हरियाणा कांग्रेस (Haryana Congress) में आलाकमान ने बड़ा बदलाव करते हुए अशोक तंवर (Ashok Tanwar) की जगह कुमारी शैलजा (Kumari Shailja) को प्रदेश अध्यक्ष (State President) बनाया है. शैलजा के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद अब यह सवाल हर किसी के मन में हैं कि 13 वर्तमान विधायक और लगभग 70 के करीब पूर्व विधायक पूर्व मुख्यमंत्री (Ex-Chief Minister) भूपेंद्र सिंह हुड्डा (Bhupendra Singh Hudda) के पक्ष में होने के बावजूद सोनिया गांधी ने हुड्डा को प्रदेश कांग्रेस की कमान क्यों नहीं सौंपी?
हुड्डा की जगह शैलजा को कमान सौंपने के पीछे कांग्रेस आलाकमान का मत यह रहा कि हुड्डा के प्रदेश अध्यक्ष बनने से हरियाणा कांग्रेस में गुटबाजी कम होने के बजाय ज्यादा बढ़ती. अशोक तंवर के साथ-साथ, कैथल विधायक रणदीप सूरजेवाला, किरण चौधरी, पार्टी के दिग्गज नेता कैप्टन अजय यादव सभी खुलेआम भूपेन्द्र हुड्डा की मुखालफत करते नजर आते. इन सब के खुले विरोध से बचने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने बीच का रास्ता चुना.
पूर्व सीएम हुड्डा के प्रदेश अध्यक्ष बनने में सबसे बड़ा रोड़ा हाल में हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर हुआ जननायक जनता पार्टी (जजपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का गठबंधन रहा. अशोक तंवर दलित समाज से आते हैं. तंवर प्रदेश के साथ-साथ देश की राजनीति में भी कांग्रेस के बड़े दलित चेहरे के तौर पर देखे जाते हैं. अगर कांग्रेस उनके स्थान पर भूपेन्द्र हुड्डा को अध्यक्ष बनाती तो प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी बीजेपी इसे दलित समाज के अपमान के रुप में चुनावी प्रचार में पेश करती. जिसका नुकसान कांग्रेस को आगामी विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता था.
जजपा-बसपा के गठबंधन ने पहले ही कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं. प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने परिवर्तन रैली के बाद सोनिया गांधी से हुई मुलाकात में यह बात साफ कही थी कि तंवर को हटाने के बाद अगर हुड्डा को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी जाती हैं तो आने वाले विधानसभा चुनाव में अपना मूल वोटबैंक (दलित समाज) हमारे से दूर जा सकता है. गुलाम नबी आजाद की दलित वोट छिटकने की संभावना के बाद सोनिया गांधी ने शैलजा कुमारी को अध्यक्ष बनाने का फैसला किया. शैलजा को अध्यक्ष बनाकर पार्टी आलाकमान ने एक-तीर से दो निशाने साधे. पहला तो अशोक तंवर के नाम से उठ रहे विद्रोह को शांत करते हुए तंवर को अध्यक्ष पद से हटा दिया.
दूसरा, हरियाणा कांग्रेस के दिग्गज नेता भूपेन्द्र हुड्डा को विधायक दल का नेता बनाकर उनके बगावती तेवर को कुछ ही समय के लिए ही सही लेकिन शांत कर दिया गया. हुड्डा गुट पिछले दो साल से अशोक तंवर को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाने की मांग कर रहा था, लेकिन 90 प्रतिशत बड़े नेता अपना पाले में होने के बावजूद भी हुड्डा तंवर को हटवा नहीं पा रहे थे. हुड्डा को तंवर को हटवाने के लिए आखिरकार अपने बगावती तेवर दिखाने ही पड़े. रोहतक में पार्टी से इत्तर अलग रैली करनी पड़ी. पार्टी आलाकमान को तंवर को नहीं हटाने पर नई पार्टी बनाने की धमकी दी, जिसके बाद आखिरकार हुड्डा लंबे संघर्ष के बाद तंवर की अध्यक्ष पद से छुट्टी कराने में कामयाब हुए.
भूपेन्द्र हुड्डा और उनके समर्थित (13) विधायकों ने पिछले काफी समय से अशोक तंवर के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. भूपेन्द्र हुड्डा ने हरियाणा की राजनीतिक राजधानी रोहतक में परिवर्तन रैली कर कांग्रेस आलाकमान को तंवर को हटाने का आखिरी अल्टीमेटम दिया था, जिसके बाद कांग्रेस आलाकमान ने पार्टी में होने वाली किसी प्रकार की टूट से बचने के लिए अशोक तंवर को हटाकर उनके स्थान पर कुमारी शैलजा को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी हैं.
गौरतलब है कि बुधवार को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हरियाणा में अशोक तंवर की पार्टी अध्यक्ष पद से छुट्टी करते हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री शैलजा कुमारी को पार्टी का अध्यक्ष बनाया जिसकी घोषणा हरियाणा प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने की. वहीं कांग्रेस पार्टी से बगावत का झंडा बुलंद कर रहे प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा चुनाव कमेटी के प्रधान के साथ-साथ किरण चौधरी की जगह कांग्रेस विधायक दल के नेता की जिम्मेदारी दी गई है.
कुमारी शैलजा की नियुक्ति के बाद, साल 2017 में अशोक तंवर की तरफ से कही वो बात याद आती है जिसमें तंवर ने कहा था कि मेरे हटने के बाद हुड्डा नहीं ओर कोई पार्टी की कमान संभालेगा. आज शैलजा की नियुक्ति के बाद तंवर को वो बयान बिल्कुल सही साबित हुआ हैं.