राजस्थान में गहलोत सरकार ने राज्य की मध्यमवर्गीय जनता पर बिजली की दरों का बोझ बढ़ाने का फैसला अगर कर ही लिया है तो उसे इसके राजनीतिक परिणामों का भी अनुमान कर लेना चाहिए. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पूरी तरह बहुमत भी नहीं मिला था. किसी तरह उसकी सरकार बन गई है तो उसे जनता का समर्थन समाप्त करने वाले काम नहीं करने चाहिए. दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने मध्यम वर्ग को बिजली में राहत देकर प्रशंसनीय कार्य किया है, जिसका लाभ उसे दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिलेगा. ऐसे में पड़ौसी राज्य राजस्थान की गहलोत सरकार के बारे में जनता क्या सोचेगी?
राजस्थान में कोई भी सरकार रही हो, मध्यम वर्गीय जनता को महंगाई के भार से दबाने में उसने कोई कंजूसी नहीं की है. अन्य राज्यों की सरकारें राजस्थान सरकार से प्रेरणा ले सकती है कि आम लोगों की जेब से ज्यादा पैसा किस तरह निकाला जाए. यहां पहले बिजली वितरण का काम बिजली बोर्ड संभालता था. उसके बाद नई नीतियां बनीं. निजी कंपनियां बिजली उत्पादन करने लगीं तो बिजली वितरण का ढांचा भी सरकार को बदलना पड़ा. 2000 में राज्य में जयपुर, अजमेर और जोधपुर में तीन विद्युत वितरण निगम कंपनी की तर्ज पर बना दिए, जिन्हें डिस्कॉम कहा जाता है.
राजस्थान के तीनों डिस्कॉम की कार्यप्रणाली में राज्यहित कम, मुनाफाखोरी ज्यादा है. राजस्थान में 2000 में जो बिजली दरें थीं, उनमें डिस्कॉम 16 साल में 99 फीसदी बढ़ोतरी कर चुके हैं. शायद राज्य सरकार यह समझती है कि राजस्थान में कमाने खाने वाले लोग ज्यादा हैं, जीवन चलाने के लिए इतना अतिरिक्त पैसा तो जेब से निकाल ही सकते हैं. इस तरह सरकार खामोशी से आवाम की जरूरियात का फायदा उठाने पर तुली हुई है. शायद इसलिए कि विधानसभा चुनाव चार साल बाद होंगे.
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दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने मध्यमवर्गीय जनता का बोझ कम करने का सराहनीय प्रयास किया है, क्योंकि अगले साल ही दिल्ली विधानसभा चुनाव होंगे. पिछले विधानसभा चुनाव में केजरीवाल की पार्टी को छप्परफाड़ बहुमत मिला था, जिससे दिल्ली के पूरे राजनीतिक समीकरण बदल गए थे. राजस्थान में हालांकि कोई नई पार्टी नहीं है, लेकिन गहलोत सरकार से लोगों को उम्मीदें रहती हैं. लेकिन उनके सरकार चलाने में कुछ ऐसा होता है कि जनता उनसे नाराज हो जाती है और सरकार बदल देती है. गहलोत के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस ने दो बार विधानसभा चुनाव हारे. अब गहलोत तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं. लोगों ने उन पर फिर से भरोसा किया है. उनकी सरकार ने काम संभालते ही सबसे पहले पेट्रोल-डीजल महंगा किया, और अब विधानसभा का पहला सत्र संपन्न होने के बाद बिजली महंगी होने की चर्चा जोर पकड़ रही है.
केजरीवाल सरकार ने इस बात को समझा कि मध्यमवर्गीय लोगों के लिए बिजली कितनी जरूरी है. पिछले साल उनकी सरकार ने बिजली की दरें बढ़ाई थी. जनता की परेशानियों को देखते हुए अब उन्होंने एक झटके में बिजली के बिलों में बड़ी राहत देते हुए दिल्ली के मध्यमवर्गीय परिवारों का दिल जीत लिया है. गहलोत के बारे में लोग क्या सोचेंगे? आजकल मध्यमवर्गीय परिवारों का जीवन बिजली से ही चलता है. ईंधन उपलब्ध नहीं होने पर हीटर विकल्प होता है. पंखा, टीवी, लाइटें, फ्रीज जैसे सामान हर घर में देखे जा सकते हैं. इन सबके लिए बिजली जरूरी है. बिजली महंगी होने से अनिवार्य रूप से आर्थिक बार बढ़ जाता है.
दिल्ली के डिस्कॉम ने दो किलोवाट तक बिजली की दरें 125 रुपए से घटाकर 20 रुपए प्रति किलोवाट कर दी है. 1200 यूनिट से ज्यादा खपत होने पर दरें प्रति यूनिट चार आने बढ़ाकर 7.75 से बढ़ाकर आठ रुपए प्रति यूनिट कर दी है, जिससे संपन्न लोगों पर ही थोड़ा भार बढ़ेगा, जो ज्यादा बिजली खर्च करते हैं. दो से पांच किलोवाट की खपत पर बिजली शुल्क 140 से घटाकर 50 रुपए प्रति यूनिट कर दिया गया है. पांच से 15 किलोवाट के कनेक्शन पर प्रति किलोवाट शुल्क 175 से घटाकर सौ रुपए कर दिया है. 15 से 25 किलोवाट के लिए कोई बदलाव नहीं है.
दिल्ली में चलने वाले ई-रिक्शा और विद्युत वाहनों को चार्ज करने के लिए स्टेशनों पर भी बिजली की दरें घटा दी गई हैं. एलटी लेवल पर चार्ज 5.5 से घटाकर 4.5 रुपए यूनिट और एचटी लेवल पर चार्ज पांच से घटाकर चार रुपए कर दिया गया है. दिल्ली में बिजली की ये दरें एक अगस्त से लागू हो गई हैं. इधर राजस्थान में लोग यह सोचने पर मजबूर हैं कि बिजली की खपत कैसे कम करें, क्योंकि वह जीवन चलाने के लिए जरूरी है. राजस्थान के तीनों डिस्कॉम के अधिकारियों को दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (डीईआरसी) के प्रमुख आरएस चौहान से प्रेरणा लेनी चाहिए और संभव हो सके उनसे मिलकर यह सीखना चाहिए कि लोगों पर बिजली की दरों का भार कम कैसे किया जा सकता है.
आजकल की राजनीति मध्यमवर्गीय लोगों की भावना से चलती है. दिल्ली के लोगों के मन में केजरीवाल बैठ चुके हैं. राजस्थान के लोगों को अब तक ऐसा कोई नेता नहीं मिला, जो उनके मन में सम्मानजनक जगह बना सके. पद का सम्मान होता है. पद पर बैठे व्यक्ति का बाद में भी उसी के अनुरूप सम्मान हो तो बात बनती है. गहलोत को राजस्थान के कई लोग पसंद करते हैं. उनकी सरकार के महंगाई बढ़ाने वाले फैसलों से उन्हें नापसंद करने वालों की तादाद बढ़ेगी. महंगाई के जमाने में आर्थिक राहत बहुत बड़ी बात होती है. विधानसभा में गहलोत सरकार ने मंत्रियों, विधायकों के वेतन-भत्ते तुरत-फुरत बढ़वा लिए. राजस्थान की आम जनता ने क्या गुनाह किया है?
बहरहाल बिजली की दरें बढ़ाने का फैसला गहलोत पर बहुत भारी पड़ने वाला है. इससे गहलोत सरकार के खिलाफ जनभावना बनेगी और कांग्रेस में पहले से ही दो गुट बने हुए हैं. सचिन पायलट उप मुख्यमंत्री पद संभाले हुए हैं. जनता में सरकार का विरोध बढ़ने पर नेतृत्व परिवर्तन से भी इनकार नहीं किया जा सकता.
मध्यमवर्गीय लोग जैसे तैसे जीवन यापन कर रहे हैं. बाजार में भयंकर मंदी की आहट है. आमदनी और खर्च का संतुलन बिगड़ रहा है. ऐसे में बिजली जैसे जरूरी साधन का महंगा होना किसे पसंद आएगा? सरकार कितने ही तर्क दे कि ऐसा है, वैसा है, इसलिए जरूरी है, लेकिन वह लोगों के गले उतरने वाला नहीं है. सरकार अपना राजस्व बढ़ाने के लिए बिजली, पानी, ईंधन को महंगा करने के अलावा और कोई भी उपाय कर सकती है. लोगों को जबरन परेशान करने में सरकार का क्या लाभ है?