन पर धार्मिक दृष्टि से नहीं बल्कि न्यायायिक दृष्टि से किया गया है. कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पक्ष अपने दावे के सबूत साबित नहीं कर पाया. हालांकि मुस्लिम और हिंदू पक्ष का दावा एक जैसा था लेकिन मुस्लिम पक्ष के पास जमीन का विशेष कब्जा नहीं रहा. मुस्लिम पक्ष कभी भी इस जमीन पर अपना एकाधिकार साबित नहीं कर पाए. सर्वोच्य अदालत ने कहा कि 18वीं सदी और अंग्रेजों के जमाने तक वहां नवाज अता करने का कोई सबूत नहीं है. बाबर के समय में यहां मस्जिद बनाई गयी लेकिन एएसआई की रिपोर्ट को भी नहीं नकारा जा सकता. (Ayodhya Judgment)

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एएसआई की रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया कि मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनायी गयी. रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि विवादित जमीन की खुदाई में एक पुराना ढांचा मिला है लेकिन वो इस्लामिक नहीं था. वो मंदिर के नष्ट किए हुए ढांचे हैं. रिपोर्ट में राम मंदिर होने की बात का जिक्र साफ तौर पर किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चबूतरा भंडारा और सीता रसोई से भी दावे की पुष्टि हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ, इसमें कोई शक नहीं. बाबर के समय में मीर बांकी ने मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाई. बाद में 22 दिसम्बर, 1949 को अंदर वाले भाग में दो मूर्तियां रखी गयी. 1856 से पहले हिन्दू अंदर ही पूजा किया करते थे. ऐसे में हिन्दूओं की आस्था गलत होने के कोई प्रमाण नहीं हैं.

फैसले के साथ सुप्रीम कोर्ट ने ​शिया पक्ष और निर्मोही अखाड़ा के जमीन पर अधिकार करने के दावे को साफ तौर पर खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि दोनों ही पक्षों का कभी भी जमीन पर अधिकार नहीं रहा. इसके बावजूद दोनों ही पक्ष जमीन पर अधिकारिक दावे की मांग कर रहे हैं जो गलत है. कोर्ट ने ये भी कहा कि केंद्र को तीन माह के भीतर राम मंदिर ट्रस्ट का गठन करना होगा और 2.77 एकड़ भूमि के सभी अधिकार उन्हें सुपुर्द करने होंगे. ट्रस्ट ही मंदिर की रूपरेखा तैयार करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को मंदिर निर्माण के नियमों की रूपरेखा तय करने को कहा है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से जफरयाब जिलानी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए कहा कि अयोध्या पर फैसले (Ayodhya Judgment) का सम्मान लेकिन विरोधाभासी है. जिलानी ने ये भी कहा कि हमारा कॉन्सेप्ट ज़मीन का कभी था ही नहीं. कोर्ट में हमारी बातें समझी नहीं गईं. इस पर कोई प्रदर्शन नहीं होना चाहिए. आगे का फैसला पूरा फैसला पढ़ने के बाद लिया जाएगा. पूरा फैसला पढ़ने के बाद आगे की रणनीति बनायी जाएगी. हम फैसले से संतुष्ठ नहीं है. बता दें कि अगर मुस्लिम पक्ष या हिंदू पक्ष को लगता है कि फैसले में कोई तकनी​कि गड़बड़ी है तो फिर से अदालत की शरण ली जा सकती है लेकिन ये फैसला आगामी एक या दो दिन में ही परिवाद दायर हो सकता है.

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सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों के पक्ष में फैसला (Ayodhya Judgment) इस स्थिति में सुनाया जिसमें दोनों ही पक्षों की जीत हुई. यहां न कोई जीता न किसी की हार हुई. एक को विवादित तो दूसरे को अन्य स्थान पर जमीन मिली. विवादित जमीन का अधिकार हिंदू पक्ष को तो मुस्लिम पक्ष को अन्यत्र 5 एकत्र भूमि देने का निर्णय हुआ. धार्मिक अनुयायियों ने समुदाय विशेष से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करने और शांति बनाए रखने की गुजारिश की है.

 

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