Politalks.News/Hariyana. पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद कांग्रेस के कई क्षत्रप नेताओं की नींद उड़ी है. उनको लग रहा है कि परिवार के पांच दशक से दोस्त रहे अमरिंदर के साथ जब ऐसा हो सकता है तो वे किस खेत की मूली हैं. तभी अलग अलग राज्यों के क्षत्रप अपनी पोजिशनिंग करने में लगे हैं. इसी सिलसिले में हरियाणा के नेता विपक्ष भूपेंदर सिंह हुड्डा ने बुधवार को चंडीगढ़ में अपने आवास पर कांग्रेस विधायकों की बैठक बुलाई. विधानसभा का सत्र हाल ही में खत्म हुआ है तभी इस बैठक का कोई संबंध विधानसभा की कार्यवाही या सरकार के घेरने की किसी योजना से नहीं है. हुड्डा चाहे कुछ भी कहें लेकिन असल में यह उनका शक्ति प्रदर्शन था। वे गाहे-बगाहे पार्टी आलाकमान को दिखाते रहते हैं कि कितने विधायक उनके साथ हैं.
हरियाणा में हुड्डा समय-समय पर दिखाते रहते हैं ताकत!
हरियाणा में हुड्डा द्वारा बुलाई बैठक में बताया जा रहा है कि छह विधायक नहीं गए. इनमें से तीन विधायकों के बारे में तो आमतौर पर माना जाता है कि वे हुड्डा के साथ नहीं हैं.कुलदीप बिश्नोई, किरण चौधरी और राव चिरंजीवी, ये तीनों बैठक में शामिल नहीं हुए. लेकिन इनके अलावा शैली गुर्जर, रेणु बाला और शीशपाल केहरवाल भी बैठक में शामिल नहीं हुए. इसके बावजूद कांग्रेस के 31 में से 25 विधायकों की मौजूदगी बहुत प्रभावशाली मानी जाएगी. इतने विधायक हुड्डा के साथ शुरू से हैं. पिछली विधानसभा में कांग्रेस के 15 विधायक जीते थे, जिसमें से 14 हमेशा हुड्डा के साथ रहे और तभी पार्टी आलाकमान के तय किए राज्यसभा उम्मीदवार आरके आनंद हार गए थे और निर्दलीय सुभाष चंद्र जीते थे. पिछली बार इसी ताकत के दम पर हुड्डा ने कुमारी शैलजा की राज्यसभा सीट अपने बेटे दीपेंद्र हुड्डा को दिलाई.
यह भी पढ़ें- REET 2021 के परीक्षार्थियों के लिए अब तीन दिन निःशुल्क भोजन भी, CM गहलोत ने किए निर्देश जारी
ताकत को कैप्टन भी दिखाते थे, आलाकमान के डंडे के सामने सब फेल!
बहरहाल, हुड्डा के साथ कांग्रेस के 25 विधायकों के अलावा दो निर्दलीय विधायक भी हैं. पिछले दिनों कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन से प्रभावित दो निर्दलीय विधायकों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. ये विधायक हुड्डा के साथ माने जा रहे हैं. इस लिहाज से कह सकते हैं कि हुड्डा निजी तौर पर राज्य के किसी दूसरे नेता से ज्यादा मजबूत हैं. लेकिन कुछ दिन पहले तक यहीं स्थिति पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की थी. उन्होंने भी 50 से ज्यादा विधायकों को अपने एक समर्थक मंत्री के घर बुला कर अपनी ताकत दिखाई थी. लेकिन जब आलाकमान ने उनको बदलने का फैसला किया तो कोई विधायक उनके साथ नहीं आया.
यह भी पढ़ें- राजस्थान का आम आदमी चाहता है पायलट बनें मुख्यमंत्री, 2018 में हुई थी नाइंसाफी- बोले आचार्य प्रमोद
हुड्डा के मुकाबले नेता, विश्नोई-चौधरी-राव चिरंजीवी
इसके बावजूद कैप्टन अमरदिंर और भूपेंदर सिंह हुड्डा में एक बड़ा फर्क है. कैप्टन के मुकाबले राज्य में कई बड़े नेता थे पर हुड्डा के मुकाबले हरियाणा में कोई नेता नहीं है. प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा जरूर पार्टी आलाकमान को पसंद हैं, लेकिन पंजाब में दलित मुख्यमंत्री बनाने के बाद हरियाणा में दलित नेता को कोई बड़ा पद देने की संभावना खत्म हो गई है. इस तरह शैलजा का खतरा टल गया है. हुड्डा के लिए रणदीप सुरजेवाला बड़ी चुनौती हैं लेकिन वे लगातार दो बार विधायक का चुनाव हारे हुए हैं. छह साल तक प्रदेश अध्यक्ष रहे अशोक तंवर पार्टी से बाहर हैं. सो, नेता के नाम पर कुलदीप बिश्नोई, किरण चौधरी और राव चिरंजीवी हैं.