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चुनाव सिर पर हैं तो राजनीतिक पार्टियों में आपसी फूट और आतंरिक नाराजगी कोई नई बात नहीं है. यही वजह है कि लोकसभा सीटों पर चुनावों में उतरे प्रत्याशियों को प्रतिद्वंद्वी से कम और अपने ही लोगों से अधिक खतरा है. बीकानेर सीट पर ही कुछ यही हाल है जहां बीजेपी के प्रत्याशी अर्जुनराम मेघवाल मछली की आंख पर सटीक निशाना लगाएं, उससे पहले खुद ही अपनों का निशाना बनते जा रहे हैं. यहां से दो बार के सांसद अर्जुनराम मेघवाल लाख विरोध के बावजूद फिर से तीसरी बार मैदान में हैं. वह एक दलित नेता हैं और बीजेपी ने फिर से उन पर दांव खेला है. वहीं तीन बार सीट पर पटखनी खाने के बाद कांग्रेस ने परिवार के ही पूर्व आईपीएस मदन गोपाल को मैदान में उतारा है. गोपाल अर्जुनराम के मौसेरे भाई हैं और पिछले दोनों चुनावों में अर्जुन को जिताने में पर्दे के पीछे रहे थे. अब अर्जुन को परिवार के साथ-साथ पार्टी के आंतरिक गुटबाजी के खिलाफ भी मोर्चा खोलना पड़ गया है.

मोदी मैजिक के भरोसे ‘मेघवाल’
पिछले 10 सालों से से बीकानेर सांसद और तीन साल से केंद्र में राज्यमंत्री बनकर अपनी जगह बनाने वाले अर्जुन मेघवाल के लिए पिछले दो चुनाव इतने भारी नहीं रहे जितने इस बार है. भाई का सामने खड़ा होना और पार्टी में ही खुल्लम-खुल्ला विरोध दोनों अहम कारण हैं. पहले चुनाव में कांग्रेस की गुटबाजी का फायदा उठाते हुए मेघवाल भले ही कम अंतर से जीते लेकिन दूसरी बार मोदी लहर पर सवार होकर उनकी जीत का आंकड़ा तीन लाख बढ़ गया. टिकट मिलने के बाद पांच बार विरोध का सामना कर चुके अर्जुन का इतना विरोध 10 सालों में कभी नहीं हुआ. यही कारण है कि विरोध से चिंतित अर्जुन अब अपने प्रचार कार्यक्रम को सार्वजनिक करने से भी बच रहे हैं. अर्जुन को यह डर भी सता रहा है कि विरोध का ये ज्वार कहीं उनके राजनीतिक सफर को बीच मझधार में न डुबो दे, इसलिए सेफ गेम खेलते हुए अपनी चुनावी नैया को मोदी के मैजिक के सहारे किनारे पर ले जाने की कोशिश में हैं. यही वजह है कि खुद सासंद रहने के बाद भी अपनी उपलब्धियों पर बोलने के बजाय अर्जुन पीएम मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं.

आठ सीट का समीकरण
बीकानेर पूर्व, बीकानेर पश्चिम, खाजूवाला और कोलायत सहित चार सीटों पर चल रहे विरोध का पता खुद अर्जुनराम को पता है. देवी सिंह भाटी और श्रीकोलायत उनका खुलेआम विरोध कर रहे हैं, वहीं खाजूवाला के पूर्व विधायक डॉ. विश्वनाथ के साथ अर्जुन के छत्तीस के आंकड़े सियासी गलियारों में चर्चा में हैं. बीकानेर पूर्व की विधायक सिद्घि कुमारी अभी तक बीकानेर से बाहर हैं और बीकानेर पश्चिम के पूर्व विधायक गोपाल जोशी एक बार भी प्रचार में नहीं दिखे. नोखा के विधायक बिहारीलाल और देहात भाजपा जिलाध्यक्ष के तौर पर नजर तो आए हैं लेकिन प्रचार रैलियों में ईद का चांद ही बने रहे.

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