Politalks.News/UttarPradesh. पांच दशक से उत्तरप्रदेश की राजनीति किसान और जाट समुदाय के इर्द-गिर्द ही रही है. इसकी शुरुआत पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने की थी. चौधरी चरण सिंह किसानों के साथ वेस्ट यूपी के जाटलैंड में भी सबसे लोकप्रिय नेताओं में शुमार रहे. इसके साथ ही वे राजनीति में ‘दूरदृष्टि‘ वाले नेता कहे जाते थे. आज हम बात करेंगे दिग्गज जाट नेता व पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पुत्र अजित सिंह की. 82 वर्षीय चौधरी अजित सिंह ने गुरुवार को गुडगांव के एक निजी अस्पताल में आखिरी सांस ली. वे 20 अप्रैल से कोरोना से संक्रमित थे. फेफड़ों में इन्फेक्शन फैलने से उन्हें निमोनिया भी हो गया था. अजित सिंह का दबदबा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी ज्यादा था. अजीत सिंह जाटों के बड़े नेता माने जाते थे. वे कई बार केंद्रीय मंत्री भी रहे थे. पिछले दिनों अजीत सिंह मेरठ और मुजफ्फरनगर में आंदोलनकारी किसानों के मंच पर भी पहुंचे थे.
अजित सिंह ने अपनी राजनीतिक पारी अपने पिता चरण सिंह की मृत्यु के बाद शुरू की थी. पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए उन्होंने जल्द ही किसानों और जाट वोटरों के बीच अपनी ‘पकड़‘ बना ली थी. अजित को भी राजनीति में ‘पाला‘ बदलने में माहिर माना जाता था. 90 के दशक में अजीत सिंह ने केंद्र की राजनीति पर ही फोकस रखा. केंद्र में कांग्रेस भाजपा और जनता दल की सरकारों में वे केंद्रीय मंत्री भी रहे. बात को आगे बढ़ाने से पहले उनके निजी जीवन और शिक्षा के बारे में भी जान लेते हैं.
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अजित सिंह का जन्म 12 फरवरी 1939 में मेरठ के भडोला गांव में हुआ था. पढ़ाई में वह हमेशा अव्वल रहे. अजीत ने उस जमाने में टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में उच्च शिक्षा भी ग्रहण की थी. लखनऊ यूनिवर्सिटी से बीएससी करने के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए आईआईटी खड़गपुर चले गए थे. इसके बाद अजीत सिंह ने अमेरिका से मास्टर ऑफ साइंस किया. अजित ने करीब 15 साल तक अमेरिका में ही नौकरी भी की. पिता के खराब स्वास्थ्य के चलते अजित सिंह अमेरिका से नौकरी छोड़कर भारत आ गए. इसके बाद उनके पिता चौधरी चरण सिंह ने अजित सिंह को लोकदल की कमान सौंप दी. अजित सिंह 1986 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में पहुंचे.
वर्ष 1989 में पहली बार लोकसभा का चुनाव जीतकर केंद्रीय मंत्री बने अजीत सिंह
अजित सिंह ने 1989 में पहली बार लोकसभा चुनाव बागपत सीट से जीता. इस दौरान विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में 11 महीने के लिए वे केंद्रीय उद्योग मंत्री भी रहे. 1991 में भी वे लोकसभा के लिए चुने गए. 1997 में वह जीते, लेकिन 1998 में अजित सिंह बागपत से ही चुनाव हार गए. उन्हें बीजेपी के नेता सोमपाल शास्त्री ने हरा दिया था. इसके बाद अजीत सिंह ने अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) बनाई. उसके बाद 1999, 2004 और 2009 का चुनाव जीते और अटल सरकार के साथ ही मनमोहन सरकार में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री रहे.
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यहां हम आपको बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के इकलौते बेटे ‘अजित का राजनीतिक करियर का आखिर समय बहुत ही मुश्किल भरा रहा‘. 2014 में भाजपा और नरेंद्र मोदी की लहर के बाद वो लोकसभा सांसद का चुनाव तक नहीं जीत पाए. उनके राजनीति जीवन का पिछला एक दशक सबसे बुरा दौर रहा. 2014 में उन्हें बीजेपी के उम्मीदवार और मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह से मात मिली थी. इसके बाद 2019 में उन्होंने मुजफ्फरनगर से लोकसभा चुनाव लड़ा था लेकिन संजीव बालियान से हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद उनकी पार्टी राष्ट्रीय लोकदल के सितारे भी ‘गर्दिश‘ में आ गए. वर्ष 2014 और 19 के लोकसभा चुनाव में उनके पुत्र जयंत चौधरी को मथुरा से फिल्म अभिनेत्री और भाजपा की प्रत्याशी हेमा मालिनी के हाथों बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा.
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हालांकि मोदी सरकार के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन में अजित सिंह की आरएलडी को फायदा मिला और पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में संपन्न हुए जिला पंचायत के चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल ने शानदार प्रदर्शन किया. लेकिन अपनी पार्टी के सूर्य के दुबारा पूरा उदय होने से पहले ही कोरोना रूपी राक्षस ने उन्हें अपने आगोश में लेकर छीन लिया. आरएलडी प्रमुख अजीत सिंह के निधन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, कांग्रेस के पूर्व सांसद राहुल गांधी, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बसपा प्रमुख मायावती, सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव समेत तमाम नेताओं ने अपनी शोक संवेदनाएं प्रकट की हैं.