Politalks.News/UttarPradesh. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भले ही अभी साल से अधिक समय शेष है लेकिन लेकिन राजनीतिक दलों ने अपने सियासी समीकरण और गठजोड़ बनाने शुरू कर दिए हैं. बीजेपी, सपा, बसपा और कांग्रेस सहित अन्य दल भी अपने अपने मुहरे फिट करने में जुटे हुए हैं. यूपी की वर्तमान राजनीति पर गहराई से गौर करें तो पता चलता है कि यहां विपक्ष की करीब करीब सभी राजनीतिक पार्टियां भारतीय जनता पार्टी की चुनावी रणनीति पर काम कर रही है. यही रणनीति बीजेपी ने पिछले यूपी विस चुनावों में अपनाई थी जो काफी सफल रही थी. अब इसी रणनीति पर करीब करीब सभी बड़े राजनीतिक दल काम कर रहे हैं. कांग्रेस ग्रामीण स्तर पर इसी रणनीति को साध रही है.
दरअसल, बीजेपी ने पिछले चुनावों में बड़े राजनीतिक दल यथा सपा और बसपा से उलट वहां से स्थानीय और छोटे छोटे राजनीतिक दलों से संपर्क साधा था. यूपी में दर्जनभर से अधिक छोटे राजनीतिक दल हैं. बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में सुभासपा को 8 और अपना दल को 11 सीटें दीं जबकि खुद 384 सीटों पर मैदान में लड़ी थी. इसके दूसरी ओर पिछली सत्ता में काबिज सपा ने कांग्रेस से गठबंधन किया. बसपा ने अलग चुनाव लड़ा लेकिन किसी को भी उतनी सफलता हासिल नहीं हुई जितनी मिलनी चाहिए थी. बीजेपी ने विजय पताका यादवों के गढ़ में फहराई.
अब इसी सफल और कारगर रणनीति पर अन्य राजनीतिक दल भी चल रहे हैं. इनमें सबसे आगे है अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, जो सबसे अधिक छोटे दलों को साध रही है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव अब बड़े दलों के बजाय छोटे दलों के साथ हाथ मिलाने के फॉर्मूले को लेकर चल रहे हैं. अखिलेश यादव लगातार यह बात कह रहे हैं कि 2022 में बसपा और कांग्रेस जैसे दलों के साथ गठबंधन करने के बजाय छोटे दलों के साथ मिलकर लड़ेंगे. इस कड़ी में सपा ने महान दल के साथ हाथ मिलाया है और हाल ही में हुए उपचुनाव में चौधरी अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल के लिए एक सीट छोड़ी थी जिसके यह संकेत हैं कि आगे भी वह अजित सिंह के साथ तालमेल कर सकते हैं.
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जनवादी पार्टी के संजय चौहान सपा के चुनाव चिन्ह पर चंदौली से लोकसभा चुनाव लड़कर हार चुके हैं. वर्तमान में भी चौहान सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ सक्रिय हैं. इसके अलावा अखिलेश ने सपा से विद्रोह कर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाने वाले अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव की सीट पर 2022 में प्रत्याशी न उतारने की बात कह कर साफ कर चुके हैं कि उन्हें भी एडजस्ट किया जा सकता है. हालांकि अखिलेश की मंशा लोहिया का सपा में विलय करने की है और इस बारे में उन्होंने शिवपाल को बताया भी है लेकिन शिवपाल केवल गठबंधन के लिए राजी हैं. पूर्व सीएम मुलायम सिंह के छोटे भाई शिवपाल यादव ने विलय की बात से साफ इनकार कर दिया है और विस चुनाव के करीब आते ही एक बार फिर सियासी जमीन तलाशना शुरु कर दिया है.
इधर, 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में अखिलेश ने मायावती के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा लेकिन सपा को बहुत लाभ नहीं मिला. सपा सिर्फ पांच सीटों पर ही रह गई लेकिन बसपा को 10 सीटें जरूर मिल गईं. यही वजह है कि अखिलेश अब बसपा के साथ गठजोड़ करने में ज्यादा इच्छुक नहीं हैं. राज्यसभा चुनावों में एक सीट पर उलटफेर करने के चक्कर में वैसे भी मायावती अखिलेश यादव से खफा हैं.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस भी इस बार नए प्रयोग की तैयारी में है और वह भी इस बार चुनाव में छोटे दलों से समझौता कर चुनाव लड़ने की रणनीति पर काम कर रही है. प्रियंका गांधी लगातार मृतप्राय पार्टी में प्राण फूंकने का काम कर रही है. कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने बताया कि अभी हमारी कोशिश पार्टी संगठन को ग्राम स्तर पर मजबूत करने की है जिसे दिसंबर तक पूरा कर लिया जाएगा. इसके बाद गठबंधन को लेकर कोई बात करेंगे लेकिन हमारी कोशिश जरूर है कि सूबे के जो भी छोटे दल हैं उन्हें साथ लेकर चलें. कांग्रेस पहले भी छोटे दलों को सियासी तरजीह देती रही है. कांग्रेस ग्राम स्तर पर लगातार छोटे दलों को साध रही है.
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अब बात करें भीम आर्मी प्रमुख और उभरते दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की, जिन्होंने भीम आर्मी के राजनीतिक फ्रंट आजाद समाज पार्टी के बैनर तले उपचुनाव के जरिए सियासी एंट्री की है. आजाद समाज पार्टी के उम्मीदवार को बुलंदशहर में मिले मतों के आधार पर चंद्रशेखर दलित समाज में अपनी पैठ मजबूत करने में कामयाब हो रहे हैं. बिहार की तीन सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद 2022 के चुनाव को लेकर उनकी तैयारी करने में जुटे हैं. चंद्रशेखर की प्रियंका गांधी के साथ अच्छी बॉन्डिंग है. ऐसे में भीम आर्मी के कांग्रेस के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. इसके अलावा अय्यूब अंसारी की पीस पार्टी पर भी कांग्रेस की नजर है.
मायावती बिहार विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के गठबंधन में शामिल हुईं जिसमें असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM और ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ;सुभासपाद्ध भी शामिल थी. इस गठबंधन ने बिहार में 6 सीटें जीती हैं. हालांकि यूपी में मायावती इस फॉर्मूले पर चुनावी मैदान में उतरेंगी, इसे लेकर फिलहाल तस्वीर साफ नहीं है लेकिन AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली ने बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की इच्छा जरूर जतायी है.
वहीं इसी रणनीति पर चलते हुए यूपी के पांच स्थानीय दलों ने बड़े दलों के साथ जाने के बजाय आपस में ही हाथ मिलाकर चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व में बाबू सिंह कुशवाहा की जनाधिकार पार्टी, अनिल सिंह चौहान की जनता क्रांति पार्टी, बाबू राम पाल की राष्ट्र उदय पार्टी और प्रेमचंद्र प्रजापति की राष्ट्रीय उपेक्षित समाज पार्टी ने भागीदारी संकल्प मोर्चा के नाम से नया गठबंधन तैयार किया है. ये यूपी की पिछड़ी जातियों के नेताओं का गठबंधन है जिसका ऐलान ओम प्रकाश राजभर ने दो दिन पहले ही किया है. उन्होंने कहा कि जिस पार्टी के समाज की जहां भागेदारी होगी, वहां पर वो पार्टी चुनावी मैदान में किस्मत आजमाएगी.
उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग में प्रभावी कुर्मी समाज से आने वालीं सांसद अनुप्रिया पटेल इस दल की अध्यक्ष हैं जबकि अति पिछड़े राजभर समाज के नेता ओमप्रकाश राजभर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का नेतृत्व करते हैं. बीजेपी को 312, राजभर को 4 और अपना दल (एस) को 9 सीटों पर जीत मिली थी. हालांकिए ओम प्रकाश राजभर ने बाद में पिछड़ों के हक का सवाल उठाते हुए बीजेपी से नाता तोड़ लिया है. ऐसे में बीजेपी और अपना दल (एस) अभी भी एक साथ हैं और माना जा रहा है कि 2022 में फिर एक साथ चुनावी मैदान में उतर सकते हैं.
अब देखना ये होगा कि यूपी में बीजेपी की रणनीति अपना रही विपक्षी पार्टियां आगामी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में क्या गुल खिलाएंगी.