Politalks.News/Uttarpradesh. उत्तरप्रदेश में आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सभी राजनीतिक दलों ने ताकत झोंक दी है. इसी कड़ी में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मिशन-2022 के चुनावी अभियान का आगाज कर दिया है.अखिलेश यादव एक बार फिर रथयात्रा पर निकले हैं. अखिलेश यादव जब लखनऊ से उन्नाव के लिए रथ लेकर निकले तो रास्ते में सपा कार्यकर्ताओं ने उनका जोरदार स्वागत किया. उन्नाव में अखिलेश यादव ने सरौसा गांव स्थित मनोहर लाल इंटर कॉलेज में पूर्व मंत्री मनोहर लाल की मूर्ति का अनावरण किया. इसके साथ ही उत्तरप्रदेश में समाजवादियों की ओर से चुनावों का शंखनाद हो गया है.
आपको ये जानना भी जरुरी है कि साल 2012 के उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में जबरदस्त सफलता हासिल करने वाली समाजवादी पार्टी ने 2011 में चुनाव प्रचार की शुरुआत क्रांति रथ यात्रा से शुरू की थी और सफलता हासिल की थी. ठीक उसी बुधवार को एक बार फिर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का उन्नाव आगमन वाहनों के काफिले से हुआ है. इस बार भी पूर्व मुख्यमंत्री उन्नाव जिले की सीमा में अपने उसी रथ पर सवार होकर आए. इस दौरान सपा कार्यकर्ताओं ने अखिलेश का उन्नाव सीमा में प्रवेश करते ही जोरदार स्वागत किया. सभी समाजवादी इस यात्रा को 2022 के चुनावी शंखनाद मानकर चल रहे हैं.
मनोहर लाल की मूर्ति का किया अनावरण
उन्नाव में अखिलेश यादव ने ग्राम सरौसा स्थित मनोहर लाल इंटर कॉलेज में मनोहर लाल की मूर्ति का अनावरण किया और एक जनसभा को संबोधित किया. उत्तरप्रदेश में निषाद, मल्लाह और कश्यप वोट बैंक करीब 4 फीसदी है. अगले साल 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश का यह दांव निषाद वोट बैंक की सियासत से जोड़ कर देखा जा रहा है.
निषाद वोटों पर सपा की नजर
यूपी की सियासत में 2018 से निषाद वोट बैंक को निर्णायक समझा जाने लगा. साल 2018 में गोरखपुर उपचुनाव में निषाद पार्टी और सपा के गठबंधन के बाद भाजपा चुनाव हार गई और सपा से प्रवीण निषाद गोरखपुर से सांसद बन गए. गोरखपुर योगी आदित्यनाथ की परंपरागत सीट थी. इसीलिए 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने निषाद पार्टी से गठबंधन कर लिया. मौजूदा समय में भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी दल निषाद पार्टी के एक सांसद प्रवीण निषाद भी जीते हैं.
योगी सरकार की कमियां, अपनी उपलब्धियां गिनाएंगे अखिलेश
सपा रणनीतिकारों के अनुसार, योगी सरकार के खिलाफ महंगाई, बेरोजगारी, महिलाओं के साथ हुए अत्याचार और कोविड अव्यवस्था को मुद्दा बनाया जाएगा. अखिलेश अपनी रथयात्रा के दौरान इन मुद्दों को उठाएंगे और इस पर जनता का समर्थन मांगेंगे. साथ ही पिछली सपा सरकार में हुए कार्यों से जनता को वाकिफ कराया जाएगा. यह भी समझाया जाएगा कि भाजपा सरकार ने किस तरह से सपा शासनकाल में हुए कार्यों को अपनी उपलब्धि के रूप में भुनाया है. बुधवार की रथयात्रा के बाद गांव-गांव चलो अभियान शुरू होगा. इसमें अलग-अलग गांवों की जिम्मेदारी पार्टी नेताओं को सौंपी जाएगी.
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छोटी-छोटी पार्टियों से गठबंधन की कोशिश
अखिलेश यादव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समर्थन वाले राष्ट्रीय लोकदल और भाजपा से नाराज छोटी-छोटी पिछड़ी जातियों की पार्टियों का गठजोड़ बनाने की कोशिश कर रहे हैं. सैद्धांतिक दृष्टि से देखें तो यह एक अच्छी कोशिश है. अगर समाजवादी पार्टी ऐसा कर सकी तो भले ही वह अगला चुनाव न जीते लेकिन वह सामाजिक न्याय की राजनीति में नई जान फूंक सकेगी. यादव वोटरों के साथ जाट वोटर, शाक्य वोटर, निषाद वोटर और ऐसे गैर-यादव पिछड़े समुदाय जुड़ेंगे तो वही नजारा बनेगा जो कभी मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में बना करता था. एक जमाना था जब मुलायम सिंह यादव वास्तव में पिछड़ी जातियों के नेता माने जाते थे. इसी तरह मायावती कोशिश कर रही हैं कि किसी तरह ब्राह्मण की भाजपा से नाराजगी का लाभ उठा कर हिंदू एकता से ब्राह्मण वोटों को अपनी ओर खींच लें.