Politalks.News/Uttrakhand. बड़े गौर से सुन रहा था सियासी जमाना, तुम्हीं सो गए दास्तां कहते-कहते.. आज उत्तराखंड की मजबूत इरादों वाली आयरन लेडी की राजनीति हमेशा के लिए ‘खामोश‘ हो गई. 80 साल की आयु में भी वह वर्ष 2022 में होने वाले राज्य विधान सभा चुनाव के लिए तैयारी में लगी हुई थीं. इसी सिलसिले में शनिवार को दिल्ली पहुंचकर कांग्रेस संगठन के साथ मीटिंग में भी शामिल हुईं. वे कांग्रेस पार्टी के लिए इस आयु में भी सड़क पर धरना प्रदर्शन करने से पीछे नहीं हटती थीं. ‘कांग्रेस में रहते हुए भी भाजपा नेताओं के साथ उनके मधुर संबंध रहे, सही मायने में वे हर राजनीतिक दल में लोकप्रिय थी’. हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड राजनीति की कद्दावर और नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश की.
कांग्रेस की नेता इंदिरा ह्रदयेश शनिवार को पार्टी की संगठन की बैठक में भाग लेने के लिए राजधानी दिल्ली गईं थीं. वहां उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह और उत्तराखंड पार्टी प्रभारी देवेंद्र यादव के साथ मीटिंग भी की थी. कौन जानता था इंदिरा का यह दिल्ली दौरा और पार्टी की बैठक आखिरी साबित होगी. बता दें कि आज सुबह उत्तराखंड सदन में नेता प्रतिपक्ष की तबीयत बिगड़ी तो उन्हें संभाला नहीं जा सका और उनका निधन हो गया. निधन की खबर उत्तराखंड को लगी तो भाजपा, कांग्रेस समेत सभी राजनीति दलों के नेता ‘स्तब्ध‘ रह गए.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इंदिरा हृदयेश की मौत पर दुख जाहिर किया है. पीएम मोदी ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर एक संदेश पोस्ट किया है. कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी इंदिरा हृदयेश के निधन पर गहरा दुख जताया है. राज्यपाल बेबी रानी मौर्य, मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, कांग्रेस नेता हरीश रावत, राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने स्व. इंदिरा हृदयेश के निधन पर दुख प्रकट किया. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड विधानसभा की नेता प्रतिपक्ष, वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री और उत्तराखंड की संसदीय राजनीति की महत्वपूर्ण अध्याय डॉ. इंदिरा हृदयेश के निधन का समाचार बहुत पीड़ादायक है. व्यवहार कुशल, निर्विवाद और ममतामयी इंदिरा को मेरी ओर से विनम्र श्रद्धांजलि.
आपको बता दें, उत्तर प्रदेश से इंदिरा हृदयेश ने अपनी राजनीति करियर की शुरुआत की थी. साल 2000 में उत्तराखंड गठन होने के बाद इंदिरा ने देवभूमि की राजनीति को कई नए मुकाम दिए और प्रदेश में काफी कुछ विकास के काम किए, खासकर कुमाऊं मंडल में उनको ‘मदद का मसीहा‘ माना जाता था. ‘इंदिरा पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिवंगत नेता नारायण दत्त तिवारी का सबसे नजदीक रहीं. बता दें कि 7 अप्रैल 1941 में जन्मी इंदिरा हृदयेश न अपने करीब 50 वर्ष के राजनीतिक करियर में कई उतार-चढ़ाव देखें. इंदिरा के राजनीतिक सफर पर नजर डालें तो 1974 में उत्तर प्रदेश के विधान परिषद में पहली बार चुनी गई जिसके बाद 1986, 1992 और 1998 में इंदिरा लगातार चार बार अविभाजित उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए चुनी गईं. साल 2000 में अंतरिम उत्तराखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी बनीं और प्रखरता से उत्तराखंड के मुद्दों को सदन में रखा. साल 2002 में उत्तराखंड में जब पहले विधानसभा चुनाव हुए तो हल्द्वानी से विधानसभा का चुनाव जीतीं और विधानसभा पहुंचीं जहां उन्हें एनडी तिवारी सरकार में संसदीय कार्य, लोक निर्माण विभाग समेत कई महत्वपूर्ण विभागों को देखने का मौका मिला.
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एनडी तिवारी सरकार में इंदिरा का इतना बोलबाला था कि कि उन्हें ‘सुपर चीफ मिनिस्टर‘ तक कहा जाता था उस समय तिवारी सरकार में ये प्रचलित था कि इंदिरा जो कह दें वह पत्थर की लकीर हुआ करती थी. लेकिन साल 2007 इंदिरा के लिए राजनीति की दृष्टि से खराब माना जाता है. उस साल विधानसभा चुनाव में अपनी सीट नहीं बचा सकी और उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा. लेकिन 2012 में एक बार फिर वह विधानसभा चुनाव जीतीं और विजय बहुगुणा तथा हरीश रावत सरकार में वित्त मंत्री व संसदीय कार्य समेत कई महत्वपूर्ण विभाग इंदिरा हृदयेश ने संभाला. वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में ह्रदयेश एक बार फिर हल्द्वानी से जीतकर पहुंचीं. कांग्रेस विपक्ष में बैठी तो नेता प्रतिपक्ष के रूप में इंदिरा ह्रदयेश को पार्टी का नेतृत्व करने का मौका मिला.
इंदिरा ह्रदयेश को एक मजबूत इरादों की महिला के रूप में जाना जाता था और शायद यही कारण है कि जैसे पूर्व प्रधानमंत्री स्व इंदिरा गांधी को देश की राजनीति में ‘आयरन लेडी’ के रूप में जाना जाता है, वैसे ही उत्तराखंड की राजनीति में इंदिरा ह्रदयेश को ‘आयरन लेडी’ कहा जाता था. दिल्ली आने से पहले शनिवार को डॉ. हृदयेश ने कांग्रेस के देशव्यापी प्रदर्शन के तहत हल्द्वानी में महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन किया था. उत्तराखंड में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर पार्टी के रणनीतिक अभियान का वह प्रमुख हिस्सा थीं. दिल्ली में होने वाली बैठक में भाग लेने के लिए वह शनिवार को यहां आई थीं. लेकिन दोबारा यहां से वह अपने राज्य नहीं लौट सकीं. अभी कुछ समय पहले उत्तराखंड तत्कालीन भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने इंदिरा हृदयेश पर विवादित टिप्पणी भी कर दी थी. जिसके बाद नेता प्रतिपक्ष इंदिरा ने कड़ी आपत्ति जताई थी उसके बाद बंशीधर भगत को माफी भी मांगनी पड़ी थी. सही मायने में उत्तराखंड राजनीति से जुड़े नेता, चाहे किसी भी दल का क्यों न हो इंदिरा को जुझारू और मजबूत इरादों वाली आयरन लेडी के रूप में हमेशा याद रखेंगे.