इन दिनों आर्थिक मंदी (Economic Downturn) की खबरें (News) बहुत आ रही हैं. आर्थिक वृद्धि दर (Economic Growth) का अनुमान घट रहा है. औद्योगिक उत्पादन (Industrial Production) के आंकड़े निराशाजनक हैं. बैंकों (Banks) का एनपीए (NPA) बढ़ता जा रहा है. लोगों ने खर्च कम कर दिए हैं. बाजार में पैसे की कमी देखी जा सकती है. कई लोग कह रहे हैं कि नोटबंदी के बाद से ऐसी स्थिति बनी है. मोदी सरकार (Modi Government) पर आरोप लगाए जा रहे हैं. इस बीच सरकार रिजर्व बैंक के आरक्षित कोष से 1.76 लाख करोड़ रुपए ले रही है. इसको लेकर भी कई बातें हो रही हैं. इस माहौल में नया इंडिया के संपादक हरिशंकर व्यास (Hari Shankar Vyas) का 2 सितंबर को छपा संपादकीय गौरतलब है.
व्यासजी ने लिखा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की आशंका के चलते सरकार ने एहतियात के तौर पर अतिरिक्त राशि का इंतजाम किया है, जिससे कि युद्ध होने की स्थिति में देश की अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ न पड़े. जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद पाकिस्तान जैसे पगलाया है तो जंग मुमकिन है. कश्मीर घाटी में पाबंदियां लगी हुई हैं, जो इस महीने हटानी ही पड़ेंगी. अनंत काल तक 70-80 लाख लोग खुली जेल में बंद नहीं रह सकते. न ही आतंकी गतिविधियों में कोई विराम संभव है. इसलिए सरकार को सुरक्षा इंतजामों पर भी खर्च बढ़ाना पड़ेगा.
यह भी पढ़ें:- इतनी हड़बड़ी में क्यों मोदी 2.0? 100 दिन से पहले लिए कई बड़े फैसले
व्यासजी के मुताबिक केंद्र सरकार की पहली प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि पाकिस्तान से जंग और अंदरूनी प्रतिरोध, आतंक आदि से निबटने का लंबा रोडमैप बने. फिर उसी अनुसार बजट और खर्च का पुख्ता बंदोबस्त हो. उसका सहज जरिया रिजर्व बैंक से केंद्र सरकार को मिला पैसा है. यह इसलिए ज्यादा जरूरी है, क्योंकि आर्थिकी कहां तक गिरेगी, इसका पता नहीं है. तेज विकास और सरप्लस वाली आर्थिकी नहीं है. मोटे तौर पर भारत में सरकार को और सरकार की एजेंसियों को अनुमान ही नहीं है कि आर्थिकी में गिरावट की सीमा कहां तक है. पाकिस्तान की बदहाली जगजाहिर है. वहां का प्रधानमंत्री इमरान खान खुद दुनिया के सामने यह कहते हुए झोली फैलाए हुए है कि हमें मदद चाहिए. जबकि भारत सरकार और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आंकड़ों का मायाजाल बनाकर दुनिया को बताया हुआ है कि भारत सोने की चिड़िया बना हुआ है और पैसे की कोई कमी नहीं है.
व्यासजी के मुताबिक सोचने की बात है कि यदि ऐसा होता तो क्या भारत सरकार को रिजर्व बैंक में रखा रिजर्व पैसा लेने का इतना जतन करना पड़ता? येन केन प्रकारेण रिजर्व बैंक से सरकार ने जैसे अपनी लाटरी खुलवाई है तो वजह सरकार ओर आर्थिकी की कड़की स्थिति है. पाकिस्तान सरकार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कर्ज लेकर सांस ले रही है तो भारत सरकार ने रिजर्व बैंक से कर्ज लेकर जुगाड़ बनाया है. सरकार को फिलहाल जंग के बादलों, कश्मीर की आगे की चुनौतियों में रोडमैप और उसके खर्च की प्राथमिकता होनी चाहिए. रक्षा-सुरक्षा बजट में नए सिरे से आबंटन या रिजर्व बनना चाहिए.
वित्त मंत्रालय या भारत सरकार के बाबुओं का आम जनता की तरह यह सोचना आत्मघाती होगा कि पाकिस्तान दिवालिया है. यह सोचना भी ठीक नहीं कि जम्मू-कश्मीर में सबकुछ नियंत्रण में है और नया कुछ सोचने की जरूरत नहीं है. जान लिया जाए कि पाकिस्तान की सेना का देश की दिवालिया स्थिति से लेना देना नहीं है. पाकिस्तान में सैनिक बजट और तैयारियों में कभी कमी नहीं हुई है और न होगी. पाकिस्तान कितना ही बरबाद औऱ दिवालिया हो, वहां सरकार को मिलने वाले खर्च में सेना को मिलने वाले पैसे अनुपात हमेशा ज्यादा रहता है. जम्मू-कश्मीर के मौजूदा मामले ने पाकिस्तानी अवाम में जिहादी जुनून बना दिया है. इमरान खान खुले आम इस्लाम की लड़ाई का रंग देते हुए भारत से लड़ने की जैसी बातें कर रहे हैं तो उसमें वहां की जनता को भी यह कहते हुए उन्मादी बनाया जा सकता है कि घास खाकर रह लेंगे लेकिन हिंदुस्तान से लड़ेंगे.
व्यासजी ने लिखा है कि इसी लिए भारत को पाकिस्तानी उन्माद से निकले छाया युद्ध या औपचारिक जंग के मुकाबले की तैयारी रखनी चाहिए. पहली जरूरत है कि मोदी सरकार रक्षा-सुरक्षा के मामले में बजट और खर्च के आपातकालीन बंदोबस्त करके रखे. जाहिर है, उसमें रिजर्व बैंक के अतिरिक्त पैसे से कुछ आसानी हो.