Politalks.News/WestBengalElection. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के लिए चार चरणों के मतदान तक ऐसा ही लग रहा था कि बंगाल में सिर्फ दो ही पार्टियां तृणमूल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ही चुनाव लड़ रही हैं, जैसा कि ज्यादातर हिंदी भाषी राज्यों में सिर्फ बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला होता है. लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी के राजकुमार के कल घोषित हुए बंगाल दौरे के कार्यक्रम के बाद कहीं थोड़ा अहसास हुआ कि नहीं बंगाल में कम ही सीटों पर सही लेकिन कांग्रेस भी लड़ रही है. अब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी बंगाल में चुनाव की कमान संभालेंगे. 14 अप्रैल गुरुवार को राहुल गांधी रैली करने के लिए पहुंच रहे हैं. राहुल यहां कई चुनावी जनसभाओं को संबोधित करेंगे.
अब जबकि पश्चिम बंगाल में विधानसभा के आधे चार चरण के चुनाव समाप्त हो गए हैं, ऐसे में कांग्रेस पार्टी को अब इस राज्य में प्रचार करने की याद आई है. अभी तक राहुल गांधी और प्रियंका गांधी असाम, केरल, तमिलनाडु पर ही ध्यान केंद्रित किए हुए थे. बंगाल में रैली करनेेेे के लिए कांग्रेस के कोई बड़े नेताओं के न पहुंचने से पश्चिम बंगाल कांग्रेस के प्रत्याशियों, कार्यकर्ताओं और नेताओं में इसको लेकर भारी नाराजगी भी सामने आई है.
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इससे पहले तक ऐसा लग रहा था कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस लड़ ही नहीं रही थी. इस राज्य को लेकर कांग्रेस के बड़े नेताओं, खासतौर पर गांधी परिवार पूरी तरह ‘मौन‘ भूमिका में बना रहा. पश्चिम बंगाल में प्रचार को लेकर कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेताओं का अभी तक न बयान न तैयारी न कोई चुनावी रैली. सही मायने में कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव को वहीं के पार्टी नेताओं पर छोड़ दिया था. जबकि इस बार पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बंगाल पूरे देश भर में सबसे ज्यादा ‘सुर्खियों‘ में बना हुआ है. इसका कारण है कि भाजपा ने बंगाल जीतने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है. पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और जेपी नड्डा की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच सत्ता के इस महासंग्राम में घमासान मचा हुआ है. लेकिन कांग्रेस अभी तक भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के बीच सियासी लड़ाई में अपने आप को अलग करती हुई नजर आई है. जबकि कांग्रेस ने अपने 30 स्टार प्रचारकों की बंगाल में प्रचार करने के लिए सूची भी जारी की थी, लेकिन अभी तक यह सभी बंगाल के मैदान में नहीं उतर सके हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्या वजह है कि गांधी परिवार चुनाव प्रचार के लिए नहीं उतरा?
यहां हम आपको बता दें कि राज्य के कुछ कांग्रेसी नेता, जो राहुल और प्रियंका गांधी वाड्रा के केरल, असम और तमिलनाडु पर ध्यान केंद्रित करने के बाद खुश नहीं थे, उन्हें अब राहत मिली है. राहुल गांधी के बंगाल में देर से प्रचार करने के लिए पार्टी का कहना है कि बंगाल में अधिकांश विधानसभा सीटें जहां सेेे कांग्रेस लड़ रही है वे आखिरी के चरण में आती हैं और राहुल का अब होने वाला दौरा बिल्कुल सही समय पर है. बता दें कि कांग्रेस ने पिछले चुनाव में दो जिलों (मुर्शिदाबाद और मालदा) की 44 सीटों में से आधे पर जीत दर्ज की थी, जबकि इन दोनों जिलों में आखिरी चरण में मतदान होगा.
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पश्चिम बंगाल चुनाव को लेकर कांग्रेस शुरू से ही असमंजस में बनी रही
आपको बता दें, पश्चिम बंगाल को लेकर कांग्रेस शुरू से ही असमंजस में रही है. यही कारण है कि शीर्ष नेतृत्व ने राज्य के नेताओं पर चुनाव की जिम्मेदारी छोड़ रखी है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद अधीर रंजन चौधरी ने ही चुनाव प्रचार की अभी तक कमान संभाल रखी है. ‘बंगाल चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी की कमजोर तैयारियों और गांधी परिवार की उपेक्षा से सियासी गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म रहा‘. राहुल गांधी या प्रियंका के बंगाल में अभी तक प्रचार करने के लिए न जाने पर और दक्षिण भारत के राज्यों पर ही ज्यादा फोकस करने के पीछे सीपीएम को कारण माना जा रहा है.
बता दें कि एक ओर जहां सीपीएम बंगाल में कांग्रेस की सहयोगी है वहीं केरल में वह कांग्रेस की प्रमुख प्रतिद्वंदी भी है. ऐसे मे पश्चिम बंगाल में लेफ्ट के साथ प्रचार करने से केरल में लड़ाई कमजोर पड़ सकती है. इसलिए पार्टी केरल में मतदान तक बंगाल में प्रचार से परहेज कर रही थी. इस विरोधाभास से बचने के लिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी समेत कांग्रेस के बड़े दिग्गज नेता अभी तक बंगाल में चुनाव प्रचार से बचते रहे थे, लेकिन अब केरल में मतदान समाप्त होने पर राहुल गांधी ने बंगाल को फोकस किया है.
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हालांकि इसके साथ ही कांग्रेस के सामने एक और बड़ी चुनौती है. बंगाल में कांग्रेस चुनाव को त्रिकोणीय नहीं बनने देना चाहती थी. त्रिकोणीय संघर्ष होने पर भाजपा विरोधी वोट का बंटवारा होगा और इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलने की संभावना थी. यही वजह है कि कांग्रेस पूरे बंगाल के बजाय खुद को अपने मजबूत गढ़ मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर दिनाजपुर के इलाके तक ही सीमित रखे हुए है. इन क्षेत्रों में पार्टी की पकड़ मजबूत हैं और यहां से उसे जीत की उम्मीद भी दिख रही है. इसके अलावा कांग्रेस के सहयोगी कई राजनीतिक दल भी ममता बनर्जी को अपना समर्थन दिए हुए हैं. राष्ट्रीय जनता दल, जेएमएम, शिवसेना राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) समेत कुछ और दल ममता के साथ खड़े हुए हैं.