पॉलिटॉक्स न्यूज. देश में शिक्षा नगरी के नाम से अपनी पहचान बनाने वाली कोटा की धरती अब राजनीति के सियासी अखाड़े में तब्दील हो गई है. कोटा में बढ़ते कोरोना संक्रमण के बाद यूपी सरकार द्वारा राजस्थान सरकार से बात करके अपने लगभग 8000 छात्रों को कोटा से निकाल कर वापस यूपी बुला लिया है. अन्य राज्यों यथा महाराष्ट्र और एमपी की सरकारों ने भी अपने राज्यों के छात्रों को कोटा से वापस अपने राज्यों में ले जाने की तैयारी शुरु कर दी है. वहीं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे लॉक डाउन के नियमों के विरुद्ध बताते हुए अपने राज्यों के छात्रों को कोटा से बुलाने से साफ इनकार कर दिया. इन सबके बीच असली मुद्दा उन लाखों करोड़ों गरीबों, बेसहारा मजदूरों या अन्य तबके के लोगों का है जो विभिन्न राज्यों में पिछले लगभग 25 दिनों से रास्ते में अटके हुए हैं, जो ना तो अपने घर जा सके हैं और ना ही जहां रहते थे, वहीं वापस जा सके.
जहां एक और कोटा में पढ़ने वाले सम्पन्न परिवारों के छात्रों ने अब तक प्राप्त की शिक्षा का फायदा उठाया और अपने स्मार्ट फ़ोन का उपयोग करते हुए सोशल कैंपेनिंग चलाकर सरकारों को उन्हें अपने घर भेजने के लिए मजबूर कर लिया लेकिन उन लाखों गरीब, मजदूर और मजबूर लोगों का क्या, जो सरकारी टेंटो में या सरकारी स्कूलों में या कहीं ओर पड़े हैं. ये लोग भोजन व पानी के लिए परेशान हैं, यहां तक कि मोबाइल तक चार्ज नहीं कर पा रहे हैं और दिन भर की तपती गर्मी से बेहाल तो रात को मच्छरों से परेशान. एक बार कल्पना भी करेंगे तो सिहर उठेंगे. 24 घंटे क़ैद में रह रहे ये लोग अगर बाहर निकलने की कोशिश भी करें तो पुलिस पीटती है. जिस तरह की मनोदशा से ये लोग गुजर रहे हैं, कोई ताज्जुब नहीं कि इनमें से कई लोग तो पागल तक हो जाएं.
इन लाखों गरीब, असहाय मजबूरों की मनोदशा का अंदाजा केवल इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां एक और हम अपने घरों में हैं और पूरी सुविधाएं भोग रहे हैं. पंखा, कूलर और एसी के साथ मनोरंजन के लिए टीवी है, चुटकुले भेजने पढ़ने के लिए, चैटिंग करने के लिए या रिश्तेदार व मित्रों से घंटों गप्प मारने के लिए मोबाइल हैं. साथ ही चाय, दूध व भोजन की भी पूरी व्यवस्था है फिर भी हम लोग बाहर निकलने के लिए तड़प रहे हैं. ऎसे में एक बार कल्पना करके देखिए अगर हम कहीं अटक गए होते तो क्या होता. अटकना भी एक-दो या 5 दिन का भी हो तो समझ आता है लेकिन अब तो महीना होने वाला है. सोचिए इन लाखों मजबूरों का कैसे रह पा रहे होंगे ये लोग वहां पर.
बता दें, कोटा में पढ़ाई करने के लिए हॉस्टल्स में रहे अन्य राज्यों के छात्रों ने पिछले दो दिनों से ट्वीटर पर #SendUsBackHome कैंपेन चला रखा था. जिसके चलते बीजेपी शासित यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से बात की और 252 बसें यूपी से राजस्थान भेजीं हैं, जिनमें करीब आठ हजार छात्रों को यूपी भेजा जा रहा है. बस में सोशल डिस्टेन्सिंग और सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा गया है. एक बस में 30 छात्रों को मास्क और सेनेटाइजर के साथ रवाना किया जा रहा है. 100 बसें अब तक रवाना हो चुकी हैं और छात्रों को स्क्रिनिंग के बाद यूपी के लिए रवाना किया जा रहा है.
दरअसल शिक्षा नगरी मे कोरोना के 92 मामले सामने आने के बाद वहां रहकर कोचिंग कर रहे अन्य राज्यों के छात्र और उनके परिवारजन दहशत में आ गए थे. बताया जा रहा है कि भरतपुर में मिला एक कोरोना पॉजिटिव छात्र जो कोटा हॉस्टल में रह रहा था वो हाल ही में कोटा से भरतपुर गया था. कोटा जैसा शहर जिसे स्टैडी हब माना जाता है, वहां इतने कोरोना मामले अपने आप में चौंकाने वाला मामला है. वहीं यूपी सरकार की इस पहल पर बसपा चीफ मायावती ने सरकार की तारीफ की है, साथ ही मजदूरों के संबंध में ऐसी ही व्यवस्था करने की बात भी कही है.
यूपी की तर्ज पर महाराष्ट्र की उद्धव सरकार और एमपी की शिवराज सरकार ने भी अपने राज्यों के छात्रों को कोटा से वापस अपने राज्यों में ले जाने की तैयारियां शुरु कर दी हैं. लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे लॉक डाउन के नियमों के विरुद्ध बताते हुए अपने राज्यों के छात्रों को कोटा से बुलाने से साफ इनकार कर दिया. बिहार सीएम ने इस मामले में केंद्र से दखल देने की अपील की है. उनके इस फैसले पर प्रदेश में राजनीति शुरु हो गई है और राजद नेता तेजस्वी ने सरकार पर तीखा हमला करते हुए पूछा है कि अप्रवासी मजबूर मज़दूर वर्ग और छात्रों से इतना बेरुख़ी भरा व्यवहार क्यों है? 3 दिन में बिहार के 3 ग़रीब मज़दूरों की मृत्यु हो चुकी है. ऐसे में उनके प्रति असंवेदनशीलता क्यों है?
वहीं राजस्थान के संवेदनशील मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बार फिर रास्तों में अटके इन मजदूरों के लिए चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के कारण मजदूर चाहे अपने राज्य में या किसी अन्य राज्य में फंस गए हैं, उनके लिए एक बार अपने घरों में जाना ज़रूरी है. वर्तमान स्थिति में यह संभव है कि 20 अप्रैल के बाद भारत सरकार कुछ छूट दे. इससे मजदूरों का मनोबल बढ़ेगा. पहले भी प्रदेश सरकार मजदूरों को घर तक पहुंचाने की अग्रिम पहल कर चुकी है लेकिन बाद में केंद्र के निर्देशों के बाद इस सेवा को स्थिगित करना पड़ा था और भेजी गई बसों को वापिस बुलवा लिया गया. बता दें, मुख्यमंत्री गहलोत ने ही सबसे पहले अन्य राज्यों के राजस्थान में रह रहे मजदूरों और अन्य वर्ग के लोगों को उनके मूल राज्य तक छोड़ने के लिए बसों का इंतजाम किया था लेकिन केन्द्र के आदेश के बाद उन्हें बॉर्डर से ही वापस लाना पड़ा.
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सोचिए जब लाखों की संख्या में राजस्थान, यूपी सहित देश के कई राज्यों में अटके भीषण गर्मी में कैदियों की तरह लॉकडाउन का एक एक दिन गिनकर काट रहे इन मजदूरों को जब इन छात्रों के यूपी या आने वाले दिनों में अन्य राज्यों में वापस जाने का पता चलेगा तो उन्हें कितना दुःख होगा और अपने असहाय होने पर कितना रोना आएगा. यह दुख उन्हें छात्रों के वाप यूपी पहुंचने का नहीं बल्कि इस बात का होगा कि अगर उनके पास भी सोशल मीडिया चलाने जितना ज्ञान होता तो वे भी सरकार तक अपनी बात पहुंचाने में कामयाब होते न कि मुंबई की तरह पिटाई खाते.
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खैर, पॉलिटॉक्स की केंद्र सरकार से यही अपील है कि कैसे भी करके जल्द से जल्द इन मजदूर और जरूरतमंदों को अपनी अपनी जन्मस्थली तक भेज दें. हो सकता है वहां उन्हें यहां से भी बदतर हालातों का सामना करना पड़ें लेकिन परिवार का प्यार, घरवालों का दुलार निश्चित तौर पर वक्त के दिए जख्मों पर मर्म का काम जरूर करेंगे.