भाजपा के चाणक्य और वरिष्ठ रणनीतिकार अमित शाह का एक और पराक्रम

खामोशी से सारी चालें चली गईं, सबसे पहले जेटली के करीबी लोगों को बाहर किया गया, फिर राजीव शुक्ला के कतरे गए पर, फिर एकदम खामोशी से BCCI में श्रीनिवासन का दबदबा समाप्त कर दिया गया

पॉलिटॉक्स ब्यूरो. भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय गृहमंत्री या यूं कहें कि भाजपा के चाणक्य और वरिष्ठ रणनीतिकार अमित शाह (Amit Shah) की रणनीति सफल होने के बाद भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) भी संघ परिवार के नियंत्रण में आ गया है. इसके लिए खामोशी से चालें चली जा रहीं थीं और आखिरकार बगैर किसी घमासान के बीसीसीआई से श्रीनिवासन की बिदाई होने और कोलकाता के क्रिकेटर पूर्व कप्तान सौरव गांगुली बीसीसीआई के अध्यक्ष पद पर चुने जाने का रास्ता बन गया है. बीसीसीआई को अपने नियंत्रण में लाने के लिए अमित शाह ने पहले से रणनीति तैयार कर ली थी. पिछले एक हफ्ते से उस पर चुपचाप अमल हो रहा था. इससे पहले भारतीय क्रिकेट पर चेन्नई के उद्योगपति श्रीनिवासन का दबदबा माना जाता था.

इससे पहले तक भाजपा की तरफ से अरुण जेटली ही थे, जिनका क्रिकेट की राजनीति में आंशिक दखल था. वह दिल्ली क्रिकेट एसोसिएशन (DDCA) के अध्यक्ष पद से ही संतुष्ट थे. उन्होंने क्रिकेट की राजनीति में अपना पूरी तरह दखल बनाने की कोशिश कभी नहीं की. तमाम धांधलियों में फंसे बीसीसीआई पर श्रीनिवासन का अच्छा दखल था और पिछले कुछ दिनों से नई कार्यकारिणी बनाने के लिए बातचीत चल रही थी. अमित शाह (Amit Shah) ने जरा भी जाहिर नहीं होने दिया कि उनकी क्रिकेट में कोई रुचि है. उनके इशारे पर अनुराग ठाकुर सक्रिय थे. बीसीसीआई में तख्तापलट की भूमिका बन चुकी थी. पर्दे के पीछे उन लोगों का चुनाव हो रहा था, जिन्हें बीसीसीआई में पदाधिकारी बनाना है.

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अब बीसीसीआई के चुनाव की घोषणा हो चुकी है. 23 अक्टूबर को चुनाव होंगे. सोमवार को सौरव गांगुली ने अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल किया. इसके साथ ही अमित शाह के बेटे जय शाह ने सचिव पद के लिए नामांकन दाखिल कर दिया है. दोनों का चुनाव जीतना तय है. चुनाव जीतने के बाद दोनों 10 महीने तक पद पर रहेंगे. सौरव गांगुली बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन (कैब) के अध्यक्ष हैं और जय शाह गुजरात के संयुक्त सचिव हैं. इन दोनों के अलावा इन पदों पर किसी अन्य व्यक्ति ने नामांकन दाखिल नहीं किया है. अनुराग ठाकुर के भाई अरुण धूमल ने कोषाध्यक्ष, उपाध्यक्ष पद पर महेश वर्मा, संयुक्त सचिव पद पर जयेश जॉर्ज ने नामांकन दाखिल किया है. इस तरह बीसीसीआई बोर्ड में नई कार्यकारिणी लाने की कवायद पूरी हो गई है.

बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन फिलहाल बोर्ड या किसी राज्य के क्रिकेट संघ के अध्यक्ष नहीं हैं. फिर भी बीसीसीआई के मामलों में उनका दखल बना रहता है. वह कर्नाटक के ब्रजेश पटेल को अध्यक्ष बनाना चाहते थे, लेकिन शाह की रणनीति के चलते उनकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी. ब्रजेश पटेल अब आईपीएल के गवर्नर बनेंगे. यह सब कैसे हुआ, इसकी कहानी कभी भी सामने नहीं आएगी. सूत्रों से जो जानकारियां छन-छनकर बाहर आ रही हैं, उससे चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं. कोई सपने में भी नहीं सोच रहा था कि अमित शाह भारतीय क्रिकेट को अपने नियंत्रण में लेना चाहते हैं, क्योंकि संघ की विचारधारा में क्रिकेट को बढ़ावा देने की बात कभी नहीं सुनी गई.

अमित शाह के केंद्रीय गृहमंत्री बनने के बाद लगता है क्रिकेट में भी संघ की रुचि पैदा हो गई है. बीसीसीआई का तख्तापलट करने की जिम्मेदारी अनुराग ठाकुर को सौंपी गई थी, जो खुद क्रिकेट से जुड़े हुए हैं, जिससे कोई भी अमित शाह के इरादों को नहीं भांप सका. खामोशी से जो चालें चली गईं, उनमें सबसे पहले उन लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया गया, जिन्हें अरुण जेटली ने बढ़ावा दिया था. इनमें पत्रकार रजत शर्मा प्रमुख हैं, जिन्हें जेटली ने डीसीसीए अध्यक्ष बनवा दिया था. इसके बाद कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला के पर कतरे गए जिनका लंबे समय से बीसीसीआई पर दबदबा चला आ रहा था.

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जेटली के लोगों और राजीव शुक्ला को प्रभावहीन करने के बाद अकेले श्रीनिवासन बचे थे, जिनका दखल अभी भी बना हुआ था. उनके साथ समझौता कर लिया गया और उनके एक प्रत्याशी को शामिल कर लिया गया. यह समीकरण चुनाव की घोषणा से पहले तय कर लिया गया था. इससे कुछ दिन पहले मुंबई के एक पांच सितारा होटल में क्रिकेट दिग्गजों की गोपनीय बैठक हुई, जिसमें अनुराग ठाकुर भी शामिल थे. अमित शाह ने बीसीसीआई के प्रमुख पदों के लिए नाम तय करने का अधिकार ठाकुर को सौंपा था. ठाकुर पहले कुछ समय के लिए बीसीसीआई का अध्यक्ष पद कुछ दिनों के लिए संभाल चुके हैं. इस पूरी रणनीति में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि सीधे अध्यक्ष पद को निशाने पर नहीं लेना है, इसलिए सौरव गांगुली का नाम सामने आया.

इससे पहले तक कर्नाटक के ब्रजेश पटेल का नाम तय माना जा रहा था. गांगुली का नाम आने से अध्यक्ष पद के दो दावेदार हो गए. बीसीसीआई के पुराने दिग्गज गांगुली को लेकर चिंता में थे. गांगुली 195 मैचों में कप्तानी कर चुके हैं. उनकी कप्तानी में 97 मैच जीते गए. ब्रजेश पटेल के खाते में 21 टेस्ट और 10 एकदिवसीय मैच दर्ज हैं. गांगुली को लेकर प्रमुख चिंता यह थी कि उनका राजनीतिक रुझान स्पष्ट नहीं था. इसके अलावा वह खुलकर नहीं बता रहे थे कि उन्हें अध्यक्ष बनना है या नहीं.

श्रीनिवासन गुट पटेल के नाम पर जोर दे रहा था. इसके लिए अमित शाह ने भी हरी झंडी दे दी थी. लेकिन पर्दे के पीछे से कुछ लोगों ने दिल्ली से फोन किए. गांगुली को खुद अमित शाह (Amit Shah) ने बीसीसीआई के अध्यक्ष पद संभालने के लिए तैयार किया. पिछले शनिवार एक बैठक के बाद श्रीनिवासन की बाजी पलट गई. श्रीनिवासन को पहले धमकाया गया, फिर मना लिया गया. बाद में वह गांगुली का समर्थन करने पर राजी हो गए. उसके बाद अन्य पदाधिकारियों के नाम तय किए गए.

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अध्यक्ष पद का मसला सुलझने के बाद अन्य पदों पर खींचतान चल रही थी, तब अनुराग ठाकुर ने बताया कि भाजपा जय शाह को बीसीसीआई कार्यकारिणी में लाना चाहती है. इसके साथ ही उन्होंने अपने भाई अरुण धूमल काम आगे किया. दोनों पदों पर अमित शाह (Amit Shah) पहले ही मंजूरी दे चुके थे. इससे रजत शर्मा के बीसीसीआई की कार्यकारिणी में आने की संभावनाएं समाप्त हो गई. उन्हें बैठक में भी नहीं बुलाया गया.

सूत्रों के मुताबिक ब्रजेश पटेल के अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर हो जाने के बाद भी श्रीनिवासन कमजोर नहीं हुए थे. उन्होंने अपने दाव चतुराई से चले. दूसरी तरफ अनुराग ठाकुर के कमरे में देर रात तक बैठकें चली. इन बैठकों में निरंजन शाह, राजीव शुक्ला के अलावा श्रीनिवासन भी शामिल हुए. सभी इस बात पर एकमत हुए कि बीसीसीआई की कार्यकारिणी का निर्विरोध गठन होना चाहिए. तब ठाकुर ने रहस्योद्घाटन किया कि दादा (गांगुली) बीसीसीआई अध्यक्ष बनने के लिए तैयार हो गए हैं. तब श्रीनिवासन ने ब्रजेश पटेल का नाम आईपीएल गवर्नर के लिए सुझाया, जिस पर ठाकुर ने हां भर दी. लेकिन इससे पहले उन्होंने उन वरिष्ठ नेताओं से फोन पर बात कर ली थी, जिनके इशारे पर ठाकुर बीसीसीआई में चालें चल रहे थे. श्रीनिवासन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) में बीसीसीआई के प्रतिनिधि बने हुए थे. वह खुद 70 वर्ष की आयु पार करने के कारण यह छोड़ना चाहते थे, लेकिन यह पद उन्होंने बीसीसीआई में अपना दखल बनाए रखने के लिए बचाकर रखा था.

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इस तरह एकदम खामोशी से बीसीसीआई में श्रीनिवासन का दबदबा समाप्त कर दिया गया. जहां वह अध्यक्ष पद पर अपना उम्मीदवार लाना चाहते थे, वहां पूरी कार्यकारिणी में उनका एक भी व्यक्ति शामिल नहीं हो सका. हालांकि वह ब्रजेश पटेल को आईपीएल गवर्नर बनवाने में सफल रहे. इस तरह क्रिकेट की राजनीति में भी अमित शाह की रणनीति सफल रही. अब संभव है कि सचिव होने के नाते अमित शाह (Amit Shah) के बेटे जय शाह पूरा कामकाज संभाल लें और भाजपा पश्चिम बंगाल में भाजपा सौरव गांगुली का राजनीतिक उपयोग करे. पश्चिम बंगाल में सौरव गांगुली का बहुत मान-सम्मान है. वह दादा कहलाते हैं. भाजपा को आगामी विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस सरकार को सत्ता से हटाना है, लेकिन इस राज्य में उसके पास कोई कद्दावर नेता नहीं है. सौरव गांगुली से भाजपा को काफी मदद मिल सकती है.

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