राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होने पर देशवासियों को शुभकामनाएं देते हुए इसके ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने साथ ही केंद्र की भाजपा सरकार पर आरोप लगाया कि वह इस अवसर का राजनीतिकरण कर स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत को कमजोर करने का प्रयास कर रही है. जयपुर स्थित अपने निवास पर आयोजित प्रेस वार्ता में गहलोत ने कहा, ‘मेरा आरोप है कि ये लोग आज़ादी की शानदार विरासत — त्याग, तपस्या और कुर्बानी की परंपरा को भुलाने की कोशिश कर रहे हैं. कांग्रेस ने जो विरासत बनाई है, उसे समाप्त करने का प्रयास चल रहा है.’
यह भी पढ़ें: नरेश मीणा को मिला ‘हनुमान’ का साथ, सांसद बेनीवाल ने किया बड़ा ऐलान
पूर्व मुख्यमंत्री ने ये भी कहा कि बीजेपी को धर्म के नाम पर सत्ता मिली है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वे देश की आजादी के आंदोलन की विरासत को नकार दें. उन्होंने ये भी कहा कि आने वाली पीढ़ियां सिर्फ आरएसएस या भाजपा को ही इतिहास में याद रखें, यह हमें मंजूर नहीं होगा. कांग्रेस की विरासत वही है, जो भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की विरासत है. किसी को यह अधिकार नहीं कि वह इस इतिहास को मिटा दे.
आरएसएस पर बोला तीखा हमला
गहलोत ने आरएसएस पर भी तीखा हमला करते हुए कहा कि आरएसएस का स्वतंत्रता संग्राम से कोई संबंध नहीं रहा है. गहलोत ने कहा, ‘अंग्रेजों के शासन में वे (RSS) उनसे मिले हुए थे. दशकों तक तिरंगा नहीं फहराया, संविधान को नहीं माना और महात्मा गांधी व अंबेडकर के पुतले जलाए. सरदार पटेल ने स्वयं आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था और अब ये उन्हीं पर अपना अधिकार जताने की कोशिश कर रहे हैं.’
आरएसएस ने कभी नहीं गाया वंदे मातरम
पूर्व सीएम गहलोत ने राष्ट्रगीत वंदे मातरम के 150 ऐतिहासिक वर्ष पूर्ण होने पर प्रदेशवासियों को बधाई दी और तीखा वार करते हुए कहा कि वंदे मातरम् 1896 में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा गीत बना. यह गीत कांग्रेस के हर अधिवेशन, ब्लॉक या जिला समिति में गाया जाता रहा लेकिन आरएसएस का अपना गीत ‘नमस्ते सदा वत्सले’ है. उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि क्या आरएसएस की शाखाओं में कभी वंदे मातरम् गाया गया है.
गहलोत ने राष्ट्रगीत के 150वीं वर्षगांठ मनाने के निर्णय का स्वागत करते हुए सुझाव दिया कि इसे भाजपा का कार्यक्रम न बनाकर राष्ट्र का पर्व बनाया जाए. यह अवसर पूरे देश का उत्सव बने, जिसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी और जैन सभी की भागीदारी हो.



























